"अरे!जानती हो आचार्य जगत ज्ञानी जी की पुत्रवधु मरते-मरते बची। बस भगवान ने साँसे बख्श दी। वर्ना ऐसा दुःख मिला है जीवन भर कलेजे में ठुंसा रहेगा।बेचारी!"
 बैठने के लिए पीढ़ा सरकाते हुए मुख्तारी ताई एक साँस में बोल गई।
 "हाँ! सुना तो है कि कल उसकी तबियत ज्यादा ख़राब हो गई थी। शहर के नर्सिंग होम में ही दाखिल है। अभी तक..."
कुछ सोचते हुए फिर बोली, "अब तो उसकी तबीयत में काफी सुधार है।फिर आप किस दुःख की बात कर रही हो ताई?"
सहमते हुए।
"अरे! जानती हो न कि उसका प्रसव का समय नजदीक ही था।"
"हाँ ये तो जानती हूँ कि........था!"
बोलते-बोलते चोंकी।
"मतलब क्या हुआ ताई?"
ताई गाल को हाथ का सहारा देते हुए, "कल ही प्रसव पीड़ा का अंदेशा हुआ। लड़का घर पे था नहीं। आचार्य जी थे। जैसे ही अंदेशा हुआ सास ने आचार्य जी को बोला कि या तो पड़ोस वाली नर्स को बुला लें या बहु को लेकर हस्पताल ले जाने की तैयारी करें।"
"फिर?"
"फिर क्या ज्योतिषाचार्य जो ठहरे। पहले तो बैठ गए पोथी खोल कर। काफी समय गणना करने के बाद बोले कि पूरे एक घण्टे बाद शुभ लग्न शुरू होगा। यदि उससे पहले बच्चे का जन्म होता है तो यह माता-पिता व दादा-दादी पर बहुत भारी रहेगा।"
"बहू की हालत तो...
चिंता में बस इतना ही बोल पाई।
"देरी से बहू को अस्पताल ले जाया गया और तब तक हालत इतनी बिगड़ गई थी कि डॉ बड़ी मुश्किल से बस बहू को ही बचा पाए।"
"हैंsss..?"
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सतविन्द्र जी,
सुन्दर भाव के साथ कथा कही गयी है. सादर.
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