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 उसका बदला हुआ तर्ज़े करम सताता था 
 यार बेज़ार था कुछ यूँ कि कम सताता था //१
 
 होके कुछ यूँ वो ब मिज़गाने नम सताता था 
 कब मैं समझा कि वो अबरू-ए-ख़म सताता था //२ 
 
 दूर रहने पे तेरी क़ुरबतों की याद आई
 पास रहने पे जुदाई का ग़म सताता था //३ 
 
 जिनको इफ़रात थी रिज़्को ग़िज़ा की जीने में 
 ऐसे लोगों को भी कर्बे शिकम सताता था //४ 
 
 पैकरे लफ़्ज़ के जल्वों में मुंकशिफ़ होकर 
 मेरे अहसास को हुब्बे कलम सताता था //५ 
 
 बेवफ़ा की मैं समझता था सादा पुरकारी 
 और, क्यों हुस्न का फ़ैज़े निअम सताता था //६ 
 
 ता'न उसकी यूँ सताती थी मेरे सीने को 
 ज्यों मेरी जेब को वज़्ने दिरम सताता था //७ 
 
 मर गए तो हमें हाले अदम सताता है 
 साँस थी तो गमे बूदे किदम सताता था //८ 
 
 अब तो तू है नहीं पे तेरे पास रह के भी
 कब नहीं राज़ को तेरा अलम सताता था //९
~ राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
तर्ज़े करम- कृपा करने का ढंग; बेज़ार- विमुख; ब मिज़्गाने नम- भीगी बरौनियों के साथ; तिरछी भौहें (शेर में- तिरछी भौहों वाला); गिज़ा- भोजन, खाद्य पदार्थ; रिज्क- भोजन, जीविका, रोज़ी; कर्बे शिकम- अंतड़ियों का दर्द; पैकरे लफ़्ज़ के जल्वों में मुंकशिफ़- शब्दों के शरीर की छटा में अभिव्यक्त; हुब्बे कलम- कलम का प्रेम; सादा पुरकारी- दिखने में भला, मगर सच में धूर्त होने का भाव, छलिया पान; फ़ैज़े निअम- नेमतों से प्राप्त होने वाले लाभ; ता'न- कटाक्ष, व्यंग; वज़्ने दिरम- सिक्कों का बोझ; हाले अदम- परलोक की परिस्थिति; गमे बूदे किदम- प्राचीन अस्तित्व का दुःख;
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर.
आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय राहुल डांगी साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर.
आदरणीय शैलेश चंद्राकर साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर.
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर.
अच्छी ग़ज़ल
बहुत बढिया ग़ज़ल है राज़ नवादवी जी, बहुत बधाई।
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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