For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पंच सब टंच

जिंदगी की जंग से अंग  सब तंग लेकिन

पाश्चात्य के रंग सब हुए मतवाले हैं।

निर्धन अधनंग पिसे, महंगाई के पाट बीच

चूर चूर स्वप्न मिले आंसुई परनाले हैं।।

        राष्ट्रहित काज आज, लाज तजि भूल सब
        राजनीतिबाज परस्पर, कीच उछाले हैं।
        आज के अनाज के, ऋण ऊपर व्याज के
        सवाल गोलमाल के, कल ऊपर टाले हैं।।

राजनीतिक दखलन्दाजी, बेदखल अक्लमंद

बुद्धिजीवी बेबस निर्बुद्धि बैठे ठाले हैं।

भविष्य की योजना-आयोजना की बात कैसी

पिछली उपलब्धियों के ही, ओढ़ते दुशाले हैं।।

        आचार विचार, संस्कार अब कौन पूछे

        चाणक्य नि:संकोच, उत्कोच लेने वाले हैं।

        सत्ता में बैठे हैं, कैसे कैसे रूप वाले

        निर्लज्ज मुस्कान मे, घोटाले ही घोटाले हैं।।

भालू जैसे चालू लालू, खुद को थे बताते आलू

चुपके से चबा के चारा, निहाल किये साले हैं।

आई है बहार  फलते फूलते  व्यापार की,

नौनिहाल बेहाल अपहरण के हवाले हैं।।

        सत्ता हस्तगत करि, राष्ट्र की सब निधि चरि

        सोने की चिरैया के सब पर नोंच डाले हैं।

        नीति-धर्म-प्रीति तो अतीत की हैं बीती बातें

        सुरसा-की-सांस ज्यों हवा में भी हवाले हैं।।

===मौलिक एवं अप्रकाशित====

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 4, 2013 at 1:19pm

प्रिय अशोकजी,

कुछ रचनाओं में अनायास ही ऐसे डूबना हो जाता है कि कुछ कहने सुनने का ध्यान ही नहीं रहता, जैसे नीरज के शब्दों में:

"शब्द तो शोर है, तमाशा है,

भाव के सिन्धु में बताशा है,

मर्म की बात ना होठ से कहो, 

मौन ही भावना की भाषा है"

और जाने अनजाने प्रशंसा ना करने की अशिष्टता हो जाती है... विशेषकर तब जब शायद मन कवि के भावों के साथ रमण करने लगता है.. तब मात्र रूचि प्रदर्शन करके "और.. और...और..."  के साथ यायावर हो जाते है...

राय देने या त्रुटिशोधक की भूमिका निर्वहन करने की शक्ति और योग्यता मुहमे नहीं है. सभी प्रस्तुतियां प्रशंसनीय हैं. बधाई.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 4, 2013 at 7:24am

आदरणीय सुरेन्द्र वर्मा साहब सादर, बहुत सुन्दर रचना वार्णिक छंद घनाक्षरी की ही लय पर पढ़ी गयी है.बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं. सादर बधाई स्वीकारें. 

कल मैं देख रहा था आपने मेरी कई रचनाओं को पढ़ा है. अवश्य उस पर भी अपनी राय जाहिर करें, कोई त्रुटी हो तब तो अवश्य ही, मुझे सुधार करने में मदत होगी. सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 7:48am

आदरणीय सुरेंद्र वर्माजी,  आपकी प्रवाह में सधी प्रस्तुत कविता की पंक्ति प्रति पंक्ति हृदय में घर करती जाती हैं. तनिक सा प्रयास और तनिक संयत शब्द सधना इस कविता को घनाक्षरी का सुन्दर प्रारूप दे सकती थी.

आपके स्वर से विसंगतियों के खिलाफ़ आक्रोश भला लगा है.

परन्तु, एक निवेदन अवश्य करूँगा कि मंचीय कविताओं और उनकी दशा पढ़ी जाने योग्य कविताओं से अलग होती हैं. मुझे इसका पूरा अनुभव है कि मंचों पर सफल घोषित हो चुके कवि श्रोताओं को भले कर्ण-सुख दे दें, किसी पाठक को संतुष्ट करने के क्रम में प्रयासरत दिखने लगते हैं. पाठकीय समाज स्वर और गले पर नहीं, शब्दों के चयन और कविता के शिल्प पर मुग्ध होता है. चाहे शिल्प किसी अतुकांत रचना की ही क्यों न हो.

आपकी कविता में भालू, लालू, आलू आदि वाला बंद पूर्णतया मंचीय कविताओं के अनुरूप है. परन्तु, पठनीय कविताओं में यह स्वीकार्य नहीं होता.  इसीकारण,  पठनीय कविताओं की उम्र अधिक होती है.

सर्वोपरि, राजनीतिक पार्टियों और राजनीतिबाजों पर लिखी गयी कविताओं से ओबीओ का पटल परहेज करता है. इसके कई कारण हैं.

पूर्ण विश्वास है, आदरणीय, आप मेरे कहे का अर्थ सकारात्मक रूप से लेंगे.

सादर

Comment by विजय मिश्र on May 2, 2013 at 6:51pm

 " सोने की चिरैया के सब पर नोंच डाले हैं। " सबकुछ व्यक्त करता है , आपके कलम की स्याही में घुला आवेश भी . मर्माहत मन का मरोड़ पूर्णतः अभिव्यक्त है .सुरेंद्रजी ,जाग्रत रचनाधर्मिता के लिए आदर .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2013 at 10:32am

 पाश्चात्य के रंग में मतवाले अब पाश्चात्य की संस्कृति अपनाते सब कुछ करने में माहिर हो गए है | निति धर्म सब अतीत की 

 बाते है जो भावनात्मक कवियों की कलम तक सिमित है -

अब आचार विचार में, क्यों डूबे सरकार 

 भ्रष्ट अरु अन्याय करे, ये इनके संस्कार 

 राष्ट्र की निधि सत्ता से, चरने की दरकार 

 लूट रहे विदेशी भी , हम भी तो हकदार |

सुन्दर भाव प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्री सुरेन्द्र वर्मा जी 

 

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 2, 2013 at 9:15am

आ0 सुरेन्द्र जी,   सुप्रभात!   समसामयिक विषयों पर व्यंग बाणों से सुशोभित सुन्दर रचना।   बहुत बहुत हार्दिक बधाई  सादर,।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service