शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द
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 मत्तगयंद सवैया :-
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 शारद, शॆष, सुरॆश  दिनॆशहुँ,  ईश  कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
 पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
 बंदउँ  चारहु  बॆद  भगीरथ, गंग  तरंगहिं  जाइ नहाऊँ ॥
 मातु-पिता-गुरु आशिष माँगउँ, शंभु बरात विवाहु सुनाऊँ ॥
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला !!
 दै डुम कारि बजै डमरू अरु,   नाद- सु- नाद सुनावत भॊला !!
 नाग गरॆ झुलना जसि झूलत,  दै पुचकारि खिलावत भॊला !!
 आइ रहॆ गण  दूत सखी सबु,  ताहि बुलाइ बिठावत भॊला !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 नंग  धड़ंग  मतंग भुजंगन,  ढंग बि-ढंगन साजि सँगाती !!
 भूत भभूति लटॆ लिपटॆ अरु, नाक कटी चिपटी चिचुआती !!
 कान कटॆ अरु हॊंठ फटॆ कछु,  दाँत बतीस चुड़ैल दिखाती !!
 लागत आजु मसान सखी सब,आइ गयॆ बनि शंभु बराती !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 मूँक मलूक सलूक नहीं कछु, बॊल रहॆ  बड़-बॊल अधूरा !!
 हाँथ कटॆ कछु पाँव कटॆ कछु,आइ गयॆ सजि लंग लँगूरा !!
 आँख कढ़ी अरु नाक चढ़ी कछु,धावत चारिहुँ ऒर जँमूरा !!
 मारि रहॆ सुटकारि कछू जनि, छानि रहॆ कछु भंग धतूरा !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 बामहिं हाँथ गहॆ डमरू अरु,  दाँहिन माल फिरावत भॊला !!
 ताल भरै जब नाम हरी धुन, जॊरहिं जॊर बजावत भॊला !!
 दॆखि रहॆ सुर-वृंद सबै छवि, कॊटिन काम लजावत भॊला !!
 आज भयॆ जग-नैन सुखी सखि,रूप-अनूप दिखावत भॊला !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 डूँड़ह बैल चढ़ॊ सखि दूलह,  रूप छटा नहिं जाइ बखानी !!
 बाघिन खाल बनी पियरी-पट,जूँ-लट जूट-जटा लिपटानी !!
 साँपन कै सिर-मौर बँधी अरु,कंगन-कुंडल हैं बिछु रानी !!
 धूसरि धू्रि रमाय रहॆ तन,  मॊह रहॆ मन औघड़ - दानी !!
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 सवैया (किरीट)
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 नाँचत गावत कूँदत फाँदत, खींस निपॊरत भूत भयंकर !!
 बैल चढ़ॆ बृषकॆतु हँसैं सखि, पीटत दॊनहुं  हाँथ दिगंबर !!
 दॆख हँसैं नरनारि बरातहिं,बालक मारि भगैं कछु कंकर !!
 नाग-गलॆ सिर-चंद-छ्टा सखि,दूलह आजु बनॆ शिवशंकर !! 
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 मत्तगयंद सवैया :-
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 बॆद व्रती सबु जॊग-जती सबु,पाहुन आजु बनॆ शिव संगा !!
 गाय रहॆ धुनि राम हरी गुन, मंगल गान चुनॆ चित चंगा !!
 बाँच रहॆ कछु पॊथि लियॆ अरु,कॊबिद गावत गीत-अभंगा !! 
 छाइ रही नभ चंद छटा छवि, नाचि रहॆ उड़ि कीट पतंगा !!
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 मत्तगयंद सवैया :-
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 तीनहुँ लॊक हुलास भरॆ अरु, दॆखि रही धरनी शिव शादी !!
 शीश झुकाय करॆ शिव वंदन, भाँषि रही जय दॆव अनादी !!
 सौरभ डारि रहॆ मग माँझहिं, हाँथ लियॆ गणिका सनकादी !!
 नारद पीट  रहॆ  ढ़प  झाँझर, धूम  मचावत  प्रॆत गणादी !!
