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कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें

कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें

इस गुबारे-गर्द में सहरों की बातें क्या करें

 

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें

 

इस कदर मसरूफ हैं पाने को नाम औ शोहरतें

वक़्त इक पल का नहीं पहरों की बातें क्या करें

 

तुक मिलाने को समझ बैठा जो शाइर शाईरी

नासमझ से वजन औ बहरों की बातें क्या करें

 

नफरतें हैं वहशतें हैं दहशतें हैं राह में

हर घडी है गमजदा कहरों की बातें क्या करें

 

आँख का पानी हवा में उड़ गया है “दीप” तब

बैठ बंजर खेत में नहरों की बातें क्या करें

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2013 at 6:01pm

एक सुन्दर और क़ामयाब कोशिश ..

बधाई लें, आदरणीय संदीप भाईजी

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 10:57pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है .. खास कर आख़िरी के शेर बहुत अच्छे बन पड़े हैं

हार्दिक बधाई

एक जगह आपका ध्यान आकर्षित करवाना चाहता हूँ

इस गुबारे-गर्द में सहरों की बातें क्या करें


मेरी  जानकारी में सही लफ़्ज़  सहराओं होना चाहिए सहरों स्वीकार्य नहीं है



Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2013 at 3:38pm

आदरणीय मित्रवर अरुण भाई साहब

इस सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 30, 2013 at 1:24pm

वाह वाह मित्रवर वाह वाह लाजवाब ग़ज़ल बेहतरीन अशआर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:47am

आदरणीय विजय मिश्र जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 11:46am
बहुत संजीदा गज़ल .बधाई संदीपजी .
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:34am

बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया मीना जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:34am

बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय विजय निकोर सर

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:33am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जीत जी सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:33am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया अन्नपूर्णा जी सादर

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