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"मेरी रचना" (अतुकान्त-कविता )

"मेरी रचना"    

                                                          

देखते-दिखाते

कभी सुनते-सुनाते

चलते –चलाते

कभी पढ़ते-पढ़ाते

कुच्छ करते-कराते

कभी बतियाते

न जाने कब यह  मन

पहुँच जाता कहां है

किसी देवता के

खेल चढ़े गुर की तरह

संबेदनाओं की टंकार से  

हो कर सम्पदित

द्रबित मन

यादों के ढेर पर से

काल की धूली हटाता

चपल भावों की लहरें

शब्दों के पतवार

वाक्यों की हिलोरें

हों जीव-निर्जीव कोई

चीन्हें- अचीन्हें

मन वीणा के तारों को

जो छू लें  

उठें हुलासे

खुद को भूलें

फिर

विस्मय ,व्यथा ,करुणा,आस्था

आदि संवेगों  के झोंके  

या बिरह बेदना के

गीत गुन्जें

जो हंसाएं रुलाएं ऊँघाएं किसी को

रिझाएं खिझाएं रुसाएं किसी को

बने गज़ल कविता या

फिर कोई कहानी

ऐसे रचना मेरी में

पिरोती जाती

लिख-लिख लिखती मेरी लेखनी

कई आयाम घड़े हैं

भौतिकता के अब तक

छूए हैं कई दुर्गम्य शिखर

पाए हैं कई मुकाम अब तक

आशक्त रह कर जिन से मुझ को

मिले हैं क्षणिक

निमेष मात्र सुख

पर अंततः मिले हैं

दुःख और दुःख

पर तू तो है मुझको

सभी आयामों से भी चढ़ कर

सभी मुकामों से भी बढ़ कर

सभी संम्बधों से परे हट कर

जब जब भी हूँ पढ़ता तुझको

न जाने कहीं मैं खो कर

स्वप्नलोक में पाकर

भूल जाता हूँ

खुद ही खुद को

अश्क बहें बेशक आँखों से

पर है मिलता मुझको

सदा चैन-सुकून

तपती भू पर जैसे

बरसे पानी

देती सत्वर तू है

अन्तस्थ में मुझको

परम सुख और जुनून

अब चाह यही है तू सदा

बुन-बुन बाना बनती रहे

फिर फिर बन ठन कर

नये रूपों में संबरती रहे

मेरे प्राणों की लय तक

सदा कल कल सरिता सी बहती रहे

सरस सरस कुच्छ कहती रहे I

 

(मौलिक एवम् अप्रकाशित )

कंवर करतार 'खन्देह्ड़बी'

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Comment

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Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:28pm

सोमेश भाई ,उत्साह बर्धन के लिए शुक्रिया I

Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 11:00am

मेरी रचना का ये सरस भाव ,सभी सृजनकर्ता के भावों का ही प्रस्तुतिकरन  है ,सभी ऐसा ही महसूस करते हैं ,इस रचना पर बधाई 

Comment by कंवर करतार on January 4, 2015 at 9:42pm

श्री युत् बागी जी ,सुझाब के लिए धन्यबाद Iआप जैसे प्रबुद्ध साहित्यकारों से बहुत कुच्छ सीखने को मिलेगा I

Comment by कंवर करतार on January 4, 2015 at 9:28pm

भाई दुवे जी ,धन्यबाद Iसादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 7:26pm
सुन्दर रचना की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 4, 2015 at 4:02pm

//देखते-दिखाते

कभी सुनते-सुनाते

चलते – चलाते

कभी पढ़ते-पढ़ाते

कुछ करते-कराते

कभी बोलते बतियाते

न जाने कब यह मन

पहुँच जाता है कहाँ //

आदरणीय डॉ साहब, अतुकांत कविता पर एक सार्थक प्रयास हुआ है, कुछ टंकण त्रुटियाँ परिलक्षित हो रही हैं, देख लीजियेगा, कुछ और बार इस प्रस्तुति को पढ़ने से और सुगढ़ता की जगह बन सकती है. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 3:12pm

इस रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी जी !

कृपया ध्यान दे...

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