For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
मगर पाण्डव हैं मुट्ठी भर, खड़े हैं.
.

हम इतनी बार जो गिर कर खड़े हैं
मुख़ालिफ़ हार कर शश्दर खड़े हैं.      शश्दर-आश्चर्यचकित, स्तब्ध
.
कभी कोई बसेगा दिल-मकां में
हम इस उम्मीद में जर्जर खड़े हैं.
.
ऐ रावण! अब तेरा बचना है मुश्किल
तेरे द्वारे पे कुछ बंदर खड़े हैं.
.
उसे लगता है हम को मार देगा
हम अपने जिस्म से बाहर खड़े हैं.
.
मुझे क़तरा समझ बैठा है नादाँ
मेरे पीछे महासागर खड़े हैं.
.
ख़ुदा दुनिया से कब का जा चुका है
ख़ुदा के नाम के पत्थर खड़े हैं.
.
नए रब के नए पैग़ाम लेकर
हर इक नुक्कड़ पे पैग़म्बर खड़े हैं.
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 56

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Wednesday

आ. रवि जी ,

मिसरा यूँ पढ़ें 
.
सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल..
अलिफ़ वस्ल से काम हो गया 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Wednesday

धन्यवाद आ. रवि जी,
ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..
ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ .. 
सादर  

Comment by Ravi Shukla on Monday

आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से पहले  इस पर आई हुई टिप्पणियां  पढ़ी अच्छा लगा । तीसरा शेर बहुत अच्छा लगा । ऐ का वज़्न गिराना हमें व्यक्तिगत रूप से असहज लगता  है तो चौथे शेर में  भी लगा  एक विनम्र सुझाव है  दशानन अब तिरा बचना है मुश्किल

कहूँ क्या शेर की तासीर पर मैँ 

तिरी डी पी में राहत सर खड़े है 

भाव में तिरी को आपकी पढ़ियेगा बहर की मजबूरी है :-)

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2025 at 3:05pm

धन्यवाद आ. बृजेश जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2025 at 11:58am

आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    
हरेक शेर बेमिसाल....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2025 at 3:11pm

धन्यवाद आ. अजय जी 

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on May 31, 2025 at 1:26pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2025 at 11:28am

धन्यवाद आ. सौरभ सर,
मतले से बात शुरुअ करता हूँ.. 
मुट्ठी भर का अर्थ बहुत थोड़े या लिटरल- 5 (क्यूँ कि इन्ही से मुट्ठी बंधती है ) और पाण्डव भी इतने ही थे;  से लिया है.
ज़ुल्म के लश्कर ११ अक्षौहणी सेना से है जो कौरवों का संख्याबल था.
.
 //भाई, खुदा के नाम कहीं पत्थर दिखा भी है क्या ?//  
जी .. मेरे घर भी मूर्ति पूजा होती है. कई मूर्तियाँ पत्थर की हैं. 
मेरे अशआर का ख़ुदा किसी एक संस्कृति का अमूर्त अथवा मूर्त ख़ुदा नहीं है. मेरे अशआर का ख़ुदा वह है जिसे तमाम धर्मिक जन अपना अपना और एकमात्र सच्चा ईश्वर बताते हैं. एथीस्ट होने का यह लाभ भी है कि आप सब को इग्नोर कर सकते हैं.
.
आपको अन्य शेर पसंद आए इसके लिए आभार.
बहुत बहुत धन्यवाद  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2025 at 11:20am

धन्यवाद आ. गिरिराज जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2025 at 8:04am

आदरणीय नीलेश जी, एक अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

 
कई शेर हैं जो पाठकों से बरबस वाह ले पाने में सक्षम हैं. तो कुछ शेर भाव और व्यवहार की कसौटियों पर दुबारा मनन करने की मांग करते दीख रहे हैं.

 

कभी कोई बसेगा दिल-मकां में
हम इस उम्मीद में जर्जर खड़े हैं ... कमाल का कहन है. बहुत खूब, बहुत खूब. इस शेर पर विशेष बधाइयाँ स्वीकार करें, आदरणीय.

 

दूसरी ओर निम्नलिखित शेर है,
ख़ुदा दुनिया से कब का जा चुका है
ख़ुदा के नाम के पत्थर खड़े हैं. ... .. भाई, खुदा के नाम कहीं पत्थर दिखा भी है क्या ?

 

यह अवश्य हुआ कि मतले के कहन को लेकर मैं थोड़ी देर उधेड़बुन में रहा. दोनों मिसरों के बीच मैं तारतम्यता ही नहीं भना पा रहा था. चलिए, उधेड़बुन जल्द ही दूर हो गयी.

 

पुनः, इस प्रस्तुति के लिए आपको बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी.मैं आपकी टिप्पणी को समझ पाने में असमर्थ हूँ.मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट…"
1 hour ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब,'नूर' साहब, सुन्दर  रचना है, मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में…"
9 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
yesterday
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service