For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  • (१) भूख

कभी-कभी मैं सोचता हूँ की
ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर
जैसे कोई रबड़ हैं
जो मिटा देती हैं
भूख को,
लेकिन असल समस्या
तो उस कलम की है
जो लिखती जा रही है,
भूख, भूख, भूख.....

  • (२) मेरा नाम

मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है
कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |
करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया
कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है ||

  • (३) दर्पण

भगवान के पास सब कुछ है,
कर ही सकते क्या उसको अर्पण |
किसी बहाने बस वो देखा करता,
तुम्हारी भावनाओं का दर्पण ||

  • (४) कुँएं का मेंढक

ये भी क्या खूब रही
की
मेरा उद्देश्ये
तुमने निरुददेश्ये कर दिया
अब मैं कोई 'कारण' नहीं
बस 'अकारण' हूँ
और
मेरे लिए भी हो
तुम,,,
सिर्फ एक 'नेकी'....
इसलिए अब
मैं तुमको
कुएं में डालता हूँ !!!

  • © AjAy Kum@r

Views: 489

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 7:33pm

शुक्रिया सौरभ जी, और क्षमा चाहता हूँ जाने कैसे आपका कमेन्ट नज़रंदाज़ हो गया...देरी के लिए खेद है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2012 at 4:57am

भाई अजय जी, आपकी चारों रचनाओं के लिये बधाई.

Comment by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:55am

धन्यवाद आशा जी , जो  आपको  रचाएं  पसंद आयी....

Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 3:53pm

chhotee chhotee rachnaon me gahn anubhuti hai jivan ki  bahut umda 

Comment by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 2:47pm

मेरी बस यूँ ही सी लिख दी गयी कविताओं पर जब आप जैसे विद्वानों  के हौसला अफ़ज़ही करते शब्द पढ़ता हूँ तो मन  में एक अजीब जी खुशी मिलती है जिसको की शब्दों में अभिव्यक्त कर पाने में मैं असमर्थ हूँ, लेकिन आपने जो अपना कीमती समय मेरी पंक्तियों के लिए इनायत फरमाया उसके लिए मैं हृदये से आभारी हूँ प्रभाकर जी... 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2012 at 2:38pm

चारों ही रचनाये बहुत सुन्दर और सारगर्भित हैं, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें अजय जी. 

Comment by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 1:54pm
बहुत बहुत धन्यवाद गणेश जी, आभारी हूँ

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2012 at 11:24am

अजय जी , आपकी चरों रचनाएँ देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर टाइप की हैं, बधाई स्वीकार करें , आगे भी आपकी रचनाएँ और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत रहेगा |

Comment by AjAy Kumar Bohat on January 5, 2012 at 6:37am

Bahut Bahut Shukriya Abhinav ji.

Comment by Abhinav Arun on January 4, 2012 at 4:27pm
बहुत अच्छी रचना अजय जी ! आपकी कलम को नमन है जिसने अपनी सोच को सशक्त तरीके से प्रस्तुत kiya !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service