For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दादी, हामिद और ईद (लघुकथा) // --सौरभ

हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !

इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !

 

ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.
".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं पड़ेगा.. जब हामिद वापस चला जायेगा, अपनी बहुरिया के साथ, अपने बेटे के साथ.. "
************************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 2776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2023 at 12:49pm

आदरणीया राहिलाजी, प्रस्तुति पर आपकी टिप्पणी केलिए आपका हार्दिक धन्यवाद. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2015 at 11:03pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी, आपकी संवेदनापूरित प्रतिक्रिया से मन तुष्ट हो गया. प्रस्तुति पर आपकी दृष्टि के लिए मैं हृदय से धन्यवाद कह रहा हूँ. 

Comment by Rahila on November 12, 2015 at 7:22pm

बहुत ही जबरदस्त रचना आदरणीय सौरभ जी ! मैं कुछ भी कहूं तारीफ़ में तो भी कम होगा । बहुत बधाई आपको । सादर ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 12, 2015 at 6:07pm
दर्दोग़म को छिपाने और ख़ुशी ज़ाहिर करने तथा होठों पर मुस्कान बिखेर देने की नैसर्गिक कला भारतीय महिलाओं में कूट-कूट कर भरी हुई है। हामिद आया , कुछ लाया और फिर चला जायेगा बहुरिया के साथ ,ऐसा आज भी तो हो रहा है,प्रेमचंद जी की कालजयी कथा के समय के पात्र आज किस रूप में हो सकते हैं, बखूबी चित्रित करने के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2014 at 10:44pm

इस लघुकथा को अनुमोदित करने केलिए सादर आभार, आदरणीया कल्पनाजी..

Comment by कल्पना रामानी on August 23, 2014 at 9:27pm

स्वार्थ की पराकाष्ठा को पर  करती आपकी लघुकथा मन को अंदर तक व्यथित कर गई, उत्कृष्ट रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 11:03pm

आदरणीया छायाजी, रचना पर समय देने और उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 11:03pm

भाई हमनाम, आपने काश देवनागरी लिपि में अपना कहा उद्धृत किया होता.
मुझे इस शब्द shakhanvit का ही अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ.
बहरहाल समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 11:03pm

धन्यवाद आदरणीया कविताजी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 11:02pm

भाई दीपकजी, आपने इस प्रस्तुति पर समय दिया, हार्दिक धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service