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हक़ीकत की सफेद दीवार पर
तजुर्बों की भीड़ ने,
अहसास नाम की
नन्हीं सी कील ठोक दी थी.
मैं,
अरमानो की इस टेढ़ी-मेढ़ी गली से
यूँ ही गुजर रहा था –
अटपटा सा लगा
तो सोचा,
क्यों न काँच से मढ़े हुए
इस “ मैं “ को
उस पर टाँग दूँ –
गली में भटकने वालों का
इसे तोड़ने और जोड़ने में
शायद मन बहल जाए.
न जाने उस तसवीर के
कितने ही टुकड़े हो गये होंगे,
कितने ही असावधानी तमाशबीन
उन टुकड़ों की नुकीली धार से,
लहू-लुहान हुए होंगे !
मुझे तो अब उनके टूटने की
आवाज़ भी नहीं सुनाई देती –
गलियों से निकलकर,
राजपथ होते हुए
बहुत दूर निकल आया हूँ –
सामने जंगल है,
अब तलाश है
नयी पगडंडियों की.
(मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)

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Comment by sharadindu mukerji on April 23, 2013 at 4:05am

आदरणीया ऊषा जी व आदरणीय श्री रक्ताले, उत्साह्वर्धन के लिये हृदय से आभारी हूँ.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2013 at 8:03pm

मैं का अहम् खुद के लिए और दूसरो के लिए दोनों के लिए कष्टकर साबित होता है. सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by Usha Taneja on April 22, 2013 at 5:50pm

बहुत बढ़िया! 'मैं' को छोड़कर नई पगडंडियों की तलाश में. काश! ज़माना भी ऐसे ही सोचे व व्यवहार करे.

बधाई!

सादर

उषा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 19, 2013 at 3:07am

प्रिय बृजेश जी,हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 19, 2013 at 2:58am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी टिप्पणी हृदय से निकला हुआ स्वच्छ उच्छ्वास है जिसका स्पर्श मेरे लिये अमूल्य निधि समान है. हार्दिक आभार आदरणीया.

Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2013 at 4:24pm

बहुत ही खूबसूरत रचना। आपको ढेरों बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 18, 2013 at 1:52pm

श्रद्धेय श्री विजय निकोर जी, मैं धन्य हो गया, प्रेरणा मिली और लिखने की. सादर


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Comment by sharadindu mukerji on April 18, 2013 at 1:34pm

प्रिय श्री पाठक जी व वेर्मा जी, उत्साह्वर्धन के लिये हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 17, 2013 at 8:24pm

क्यों न काँच से मढ़े हुए
इस “ मैं “ को
उस पर टाँग दूँ –
गली में भटकने वालों का
इसे तोड़ने और जोड़ने में
शायद मन बहल जाए.------क्या बात कही है शरदेन्दु जी जबाब नहीं इन पंक्तियों का बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है हार्दिक बधाई आपको । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 5:24pm

आदरणीय शरदेन्दु जी सादर 

बहुत ही सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई हो आपको 

सादर 

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