For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212     1122      1212      22

 

कहाँ गए थे यूँ ही छोड़कर मुझे तनहा

बिना तुम्हारे मुझे ये जहां लगे तनहा  

 

कभी-कभी तो बहुत काटता अकेलापन

मगर न भूल कि पैदा सभी हुये तनहा

 

तमाम उम्र जो बर्दाश्त है किया हमने     

समझ वही सकता जो कभी जिये तनहा

 

मगर न फिर कभी वो बात रात आ पायी

है याद आज भी वो शाम जब मिले तनहा

 

बिखर ही भीड़ में जाती बुलंद आवाजे

है आरजू मुझे कोई कभी सुने तनहा  

 

अजीब ढंग से उसने भी है गढ़ी किस्मत

उधर जो आप तो हम भी इधर रहे तनहा

 

यहाँ जहान में क्यों है किसे पता जीवन

है जिदगी यहाँ तनहा तो मौत भी तनहा 

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on June 12, 2016 at 10:36pm
आदरणीय गोपाल भाईजी,आपकी बेबाकी सीखनेवालों के लिए संबल है।फिलहाल एक अच्छी गजल के लिए बधाई कबूल फरमाएँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 12, 2016 at 4:18pm

अच्छी कोशिशें अच्छे परिणामों का वाहक होती हैं. आपकी कोशिश पर मन मुग्ध है. वैसे भी कहन और कथ्य केलिए कहना ही क्या ! आप अनुभवी और प्रकृति-पारखी तो हैं ही.. ! 

सादर शुभकामनाएँ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2016 at 8:33am

आ०अनुज  भंडारी जी , आपका समर्थन पाकर मन में बड़ा   संतोष हुआ . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2016 at 8:31am

आ० राजेन्द्र कुमार जी , प्रोत्साहन हेतु  धन्यवाद.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2016 at 8:30am

आ० जयनित  त्कुमार जी . आपका सादर आभार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2016 at 8:28am

आ० रवि शुक्ल जी , आप मेरी गजलों पर अपना समय देकर मेरा हौसला बढ़ रहे हैं .मै आभारी हूँ . गजल रचना मैंने ओ बी ओ मंच पर लिखनी शुरू की है अभी बिलकुल नौसिखिया हूँ पर प्रयास कर रहा हूँ. . आपकी इस्लाह मेरी ताकत है आप इस सिलसिले  को बनाये रखें . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2016 at 7:56am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बेहतरीन गज़ल हुई है , बहुत कठिन बह्र पर आपने काम किया और सफलता पूर्वक काम किया । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Rajendra kumar dubey on June 11, 2016 at 7:30am
आदरणीय गोपाल जी एकअच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 10, 2016 at 10:49pm
आदरणीय गोपाल जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बल्कि कुछ शेर तो कमाल के बन पड़े हैं। हार्दिक बधाई इसके लिये।

आदरणीय रवि शुक्ला जी की सलाह एकदम वाज़िब है, ये ग़ज़ल बेहतरीन हो सकती है।
सादर!!
Comment by Ravi Shukla on June 10, 2016 at 5:17pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी  आपको ग़ज़ल कहते देख कर बहुत खुशी होती है बधाई स्‍वीकार करें इस आहंग खेज बह्र को साधने के लिये 

तमाम उम्र जो बर्दाश्त है किया हमने     

समझ वही सकता जो कभी जिये तनहा  इस में सानी मिसरे को अगर इस तरह से करे तो देखियेगा 

समझ सका है वही जो कभी जिये तनहा      सकता सगण के अनुसार 112 है । 

मगर न फिर कभी वो बात रात आ पायी

है याद आज भी वो शाम जब मिले तनहा  हमें लगता है उला मे रात को किसी अन्‍य शब्‍द से बदलना चाहिये क्‍योंकि कथन को देखें तो वो बात वो रात नहीं आई और सानी में  हमें वो शाम आज तक याद है जब हम तनहा मिले थे । सानी अपने आप मे पूरा है और बहुत शानदार तरीके से व्‍यक्‍त हुआ है । 

बिखर ही भीड़ में जाती बुलंद आवाजे

है आरजू मुझे कोई कभी सुने तनहा    वाह वाह वााह डाक्‍टर साहब क्‍या ख्‍याल लाए है निकाल के बहुत बहुत बधाई 

अजीब ढंग से उसने भी है गढ़ी किस्मत

उधर जो आप तो हम भी इधर रहे तनहा   अय हय अय हय  वाह वाह उदास दिल की कोई सूरत देखना चाहे तो इस श्‍ेार में तलाश सकता है   इसे शेर को आप चाहे तो थोड़ी नफासत और दे सकते है । 

यहाँ जहान में क्यों है किसे पता जीवन

है जिदगी यहाँ तनहा तो मौत भी तनहा   इस शेर में जीवन के प्रति जगत के प्रति आपका दर्शन स्‍पष्‍ट समझ आ रहा है 

बहुुत बहुत बधाई आदरणीय आपको इस गजल के लिये । आपसे और भी ग़ज़लों की अपेक्षाएं बढ गई है । गजल हमारी दीवानगी है इसलिये इस पर चर्चा के लिये सदैव तत्‍पर रहते हैै आशा है आप छोटा मुह बड़ी बात न लेकर अपना आर्शीवाद बनाये रखेंगे । सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
14 minutes ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
56 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला बहुत खूबसूरत हुआ,  आदरणीय भाई,  नीलेश ' नूर! दूसरा शे'र भी कुछ कम नहीं…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
". तू है तो तेरा जलवा दिखाने के लिए आ नफ़रत को ख़ुदाया! तू मिटाने के लिए आ. . ज़ुल्मत ने किया घर तेरे…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. लक्ष्मण जी,मतला भरपूर हुआ है .. जिसके लिए बधाई.अन्य शेर थोडा बहुत पुनरीक्षण मांग रहे…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. आज़ी तमाम भाई,मतला जैसा आ. तिलकराज सर ने बताया, हो नहीं पाया है. आपको इसे पुन: कहने का प्रयास…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
12 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service