For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोस्तों इस मंच पर अपनी पहली रचना पोस्ट कर रहा हूँ........

गिन रहे हैं जिस तरह से आती-जाती सांस को हम......

उस तरह तुमने कभी क्या अपनी साँसों को गिना है ?

सीप की मानिंद दृढ़ है माना ये चेहरा हमारा.....

कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.......

मैं तुम्हारे संग बीते कुछ पलों को जी रहा हूँ......

सत्य ये है तुम बिना जीवित कहाँ अजी रहा हूँ....

देखते ही देखते "कल" हो गया है "आज" सारा....

किन्तु मैं निष्प्राण सा बस अब तलक माज़ी रहा हूँ......

मेरे सारे क़हक़हों का है बही सारे जहां पर ......

किन्तु दुख तो अनकहा है अनसुना है अनगिना है...

कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.......

अब भी जां  देता है कोई क्या तुम्हारी हूक पर.....??

वार देता है स्वयं की भूख तेरी भूख पर.....

अब भी कोई है जो देकर तुझको साफ कुर्सियां......

बैठ जाता है स्वयं मिट्टी लगे सन्दूक पर.......

कुर्सियां सब मेरे घर की वर्षों से खामोश है.......

कितना उदास मिट्टी लगा सन्दूक सच तेरे बिना है......

कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.......

KAVI DEEPENDRA

{अप्रकाशित.....मौलिक.....}

 

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 6, 2013 at 7:48am

बृजेश भाई बहुत आभार.....

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 11:11pm

बहुत सुन्दर रचना। आपको ढेरों बधाई। 

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 5, 2013 at 3:57pm

अशोक भाई बहुत आभार.....

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 3:22pm

अब भी जां  देता है कोई क्या तुम्हारी हूक पर.....??

वार देता है स्वयं की भूख तेरी भूख पर.....

अब भी कोई है जो देकर तुझको साफ कुर्सियां......

बैठ जाता है स्वयं मिट्टी लगे सन्दूक पर....... ओहो हो हो वाह! गजब है.दिल खुश कर दिया भाई कवि श्री दीपेन्द्र जी  आपको प्रथम बार पढ़ना बहुत सुन्दर लगा, यूँ ही सुन्दर रचनाएं करते रहें. स्वागत है आपका इस मंच पर. बहुत बहुत बधाई.

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 4, 2013 at 7:39pm

प्रियंका जी आपका आभार.....

Comment by Priyanka singh on May 4, 2013 at 7:36pm

कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.. सुन्दर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2013 at 7:20pm

सुन्दर और मार्मिक रचना।  बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 4, 2013 at 6:38pm

प्रदीप जी, COONTEE JI आपका बहुत-बहुत आभार.....

Comment by coontee mukerji on May 4, 2013 at 5:17pm

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .

मैं तुम्हारे संग बीते कुछ पलों को जी रहा हूँ......

सत्य ये है तुम बिना जीवित कहाँ अजी रहा हूँ....

देखते ही देखते "कल" हो गया है "आज" सारा....

किन्तु मैं निष्प्राण सा बस अब तलक माज़ी रहा हूँ.......सादर / कुंती

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 4, 2013 at 5:11pm

कितना उदास मिट्टी लगा सन्दूक सच तेरे बिना है......

कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है...

आपका हार्दिक स्वागत है. 

सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service