For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता (गीत) : नाथ सोनांचली

जब उमड़ते भाव अविरल अश्रु का संसार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर

पीर के परिमाप से करके स्वयं का 'नाथ' तर्पण
रात दिन पीड़ा दबाए आत्म का करके समर्पण
दर्द की अभिव्यंजना से कुछ नई गढ़ कल्पनाएँ
चित्र छपते जब हृदय पर कुछ नए किरदार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर

तप्त धरती बादलों की जिस घड़ी करती प्रतीक्षा
दर्द में  डूबे  हृदय  की  वास्तविक  होती  परीक्षा
याचना करता पपीहा और बिछुड़न के हृदय से
छेड़ती है राग विरहन जब विरह का प्यार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर

प्रेम अंकुर प्रस्फुटित जब द्वय हृदय के मध्य होता
वर्जनाएँ टूट जाती हिय विरह का बीज बोता
पादपों के पात बजते पायलों में होड़ मचती
प्रिय मिलन की रागिनी बजती प्रणय का ज्वार लेकर
तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर

नाथ सोनांचली
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 51

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2025 at 5:01pm

दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से प्रस्तुत किये जाने का प्रयास हुआ है, आदरणीय नाथ सोनांचली जी. हार्दिक बधाइयाँ. 

 

यह अवश्य है, कि कविता का कलेवर द्रुत गति से बदल रहा है. या, कई अर्थों में बदल चुका है. इन अर्थों में कविता (गीत) के शब्दों की बुनावट पुरानी रचनाओं के अनुरूप है जिसे साहित्यिक आंगन में आज बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता. ऐसा नहीं है, कि रचनाओं के मर्म को, इसकी विशिष्टता को, मान न दिया जाय. परंतु, यह भी सत्य है, कि कविताओं का काल-खण्ड अवश्य ही बदल चुका है, इसके प्रति सभी सचेत रचनाकारों को संवेदनशील होना ही चाहिए.  

 

एक बात और, 

’वर्जनाएँ टूट जाती..’  में जातीं का होना उचित है. यह आप भी जानते हैं और यह एक टंकण-त्रुटि के कारण ही हुआ है. किन्तु, अपनी प्रस्तुतियों के प्रति आग्रही होना प्रत्येक रचनाकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. 

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.  

शुभातिशुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2025 at 5:04am

आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।

Comment by Chetan Prakash on January 24, 2025 at 6:42pm

बहुत सुन्दर शास्त्रीय गीत का सृजन हुआ,  भाई,  नाथ सोनाक्ष, बधाई,  आपको, श्री  !

Comment by Ravi Shukla on January 24, 2025 at 2:42pm

आदरणीय सुनेन्द्र नाथ जी उत्तम गीत के लिये बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service