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 सवैया (दुर्मिल)
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 बहु भाँति बरात सजी सँवरी,किलकाति चली तितरी-बितरी !!
 नहिं सूझ रही  कछु बूझ रही, बस गूँज रही तुरही  तुतरी !!
 अति धूलि उड़ै जब चंग चढ़ै,तब लागत व्यॊम भयॊ छतरी !!
 उतिराइ रहीं उलका नभ मां, जस आतिशबाजि हरै चित री !!
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 सुन्दरी सवैया =
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 सखि तीनहुँ  लॊक हुलास भरॆ, चित चॆत अचॆतन कॆ जग जाहीं !!
 नहिं दीख परै कछु भॆद वहाँ,सखि दीन कुलीन न जाति मनाहीं !!
 खिखियाइ रहॆ  कछु गाइ रहॆ, कछु दाँत दिखाय बड़ॆ  बतियाहीं !!
 पछियाइ रहॆ  कछु धाइ  रहॆ, समुहाइ  रहॆ कछु  मारग  माहीं !!
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 किरीट सवैया =
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 नाँचि रहॆ कछु गाइ रहॆ कछु, पीट रहॆ कछु पॆट थपा-थप !!
 भाग रहॆ कछु कूँद रहॆ कछु, ऊँघ रहॆ कछु नैन झपा-झप !!
 फूट रहॆ कछु छाँड़ि बरातहिं, सूँट रहॆ कछु भाँग सपा-सप !!
 लॊग खड़ॆ जिवनार लियॆ मग,खाइ रहॆ कछु भॊज गपा-गप !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 ताकत-झाँकत नाचत गावत, लाँघत-भागत भूत-सवारी !!
 झूमत घूमत हूकत कूकत,  फूँकत शंख उठै धुत  कारी !!
 दॆव कहैं बिहराइ चलॊ सब,  आपन  आपन सॆन सँवारी !!
 नाक कटै सबहीं कइ जानहु, दॆखत लॊग हँसैं दइ तारी !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 आपन आपन सॆन लियॆ सुर, साजि चलॆ निज धारि तिरंगा !!
 नारद  नाच रहॆ ठुमका  दइ, भाव भरॆ  जियरा अति चंगा !!
 तीनहुँ लॊक बिलॊक रहॆ छवि, भावति भामिनि श्रीपति-संगा !!
 बाँचत वॆद-बिरंचि सखी सुनु,  आरति आजु  उतारति  गंगा !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 बाजहिं झाँझ उठैं झनकारहिं,शंख-असंख्य बजावत हूका ॥
 गूँजत राग अघॊरि अनाहद, गाइ रहॆ धुनि गान  अचूका ॥
 भूत अकूत भभूति चढ़ावहिं, भंग चढ़ी बहु मारहिं कूका ॥
 आनँद आजु उठाइ रहॆ सखि, कॊयल काक उलूक महूका ॥
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 गाँवन गाँवन  खॊरन -खॊरन, झुण्ड बनाइ खड़ॆ नर नारी ॥
 पॆड़न पै चढ़ि ताक रहॆ कछु,बालक और जवान अनारी ॥
 चाब रहॆ कछु पान चबाचभ, बूढ़ चबावत छालि सुपारी ॥
 आपस मॆं बतियाइ रहॆ सबु, आवत कौन गली त्रिपुरारी ॥
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शिव पार्वती विवाह "खण्ड-काव्य"का यह भी एक मजॆदार प्रसंग,,,,,,
 "पार्वती की माँ मैना रानी का नारद जी कॊ उलाहना"
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 जाहि घरी हिमजा जनमी मुनि,काह कही तुम नारद बानी ॥
 नींक मिलै बहुतै घर या कहुं, तीनहुँ  लॊक  नहीं वर सानी ॥
 भॊरहिं तॆ उठि मॊरि-सुता नित,जात रही हरि धाम सयानी ॥
 काह बिगार तुहाँर किया हम,दाव भँजाय लिहौ मुनि ज्ञानी ॥
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 दीनहुँ बानर रूप रमा पति, ब्याह तुहाँरि  नहीं हुइ पायॊ !!
