For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का। .....(४)

गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )
फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का 
***
अब तक न याद आई थी उसको अवाम की 
क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का 
***
दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-
"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "
***
बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )
गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम का
***
इतने ख़फ़ा हुज़ूर न पहले कभी हुए 
भेजा जवाब तक नहीं मेरे सलाम का 
***
ख़ुद बेवफ़ा मगर करे उम्मीद प्यार की 
बोया जो खार पेड़ उगे कैसे आम का 
***
जब तक पियो नहीं तुम्हें कैसे पता चले 
साक़ी बग़ैर क्या मज़ा है यार जाम का 
***
जो हिज़्र में जला वही ये राज़ जानता 
क्या लुत्फ़ यार होता है फ़ुर्क़त की शाम का 
***
चाहत है अब बदल क़ज़ा ये पैरहन 'तुरंत' 
बस इंतज़ार रह गया तेरे पयाम का 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 934

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on January 1, 2019 at 3:51pm

आपका स्वागत है ब्रदर, यूँ ही अपने ज़ोरदार लेखन से हमें लुतफंदोज़ करते रहें, ईश्वर आपकी तौफ़ीक़ बनाए रखे. सादर. 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 3:35pm

जनाब राज़ नवादवी साहेब आपकी हौसला आफजाई के लिए नाचीज़ शुक्रगुज़ार है ,यूँ ही प्यार और मार्गदर्शन करते रहें | 

Comment by राज़ नवादवी on January 1, 2019 at 11:52am

आदरणीय गिरधारी सिंह साहब, आदाब. अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 31, 2018 at 11:40am

// आप सभी शायरों को अपनी कीमती राय का तोहफा देते हैं ,आपके इस अहसान को जीवन भर भुला नहीं पाएंगे |//

अहसान कैसा मित्र,हम सब एक परिवार के सदस्य हैं,और एक दूसरे पर हमारा हक़ है,मैंने परिवार का हक़ अदा किया है बस ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 30, 2018 at 10:33pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब ,इतने शेर फ़राज़ साहेब के लिखने का मक़सद आपसे कुछ सीखना ही था | अब देखिये जुज़्वी और कुल्ली का मुझे मतलब ही नहीं मालूम था बल्कि ये लफ्ज़ ही मैंने पहली बार पढ़े | अब तक तो मुझे यही बतलाया गया कि अगर दोनों पंक्तियों के अंत में 'है ' होगा तो ऐब माना जाएगा लेकिन आप से मालूम हुआ ये ऐब नहीं है | अब अहमद साहेब की ग़ज़लों में ऐब को तो हम ठीक नहीं कर सकते | लेकिन आपने जो यह समझाया कि ऐब दूर कैसे कर सकते हैं वह मेरे अलावा और साहिबान के काम का जरूर होगा जो ग़ज़ल सीखने की कोशिश कर रहे हैं | आपकी इस बात का कायल हूँ कि अगर किसी शायर (चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो ),ने कुछ गलत किया इसका मतलब हम भी करें ,यह सोच ठीक नहीं | मैं भी अक़्सर लोगों को यही जवाब देता हूँ | कोशिश यही रहती है ग़ज़ल में तक़ाबुले  रदीफ़ ऐब न आये फिर भी कभी कभी चूक हो ही जाती है | आप सभी शायरों को अपनी कीमती राय का तोहफा देते हैं ,आपके इस अहसान को जीवन भर भुला नहीं पाएंगे | 

Comment by Samar kabeer on December 30, 2018 at 6:47pm

जनाब 'तुरंत' जी,दो दिन से ओबीओ के तरही मुशायरे में व्यस्त रहा इसलिए यहाँ नहीं आ सका ।

मैंने 'फ़राज़' साहिब के एक शैर के लिए कहा था,आपने लाइन लगा दी,ख़ैर !

तक़ाबुल-ए-रदीफ़ दो तरह का होता है,एक जुज़वी दूसरा कुल्ली, जुज़वी जैसा कि फ़राज़ साहिब के यहां पाया जाता है,और कुल्ली की मिसाल के लिए किसी का ये शैर देखिये:-

'अभी तो चाक पे मिट्टी का रक़्स जारी है

अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है'

इस शैर में रदीफ़ के दो जुज़ ऊला में आगये बड़ी ई की मात्रा और 'है' तो ये ऐब हुआ,और जो फ़राज़ या किसी भी जगह हो जुज़वी यानी रदीफ़ का एक जुज़ जैसे दोनों मिसरों में "है" शब्द का होना ऐब नहीं कहलाता,अब शाइर अगर थोड़ी सी तवज्जो दे तो उसके शैर से ये ऐब निकल सकता है,कभी बसूरत-ए-मुहाल गवारा करना पड़ता है,जैसे मैंने जो शैर मिसाल में पेश किया:-

"अभी तो चाक पे मिट्टी का रक़्स जारी है

अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है"

इसमें तरमीम करके तक़ाबुल-ए-रदीफ़ निकाल सकते हैं देखिये:-

'अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी का

अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है'

ऐब निकल गया ।

इसी तरह फ़राज़ के कुछ ऐसे शैर हैं जिनसे वो चाहते तो इस ऐब को निकाल सकते थे:-

'सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं

ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं'

इस शैर का ऊला यूँ कर दें तो ऐब निकल जायेगा:-

'सुना है बोले तो झड़ते हैं फूल बातों से'

ये शैर देखिये:-

'सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं'

इस शैर का ऊला बदल दें तो ऐब निकल जायेगा:-

'सुना है उसको सताती हैं तितलियाँ दिन में'

ये शैर देखिये:-

 

'यूँ दिल तह-ओ-बाला कभी होते नहीं देखे

इक शख़्स के पाँव से तो भौंचाल बंधे थे' 

इस का ऊला यूँ करें तो ऐब निकल जायेगा:-

'यूँ दिल नहीं देखे कभी होते तह-ओ-बाला'

'हर बज़्म में हम ने उसे अफ़्सुर्दा ही देखा

कहते हैं 'फ़राज़' अंजुमन-आरा भी कभी था'

इस शैर का ऊला मिसरा यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:-

'अफ़सुर्द: ही देखा उसे हर बज़्म में हमने'

कहने का तातपर्य ये है कि कुछ ऐब इसलिए छोड़ना पड़ते हैं कि उसे बदलने से शैर का हुस्न ख़त्म हो जाता है,कहीं ये ऐब थोड़ी मिहनत से निकल जाता है,यही मुआमला ऐब-ए-तनाफ़ुर का भी है ।

अब हम ये बात मानकर कि ये ऐब बड़े शायरों के यहाँ भी पाया जाता है,इसे बिल्कुल नज़र अंदाज़ कर दें तो ये हमारी ग़लती होगी,और वैसे भी अगर कोई बड़ा कोई ग़लती करता है तो छोटों को उसे ये कहकर नहीं दुहराना चाहिए कि हमारे बड़े भी ऐसा ही करते हैं ।

उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी?

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:15am

भाई Ganga Dhar Sharma 'Hindustan जी सराहना के लिए ह्रदय तल से आभार | 

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on December 29, 2018 at 12:07am

...आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहब, बहुत ही उम्दा गजल .... हर शेर के लिए बधाई स्वीकार करें...

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 28, 2018 at 10:37pm

शुक्रिया भाई PHOOL SINGH जी ,सराहना के लिए 

Comment by PHOOL SINGH on December 28, 2018 at 2:25pm

सुंदर ग़ज़ल रचना बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
13 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service