For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निज भाषा को जग कहे (दोहा गजल) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

निज भाषा को जग कहे, जीवन की पहचान
मिले नहीं इसके बिना, जन जन को सम्मान।१।
*
बड़ा सरल पढ़ना जिसे, लिखना भी आसान
पुरखों से हम को मिला, हिन्दी का वरदान।२।
*
हिन्दी के प्रासाद का, वैज्ञानिक आधार
तभी बनी है आज ये, भाषा एक महान।३।
*
जैसे  धागा  प्रेम  का, बाँध  रखे  परिवार
उत्तर से दक्षिण तलक, एका की पहचान।४।
*
नियमों में बँधकर रहे, हिन्दी का हर रूप
भाषाओं में हो गयी, इस से यह विज्ञान।५।
*
गूँजे चाहे विश्व  में, हिन्दी  कितना आज
अपने घर में किन्तु ये, झेल रही अपमान।६।
*
हर भाषा के शब्द गह, धरा नया ही रूप
अपनेपन का भाव ले, प्यारी बनी जुबान।७।
*
थोड़ा भी जिसको नहीं, निज भाषा का गर्व
जीवित उसको मान मत, केवल मुर्दा जान।८।
*
करो न इस के नाम से, एक दिवस का ढोंग
हर दिन इसका मानकर, दो अब तो सम्मान।९।
*


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 373

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 23, 2021 at 3:45pm

पिछले आठ-दस वर्षों से दोहा-ग़ज़ल का प्रभाव विशेष रूप से बढ़ा है. और दोहा छंद ही क्यों, अरूज़ जिसके अपने विन्यास होते हैं, की तर्ज पर अन्यान्य छंदों के विन्यास भी ग़ज़ल के लिए प्रयुक्त हो रहे हैं. आशय है, ग़ज़ल के कहन में गेयता प्रभावी बनी रहे. यह शिल्प की बात हुई. लेकिन ग़ज़ल की सबसे प्रमुख विशेषता, इसकी ग़ज़लियत से कोई समझौता मान्य नहीं होता. चाहे विन्यास मान्य बहरों के अनुरूप हो या छंदों के अनुरूप हो. 

मेरा आपके माध्यम से इतना कहना, उन पाठकों के लिए भी आवश्यक है, जो दोहा-ग़ज़ल की अवधारणा से अभी पूरी तरह से परिचित नहीं हैं.  

मैं कई ऐसे सर्वमान्य ग़ज़लकारों को जानता हूँ, जो बहरों के अनुसार ग़ज़ल कहने के अलावा छंदों के विन्यास के अनुसार भी ग़ज़ल कह पाने का प्रयास करते हैं. इनमें जौहर शोफियाबादी के एक प्रमुख नाम हैं. इन्होंने तो दोहा, सवैया, चौपाई (इसे मात्रिक ग़ज़ल, बहरे-मीर, ही समझें, जिसके मिसरों की कुल मात्रिकता, चौपाई छंद के अनुसार सोलह ही होती है) आदि छंदों पर ग़ज़लें कही हैं. 

खैर, ये सब तो शिल्पगत बातें हुईं. आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में हिन्दी को केन्द्र में रख कर चर्चा हुई है. अतः एक तरह से यह एक मुसलसल ग़ज़ल है. दोहा के शिल्प का श्लाघनीय निर्वहन हुआ है. भावों का सुन्दर संप्रेषण हो रहा है. विषय के अनुसार अभिधात्मकता का प्रभाव तो होना ही था. जबकि ग़ज़ल कहन के हिसाब से व्यंजनात्मक या फिर अधिकांशतः लाक्षणिक हुआ करती हैं. 

हार्दिक बधाइयाँ.  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2021 at 10:29pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति , अनुमोदन व स्नेह के लिए हार्दिक आभार । 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 14, 2021 at 8:19pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, उम्दा दोहा-ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

इस रचना में आपने दोहे और ग़ज़ल को यकजाई करते हुए अधिकतर नियमों का निर्वहन कर अपनी योग्यता का शानदार प्रदर्शन किया है। मेरे नज़्दीक 

यह रचना दोहा-ग़ज़ल का श्रेष्ठ नमूना है।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service