For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम ही तुम..........बृजेश

निःश्वसन

उच्छ्वसन

सब देह-कर्म, यह अवगुंठन

मोह-पाश के बंधन तुम

बस तुम! तुम ही तुम

 

व्यक्त हाव

अव्यक्त भाव

नेह-क्लेश, अभाव-विभाव

रूप-गंध के कारण तुम

बस तुम! तुम ही तुम

 

सम्मुख हो जब

विमुख हुए, तब 

मनस-पटल की चेतनता सब 

अनुभूति-रेख में केवल तुम

बस तुम! तुम ही तुम

- बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 856

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on April 14, 2014 at 7:56pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 14, 2014 at 7:55pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2014 at 7:21pm

सम्मुख हो जब

विमुख हुए, तब 

मनस-पटल की चेतनता सब 

अनुभूति-रेख में केवल तुम

बस तुम! तुम ही तुम

नीरज भाई बहुत सुन्दर शब्द बंधन गूढ़ सुन्दर रचना
भ्रमर ५


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 3, 2014 at 9:19am

देह भाव अनुभूतियाँ दृश्य अदृश्य सबमें व्याप्त उस 'तुम' को पहचानते हुए उस तुम के साथ एक हो जाने पर ही ऐसी अभिव्यक्ति संभव है...

बहुत  गहन रचना 

आ० बृजेश जी आपको सादर बधाई इस अभिव्यक्ति पर.

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2014 at 6:53pm

आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार! जो कुछ भी, जितना कुछ भी मेरी कलम चल पा रही है, इस मंच की ही देन है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 3:01am

इस मंच पर आपकी इस रचना ने अपना स्थान बनाया है. यह रचना सामान्य सी घटना या रुटीनी प्रस्तुति नहीं है.
शरीर मन और चेतना. इन तीन विन्दुओं को इतनी सुगढ़ता से आपने बाँधा है कि बरबस दिल वाह कर उठता है.

इस मंच पर अभीतक प्रस्तुत हुई वैचारिक रचनाओं के सामने चुनौती की लकीर खींचती हुई है प्रस्तुत होती है यह रचना.
यह तो हुई विधाजन्य बातें.

भाई बृजेशजी, एक कवि के तौर पर आप एक बड़ी छलाँग लगाते हुए आगे आये दिखे हैं. कविता की इस विधा की मांग को समझना एक बात है, उस मांग को पूरा करने के क्रम में बिना पूर्वर्तियों का अंधानुकरण करते हुए अपनी बात करना ही मुख्य बात है. आप इसी विन्दु पर सफल हुए हैं.
हार्दिक बधाई और हृदय से शुभकामनाएँ.

Comment by बृजेश नीरज on March 26, 2014 at 7:46pm

आदरणीय शरदिंदु जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्द मुझे बहुत प्रोत्साहित करते हैं!

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 26, 2014 at 2:20am
बृजेश जी, आपकी यह रचना आपके लगातार प्रयोग करने की सुघढ़ प्रवृत्ति और उन्नत चिंतन का जाज्ज्वल्यमान उदाहरण है. एक पाठक के तौर पर आत्मा को प्रगाढ़ शांति की अनुभूति हुई. आपको हृदय से साधुवाद. सादर.
Comment by बृजेश नीरज on March 25, 2014 at 9:22pm

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना रोचक लगी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ!

Comment by बृजेश नीरज on March 25, 2014 at 9:22pm

आदरणीय निकोर साहब आपका बहुत-बहुत आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service