 कारन एहि सुनौ मुनि नारद, काज सुहावत नाहिं  परायॊ !!
 मॊरि लिलॊर चकॊरि सुता तुम, जानत बूझत धार बहायॊ !!
 तीनहुँ लॊक इहै चरिचा मुनि, गौरहिँ ब्याहन बाउर आयॊ !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 जानत भॆद तुहाँर मुनी जग, नारद नाम मिला चुगली मां ॥
 आँख मिलावति नाहि बनै अब,हॆरत काह गुनी बगुली मां ॥
 एहि बदॆ बिन ब्याह रहॆ तुम, मंगल कॆतु शनी कुँडली मां ॥
 कारज एक नहीं बन पावहिँ,  राहु चढ़ा तुहँरी  उँगली मां ॥
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 सवैया (दुर्मिल)
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 कस दॆव ऋषी  कहलाइ रहॆ, तुम नंबर  एक बड़ॆ घटिया ॥
 इतहूँ उतहूँ  सुलिगाय मुनी, पुनि सॆंकहु हाँथ परॆ खटिया ॥
 नहिं भॆद तुहाँरि मिलै कबहूँ, चुगला-चुगली पटवा-पटिया ॥
 नहिं जानबु पीर पराय ऋषी, तुहँरॆ घर नाहि हवै बिटिया ॥
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 भाँग पियै अरु गाँज पियै अरु, खाइ धतूर महा अड़बंगा !!
 हाँथ लियॆ तुमरी वन डॊलत,लागत जईसन हॊ भिखमंगा !!
 दॆह उँघारि फिरै दिन-रातहिं, घामहुँ-शीत नहाइ  न नंगा !!
 मॊरि दुलारि बदॆ वर लायहु, कौनहुँ भाँति न हॊइ पसंगा !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 छींट कसी पुरवासि करैं अरु, बॊलहिं काह विवाह रचायॊ !!
 दान दहॆज बचावँइ खातिर, राजन छाँटि  इहै वर लायॊ !!
 नाँव धरैं नर-नारि हमैं सब,खॊजत-खॊजत का वर पायॊ !!
 मातु-पिता अँधराइ गयॆ कस, गौरहिँ पागल हाँथ गहायॊ !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 काह कमी हमरॆ घर दॆखहु, राज धिराज हवैं हिम राजा !!
 गूँजत चारु दिशा जयकारहिं, नींक घरान पुनीत समाजा !!
 नौकर-चाकर सॆवक संतरि,नीति-पुनीति सुलॊक लिहाजा !!
 कंचन कॆ नहिं कूत खजानहिं, द्वार सुमॆरु बजावत बाजा !!
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 सवैया (किरीट)
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 भॊरहिं तॆ उठि  मॊरि सुता नित, जात रही  हरि मंदिर द्वारन !!
 हाँफत  हाँफत  काँपत  काँपत, शीतहुँ  घामहुँ  द्वार  बुहारन !!
 बारिहुँ  मास  प्रदॊष  पुजाइश, सॊम अमावश  भाग सुधारन !!
 कौन भला तप-जाप करै असि,मॊरि दुलारि कियॆ जस कानन !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 मॊरि सुता जप जॊग कियॆ बहु, रात दिना करि एकहिं डारॆ !!
 खॊह  गुफा गिरि  कंदर अंदर, यॊग ब्रती तप  मंत्र उचारॆ !!
 दान करै नित हॊम करै नित, ऒम् जपै उठि रॊज सकारॆ !!
 पाहन पूज थकी बिटिया हरि, काह लिखॊ तुम भाग हमारॆ !!
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 सवैया (मत्तगयंद)
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 शीश झुकाय खड़ॆ मुनि नारद, बॊल रही हिम-भामिनि बैना !!
 मॊरि सुता मलया-गिरि चंदन, या बर ठूँठ कुठारि कटै ना !!
 मारत हाँथ लिलारि कतौ चिढ़ि, खींचत साँस बहावत नैना !!
 क्वाँरि रहै सुकुमारि अजीवन, ब्याह करौं सँग बाउर मैं ना !!
