For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 4

केकय नरेश अश्वपति ब्रह्मज्ञानी के रूप में विख्यात थे। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इस संबंध में उनसे राय लेने आते रहते थे। कहते तो यहाँ तक हैं कि उन्हें पशु-पक्षियों की बोलियाँ भी आती थीं। एक कथा प्रचलित है कि एक बार अश्वपति महारानी के साथ बगीचे में टहल रहे थे। बगीचे में पक्षियों की चहचहाहट एक स्वाभाविक ध्वनि होती है। अचानक महाराज हँस पड़े। महारानी असमंजस से पूछ बैठीं -
‘‘महाराज मैंने कोई हास्यास्पद बात तो नहीं की जो आप हँस रहे हैं।’’
महाराज ने हाथ से उन्हें शान्त रहने का इशारा किया और बड़े गौर से कहीं कान लगाकर सुनने लगे। महारानी को समझ नहीं आ रहा था कि महाराज क्या सुनने की कोशिश कर रहे हैं। पक्षियों के कलरव के अतिरिक्त वहाँ और कोई आवाज नहीं थी। इसी बीच महाराज फिर हँसने लगे फिर महारानी से संबोधित होते हुये बोले -
‘‘हाँ महारानी जी ! अब बताइये क्या कह रही थीं ?’’
‘‘मैं क्या कह रही थी उसे तो छोड़िये। मेरी बातें तो आपको सुनने योग्य लगती ही नहीं।’’ महारानी भी सामान्य स्त्रियों की भांति ही व्यवहार करने लगी थीं।
‘‘अरे नहीं भाई ! किसने कह दिया कि मुझे आपकी बातों में रस नहीं मिलता।’’
‘‘रस मिलता होता तो मेरी बात को यों अनदेखा करके हवा को सुनने का दिखावा नहीं करते।’’
‘‘महारानी जी मैं हवा को नहीं सुन रहा था।’’
‘‘तो फिर क्या सुन रहे थे ? और हँस क्यों रहे थे ? मेरी बात का उपहास कर रहे थे न !’’
‘‘नहीं महारानी जी !’’
‘‘नहीं तो फिर बताते क्यों नहीं कि क्यों हँस रहे थे ?’’
‘‘वो उधर वृक्ष पर बैठा एक पक्षी-युगल कुछ मनोरंजक बातें कर रहा था, उसी को सुनने लगा था। उसी को सुनकर हँसी भी आ गई थी।’’
‘‘महाराज मुझे क्या आप नन्हा सा बच्चा समझते हैं जो आपकी इन तथ्यहीन बातों में आ जाऊँगी ? भला पक्षियों की बातों का भी कोई महत्व हो सकता है। यदि होता भी हो तो आपको क्या पता कि वे क्या बातें कर रहे थे।’’
‘‘महारानी जी ! कभी-कभी अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं पक्षियों की बातें। और भाग्य से कहिये या दुर्भाग्य से मैं उनकी बातें समझ सकता हूँ।’’
‘‘तो बताइये फिर क्या कह रहे थे वे ?’’ महारानी को महाराज की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वे यही समझ रही थीं कि महाराज उनकी हँसी उड़ा रहे थे। इसी कारण उनकी चिढ़ और क्रोध बढ़ते ही जा रहे थे। वे अब लगभग जिद पर आ गई थीं।
‘‘नहीं महारानी जी ! यह हम नहीं बता सकते।’’
‘‘फिर बहाना ! क्यों नहीं बता सकते हैं। हमें तो बाँदी ही समझते हैं आप।’’
‘‘नहीं महारानी जी ! ऐसी बात नहीं है। पर हमारी विवशता है कि हम किसी को नहीं बता सकते कि वे क्या बात कर रहे थे।’’
‘‘आखिर क्यों नहीं बता सकते।’’ महारानी भी अपनी जिद पर अड़ी थीं।
‘‘क्योंकि यदि हमने बता दिया तो उसी क्षण हमारी मृत्यु हो जायेगी। क्या आप वैधव्य की आकांक्षी हैं ?’’
‘‘ये सब बहानेबाजी है। वस्तुतः आप हमें नीचा दिखाना चाहते हैं।’’
‘‘भला हम आपको नीचा क्यों दिखाना चाहेंगे ?’’
‘‘मुझे नहीं पता। किंतु यदि ऐसा नहीं है तो फिर बताइये कि वे क्या बातें कर रहे थे ?’’
‘‘मैंने कहा न कि मैं नहीं बता सकता। विवशता है।
‘‘पुनः वही अनर्गल बात !’’ कहती हुयी महारानी क्रोध से पैर पटकती हुयी चली गयीं।
क्रोध महाराज को भी आ गया था - ‘इस स्त्री को अपने पति के जीवन की चिंता नहीं है, बस अपनी वृथा की जिद ही प्यारी है। फिर भी उन्होंने आवाज दी -
‘‘रुकिये महारानी। अनावश्यक क्रोध उचित नहीं है।’’
पर महारानी नहीं रुकीं।
महाराज को महारानी के आचरण से अपार क्लेश हुआ था। वे सोच रहे थे कि ऐसी औरत तो कभी भी उनके लिये ही नहीं राज्य के लिये भी संकट का कारण बन सकती है। उन्होंने उनके त्याग का निश्चय कर लिया। दृढ़ निश्चय। इसकी किसी भी बात पर अब विश्वास नहीं करना है। किसी भी पछतावे के दिखावे पर ध्यान नहीं देना है।


