For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिक्शा वाला -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

रिक्शा वाला

************

आपको याद तो होगा

वो रिक्शा वाला

 

गली गली घूमता ,

माइक में चिल्लाता , बताता

आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है

पर्चियाँ हवा में उड़ाता

पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे

बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता

किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता

बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,

एक जानकारी सब से साझा करता

 

न कोई आग्रह , न अपेक्षा  

और न ही शिकायत

आपके उस टाकीज़ तक न पहुँचने की

 

एक और रिक्शा वाला

पर्चियाँ उड़ाके ये बात साझा करता है

अपेक्षाओं और आग्रहों की ज़मीन में ही

पुष्पित पल्लवित होतीं है,

निराशायें , दुख- तकलीफें  

 

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

फिर भी

 

चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें

रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन

उसी उत्साह के साथ

और पर्चियाँ ले के

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 870

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 8:12am

आदरणीय बागी भाई जी , आपकी सराहना रचना को मिली , मन प्रसन्न हो गया । आपकी सलाह का स्वागत है आदरणीय , वैसे मै भी प्रयास करूंगा , अनावश्यक शब्द हटा सकूँ , फिर भी अगर आप सहायता कर दें दो बहुत खुशी होगी । आपका दिली आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 29, 2015 at 9:18pm

बहुत ही सुन्दर भाव युक्त इस अतुकांत कविता पर बधाई देता हूँ आदरणीय गिरिराज भाई साहब साथ ही यह कहना भी चाहता हूँ कि इस रचना से कुछ अनावश्यक शब्दों को हटाकर कविता को कॉम्पैक्ट किया जा सकता है जिससे रचना और निखर सकती है, सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:45pm

आदरणीया सीमा जी , रचना की केंद्रिय भावना तक पहुँच के प्रतिक्रिया देने और सराहना के लिये आपका आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:43pm

आदरणीय विजय भाई , रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:42pm

आदरणीय बड़े भाई , आपका  बहुत बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:42pm

आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by seema agrawal on January 28, 2015 at 9:26pm

पुरानी ज़मीन के खुशनुमा किस्सों का हिस्सा भोपूं पर ख़बरें बाँटता रिक्शेवाला फिर से  याद  हो आया  मगर इस बार  उसकी अहमियत एक नए  दृष्टि कोण से देखने को मिली ...............

अपेक्षाओं और आग्रहों की ज़मीन में ही

पुष्पित पल्लवित होतीं है,

निराशायें , दुख- तकलीफें  

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 28, 2015 at 9:05pm
Delete Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
कहाँ खो गए ? एक लेखक, एक कवि , एक रचनाकार के मनोभावों ( खुशी, उत्साह, वेदनाओं को ) को इतनी सरलता से गा गये.
जो चाहे समेटे ,
न चाहे छोड़ दे,
पर्चियां उड़ाने वाला , फिर आएगा ,
फिर पर्चियां लाएगा, उड़ाएगा,
जो चाहे बीन ले, सहेजे,
रखे या फेंक दे, या देखे भी न.
एक बात और , एक बार जो पर्ची छोड़ दी वह फिर रिक्शेवाले की कहाँ रह गयी. फिर तो नयी पर्चियां ही लानी होगीं।
बधाई,
बाकी प्रतीक्षा में,
सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 8:57pm

मित्र

यह जो एक और रिक्शे वाला है  i वही महत्वपूर्ण है और वही रचना को ऊँचाई प्रदान करता है i बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2015 at 11:02am

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

फिर भी

 

चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें

रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन

उसी उत्साह के साथ

और पर्चियाँ ले के

सही सारगर्भित पंक्तियाँ ....सुन्दर रचना बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service