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  कवि - "राज बुन्दॆली"
Comment
आदरणीय राज साहब
सादर
मैने इसे सुरक्षित रख लिया है.
सादर
बधाई.
adbhut hai bhai ....
जी भाई साहब,, इस स्नेह हेतु,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,
Er. Ganesh Jee "Bagi" जी भाई साहब,,,,,,,,,आपका स्नेह मिला सच मान...
यॆ स्नेह बनाये रखियेगा,,,,,और प्रार्थना कीजिये भोलेनाथ से कि यह खण्ड-काव्य शीघ्र पूर्ण हो जाये,,,,,,,,,,,,
मागउँ आजु अशीष अलौकिक,मोंहि दिहौ सबहीं भल ज्ञानी !!
सेवक नाथ तुहाँरि भयॊ अब, मॊरि मती बहु भाँति भुलानी !!
ब्याधि असाधि अगाधि भरीं तन, छंद-प्रबंध सबै बिसरानी !!
नाव लगावहु पार सबै मिलि, है कविता सरिता सम दानी !!
,,,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,
//शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ, ईश कपीश गनॆश मनाऊँ//
किसी भी कार्य का शुभारम्भ ईश वंदना के साथ करना शुभ माना जाता है, कवि ने वंदना के रूप में बहुत ही सुन्दर और सुगढ़ सवैया कि प्रस्तुति है ।
//जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला//
सत्यम शिवम् सुन्दरम ....दूसरा छंद शिव रूप को जैसे सामने रख दिया हो , बहुत ही खूबसूरती से शिव स्वरुप और सौंदर्य का वर्णन हुआ है ।
//लागत आजु मसान सखी सब,आइ गयॆ बनि शंभु बराती//
शब्दों का ऐसा चित्र कि लगता है शिव बारात का दृश्य आखों के सामने है, बुत ही सुन्दर छंद ।
माता की उलाहना, नारद को खरी खोटी, पूरा प्रसंग बहुत ही ढंग से निभाया है आदरणीय, कुल मिलाकर ह्रदय छंद के सागर में और भक्ति के भाव सागर में गोते लगा रहा है ।
आदरणीय कवि राज बुन्देली जी, यह पोस्ट पढ़ लिया था पहले भी किन्तु व्यस्तता के चलते इस पोस्ट पर टिप्पणी देने में विलम्ब हेतु क्षमा चाहूँगा । आज पुनः रसास्वादन का लाभ लिया ।
बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत पोस्ट हेतु, शिल्प, कथ्य और भाव का मिश्रण देखते ही बनता है, ह्रदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय ।
ये प्रसंग पढ़ कर मन भक्ति रस में डूब गया/ दुर्मिल ,मत्तगयन्द सवैया छंदों का प्रयोग रस ,अलंकार ,छंद विधान,गति,यति,लय ,भाव प्रवणता आदि सभी दृष्टियों से पूरे काव्य सौष्ठव के साथ हुआ है / छंदों की इस अति दुरूह साधना में शब्दों को यत्र-तत्र मनोनुकूल स्वरुप में प्रयोग करने का अधिकार कवि को होता है,वह आपने कुशलता और पुरे काव्य सौंदर्य के साथ किया है / इस मनोहारी सृजन के लिए आप को बहुत बहुत बधाई \ सर जी बहुत बहुत बधाइ
साधू साधू
Rajesh Kumar Jha जी भाई साहब ,,,,,वाह वाह वाह इस काव्य-मय प्रतिक्रिया ने तो चार चाँद लगा दिये रचना में,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,दिल से आभार,,,,,,,,जय भोलेनाथ,,,,बाबा,,,,,,
जस गौरी तस शंभु प्राणा, उमड़ै दोनों एक समाना
मूड़ माथ कर दियो सुनहरा, अद्भुत तेरा खेल बिषहरा
अत्यंत मनोहारी वर्णन, पूरी बारात मानो सद्य: उपस्थित है और मैना जी का उलाहना....बहुत सुंदर वर्णन
Gorkhe Sailo जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,
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