दूसरे ही दिन उन्होंने रथ तैयार करवाया और सैनिकों की एक टुकड़ी के संरक्षण में महारानी को उनके मायके भिजवा दिया - इस निर्देश के साथ कि अब केकय राज्य में उनके लिये कोई स्थान नहीं है।
महारानी का तो निर्वासन हो गया किंतु अब प्रश्न था अल्प-वयस्क पुत्री की उचित देखभाल का। किसे सौंपें यह दायित्व। कैकेयी अभी मात्र 7 साल की ही तो है। यही समय है उसके चरित्र के विकास का। वह अब धीरे-धीरे चीजों को समझने लगी है। इस समय यदि उसकी भावनायें गलत राह पर मुड़ गयीं तो ... महारानी के साथ और रहने से तो उसके ऊपर भी गलत असर ही पड़ता।
अचानक उन्हें ध्यान आया चपला का जिसका राजकीय उपचारगृह में विगत 3 साल से उपचार चल रहा था। महाराज उसके साहस से अत्यंत प्रभावित थे। उसे भी उचित संरक्षण की आवश्यकता थी। उन्होंने निश्चय कर लिया कि उसे ही कैकेयी की संरक्षिका नियुक्त करेंगे।
इस प्रकार चपला कैकेयी की संरक्षिका बन कर कैकय नरेश अश्वपति के राजप्रासाद में आ गयी। चपला के घाव भर गये थे पर उसका चेहरा घोड़े का पैर पड़ जाने के कारण कुरूप हो गया था। रीढ़ की हड्डी जुड़ गयी थी पर कमर स्थाई रूप से इस बीस साल की उम्र में ही झुक गयी थी। जाँघ की हड्डी भी जुड़ अवश्य गई थी पर चाल में लंगड़ाहट आ गई थी। उसकी गति मंथर हो गयी थी और इस मंथर गति के कारण ही उसका नाम चपला से अपने आप मंथरा हो गया था। उसे स्वयं भी इस नाम से पुकारे जाने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह तो अब जी रही थी तो रावण को नेस्तनाबूद करने के उद्देश्य से ही जी रही थी। अपने संकल्प के लिये जी रही थी।
मंथरा के संरक्षकत्व ने कैकेयी की विचारधारा को भी निश्चय ही प्रभावित किया। झुकी कमर और लँगड़ी चाल के बावजूद मंथरा को शस्त्र संचालन में रुचि थी जिसने उसकी रुचि भी इस ओर जाग्रत की। सच कहा जाये तो रुचि तो उसकी पहले भी थी किंतु कोई खास उत्साह नहीं था। उसकी माता ने कभी इस रुचि को प्रोत्साहन ही नहीं दिया था। मंथरा के सान्निध्य में उसकी यह रुचि भली-भाँति विकसित होने लगी। शीघ्र ही वह अस्त्र-शस्त्रों के संचालन में निपुण हो गयी। रथ के अश्वों के संचालन में तो उसका जवाब ही नहीं था।
10 वर्ष बीत गये थे उसे मंथरा के संरक्षण में कि तभी अचानक महाराज दशरथ का संदेशा लेकर दूत आ पहुँचा। उन्होंने दूत से एक दिन केकय देश का आतिथ्य स्वीकार करने का निवेदन किया। महाराज इस मसले में किसी आवेग में निर्णय नहीं लेना चाहते थे। दशरथ शक्तिशाली सम्राट थे। उनके मित्र भी थे, उनसे वैर लेना राजनैतिक दृष्टि से कदापि उचित नहीं था। फिर भी कैकेयी से परामर्श करना उचित था। आखिर दशरथ की आयु उससे ठीक दूनी थी। क्या वह इस संबंध के लिये तैयार होगी। जबरदस्ती उस पर संबंध थोपना उन्हें स्वीकार नहीं था।
‘‘पिताजी ! महाराज दशरथ जैसा योद्धा तो साठ साल में भी बूढ़ा नहीं होता, फिर अभी तो वे जैसा आपने बताया 35 वर्ष के ही हैं।’’
‘‘तो तुम इस संबंध के लिये तैयार हो ?’’
‘‘जी पिताजी ! अयोध्या आर्यावर्त का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य है। उसकी रानी बनना भला मुझे क्यों स्वीकार नहीं होगा ?’’
‘‘किंतु दशरथ विवाहित हैं। तुम उनकी दूसरी रानी बनोगी। क्या इस रूप में तुम्हें उचित सम्मान मिल पायेगा वहाँ ?’’
‘‘पहली रानी से महाराज को संतान प्राप्त नहीं हुई है। इसीलिये तो वे दूसरा विवाह कर रहे हैं। इस स्थिति में जो रानी उन्हें संतान देगी उसका वर्चस्व अपने आप ही बन जायेगा। गलत कह रही हूँ मैं ?’’
‘‘गलत तो नहीं कह रही हो किंतु फिर भी सोच लो। मेरा कोई दबाव नहीं है तुम्हारे ऊपर इस संबंध को स्वीकार करने के लिये।’’
‘‘मैंने सोच लिया पिताजी ! आगे कुछ ईश्वर को भी तो सोचने दीजिये।’’
‘‘ठीक है तो मैं स्वीकृति दिये देता हूँ दूत को। फिर भी कुछ आवश्यक शर्तें अवश्य जोड़ दूँगा।’’
‘‘वह आपके सोचने का विषय है।’’

