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नयन भी तरस गये ( कविता)

छम छम करती हुई
आयी जब वो छत पर
चाँद भी जैसे ठहर सा गया
यौवन उसका देखकर
श्वेत वस्त्रों में लिपटी हुई
कुछ शरमाई कुछ अलसायी
देख रही थी बादलों को
लगा मानो कह रही हो
बुला दो मेरे प्रियतम को
देख उसको बादल भी बरस पड़े
पीड़ा थी जुदाई की
या थी प्रीत की जीत
चाँद भी जा चूका था
बादल भी बरस गये
पिया के दरस को
नयन भी तरस गये |

मौलिक एवं अप्रकाशित


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Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 9:03pm
आदाब जनाब समर साहब । आपको रचना पसंद आई सार्थक हुआ यह प्रयास । बहुत बहुत शुक्रिया सर ।
Comment by Samar kabeer on October 6, 2016 at 8:50pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत सुंदर रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 5:51pm

धन्यवाद आदरणीय रवि शुक्ल जी |

Comment by Ravi Shukla on October 6, 2016 at 2:28pm

आदरणीया कल्‍पना जी बहुत बहुत बधई इस कविता के लिये । 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 11:00am
धन्यवाद आदरणीय शिज्जु भैया ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 10:39am

मार्मिक कविता हुई है आ. कल्पना दीदी बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 10:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब तस्दीक साहब | आपका रचना पसंद आई सार्थक हुआ यह प्रयास मेरा |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 5, 2016 at 9:28pm

मोहतरमा  कल्पना    साहिबा  ,  दीदार और इंतज़ार के मंज़र को दर्शाती सुन्दर कविता के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 7:59pm

धन्यवाद आदरणीय बासुदेव जी |

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 5, 2016 at 7:58pm
आदरणीय कल्पना जी वियोग श्रृंगार का सुंदर वर्णन।

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