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मैंने चुप की आवाज़ सुनी !

मैंने चुप की आवाज़ सुनी !
जबसे गूँगे से बात करी !!

वर्षों तक देखा है उनको !
तब जाके ये तस्वीर बनी!!

चोर-चोर मौसेरे भाई!
उनकी आपस में खूब छनी!!

कोई कैसे घायल ना हो!
वो थी ही मृग सावक नयनी !!

बीवी साड़ी माँग रही थी!
मेरी तो तनख़्वाह कटनी!!
**************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 12:37am

अमूल्य सुझाव हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय  जी.....  सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 12:16am

’बात करी’ को हम न पचा पायेंगे. कारण, यह व्याकरण सम्मत नहीं है. बाकी भी बस ठीक है.

Comment by ram shiromani pathak on August 19, 2014 at 10:06am

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2014 at 8:05am

आ. राम भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , आपको बधाइयाँ | अंतिम शे र बात कहा नहीं पाया है , और फ्लो भी कम है , देखिएगा |

Comment by ram shiromani pathak on August 18, 2014 at 11:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH  जी!

Comment by ram shiromani pathak on August 18, 2014 at 11:11pm

हार्दिक आभार आदरणीया Meena Pathak जी!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:11pm

हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी!

Comment by Meena Pathak on August 18, 2014 at 7:39pm

बहुत सुन्दर 

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