क्रमश: --------------------------

मौलिक एवं अप्रकाशित

                             ------------------------------------------------------ सुलभ अग्निहोत्री

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on June 23, 2016 at 11:02am

स्वीकार है सौरभ जी, ठीक कर दिया।

Comment by Sulabh Agnihotri on June 23, 2016 at 11:01am

आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 23, 2016 at 1:18am

अच्छा, तो वाचाल दुस्साहसी चपला की घटना या दुर्घटना को यह स्वरूप मिलना था ! .. :-))

बहुत खूब ! उसके विचारों में आर्य और अनार्य का पहली कड़ी में बढ़िया बुलबुला फूटते बताया था आपने.. हा हा हा...

कैकेयी के पिता अश्वपति द्वारा अपनी पत्नी को त्यागने की घटना को अच्छी विवेचना मिली है. 

किंतु फिर भी सोच लो ... इस वाक्य में किन्तु और फिर भी एक साथ आये हैं. जबकि दोनों का निहितार्थ एक ही है. किसी एक को लेना था.

बढ़िया जा रहे हैं .. हार्दिक शुभकामनाएँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2016 at 10:04pm

अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा आ० सुलभ जी हार्दिक आभार आप हमको वो सब ज्ञान दे रहे हैं जो प्राय हम भूल चुके थे या कुछ बातों का पता ही नहीं था | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service