For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही गजल
2122 1212 22

बिन किसी बात रूठ जाने का
क्या करें उनके इस बहाने का?

चैन मिलता है जिसको गम देकर
छोड़ता मौका कब सताने का।

ज्यों क़दम आपके पड़े तो लगा
*बख़्त जागा ग़रीब खाने का*।

जह्र देकर मिज़ाज पूछ रहे
देखो अंदाज आजमाने का।

यूँ भी दीपक कोई जले यारो
हक मिले सबको मुस्कुराने का।


मैल दिल से नहीं गया तो बोल
फाइदा ही क्या आने जाने का

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 12, 2017 at 9:51am
आदरणीय समर कबीर सर,मैं इस शेर में कुछ तब्दीली कर रहा हुN,पुनः गौर फरमाएगा,सादर
Comment by Samar kabeer on November 9, 2017 at 11:13pm
मीर का मिसरा है :-
'क्या बूद्-ओ-बाश पूछो हो पूरब के साकिनों'
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 9, 2017 at 10:09pm
आदरणीय अफरोज सहर जी,उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार। आदरणीय समर साहब के सुझाव व मार्गदर्शन अनुरूप परिष्कार का प्रयास किया है।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 9, 2017 at 10:06pm
आदरणीय बृजेश भाई जी,प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 9, 2017 at 10:05pm
आदरणीय समर कबीर जी,सादर नमन! उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार। मार्गदर्शन के लिए भी तहेदिल आभार। दीपक वाला मिसरा आपके सुझाव अनुसार कर लिया है। /पूछो हो/ व्याकरण सम्मत नहीं लग रहा है। गेयता के हिसाब से आपका सुझाव बहुत बढ़िया है। पुनः आभार सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 9, 2017 at 10:00pm
आदरणीय मुहम्मद आरिफ साहब अनुमोदन व प्रोत्साहन के लिए तहे दिल शुक्रिया।
Comment by Afroz 'sahr' on November 7, 2017 at 10:55pm
आदरणीय सतविंदर जी इस रचना पर बधाई आपको । समर सहिबकी बातों पर गो़र कीजिएगा ,सादर,,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2017 at 9:00pm
वाह वाह आदरणीय सतविंदर जी बहुत शानदार ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Samar kabeer on November 6, 2017 at 5:23pm
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'ज़ह्र दे पूछते कि कैसे हो'
इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ जायेगी:-
'ज़ह्र देकर मिज़ाज पूछो हो
'कोई दीपक यूँ भी जले यारो'
इस मिसरे को यूँ कर लें गेयता बढ़ जायेगी:-
'यूँ भी दीपक जले कोई यारो'
Comment by Mohammed Arif on November 6, 2017 at 8:09am
आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब,एक अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जनाब, Gajendra shotriya, आ.' 'मुसाफिर ' साहब को प्रेषित मेरा प्रत्युत्तर आप, कृपया,…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
5 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service