For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक वह्म ऐतबार से आगे की चीज़ है (ग़ज़ल)

 221  2121  1221  212

ख़ुशबू, चमन, बहार से आगे की चीज़ है।
जो ज़िंदगी है, प्यार से आगे की चीज़ है।

जारी है एक जंग जो ग़म और ख़ुशी के बीच,
यह जंग जीत-हार से आगे की चीज़ है।

अक्सर उफ़ुक़ को देख के आता है ये ख़याल,
कुछ है जो इस हिसार से आगे की चीज़ है।

कैसे बताऊं किस पे टिकी है मेरी निगाह,
मंज़िल से, रहगुज़ार से आगे की चीज़ है।

हद्द-ए-निगाह से भी परे है कोई वजूद,
इक वह्म ऐतबार से आगे की चीज़ है।

कैसे करेगा तब्सिरा शे'र-ओ-सुख़न पे वो
यह "जय" के इख़्तियार से आगे की चीज़ है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on October 2, 2022 at 7:31am

संशोधन के बाद ख़ूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय जयनित जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। 

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2022 at 9:06am

आदरणीय समर कबीर जी, आपके सुझाव पर गौर करते हुए मैंने शब्द को परिवर्तित कर दिया है।

उचित सलाह के लिए आपका हार्दिक आभारी हूं। सादर।

Comment by Samar kabeer on September 16, 2022 at 3:24pm

//"दिवार" शब्द को हटा के कोई दूसरा शब्द वहांं पर रखने के बारे में सोच रहा हूँ //

मेरे ख़याल से 'दिवार' की जगह "हिसार" शब्द उचित होगा, ग़ौर करें I 

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2022 at 8:48pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, रचना पर आपकी उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं उचित मार्गदर्शन हेतु बहुत आभारी हूं आपका।

आपके सुझावों के अनुसार रचना में संशोधन कर रहा हूं। सादर।

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2022 at 8:45pm
आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम! "दिवार" शब्द को हटा के कोई दूसरा शब्द वहां पर रखने के बारे में सोच रहा हूं। और आपके कहे अनुसार उक्त मिसरे को बदल के इस पटल पर भी edit कर रहा हूं।
आपके उत्साहवर्धन एवं सुझावों के लिए आपका हृदय से आभारी हूं, आदरणीय।
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 15, 2022 at 6:01pm

आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी आदाब, ग़ज़ल के हर एक शे'र में एक से बढ़कर एक मोती पिरोए हैं आपने हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

'कुछ है जो इस दिवार से आगे की चीज़ है'... इस मिसरे में 'दिवार' को 'दयार' कर सकते हैं। 

'कैसे करेगा तज़्किरा शे'र-ओ-सुख़न पे वो'... इस मिसरे का वाक्य विन्यास सही नहीं है, तज़्किरा किया के साथ नहीं हुआ के साथ इस्तेमाल किया जाता है जैसे - अभी तो उस का कोई तज़्किरा हुआ भी नहीं

             अभी से बज़्म में ख़ुशबू का रक़्स जारी है'

कैसे करेगा ज़िक्र'...सही विन्यास है। 

वैसे आपके मक़्ते के सानी मिसरे के भाव को देखते हुए 'तज़्किरा' (ज़िक्र) के बजाय 'तब्सिरा' (review, comment, criticism) शब्द ज़ियाद: सटीक होगा। शेष गुणीजन कह चुके हैं। 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2022 at 4:22pm

जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है , बधाई स्वीकार करें I 

'कुछ है जो इस दिवार से आगे की चीज़ है-- इस मिसरे में 'दिवार' को १२१ पर लेना उचित नहीं, इसे बदलने का प्रयास करें I 

'हद्द-ए-निगाह से परे भी है कोई वजूद'-- इस मिसरे को अगर यूँ कहें तो रवानी बढ़ जाएगी :-

"हद्द-ए-निगाह से भी परे है कोई वजूद"

'कैसे करेगा तज़्किरा शे'र-ओ-सुख़न पे वो'--इस मिसरे को युचित लगे तो यूँ कहें :-

"कैसे करेगा तज़्किरा शे'र-ओ-सुख़न का वो"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
17 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service