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Arpana Sharma's Blog – April 2017 Archive (3)

"फाॅर्मलिटी" /लघुकथा :अर्पणा शर्मा

"देखिये, मेरे फ्लैट की रजिस्ट्री की सारी रकम आपके बताए सर्विस प्रोवाइड़र के खाते में भिजवा दी गई है , आज रजिस्ट्री की आखिरी तारीख है और अभी तक  आपने मेरे पेपर तैयार नहीं किये",

 सुबह -शाम बिल्ड़र के ऑफिस के चक्कर लगा-लगा कर त्रस्त हुए जयेश ने अंततः लगभग गिड़गिड़ा कर उसके मैनेजर से कहा।



"देखिए मिस्टर जयेश रजिस्ट्री की बाकी फाॅर्मेलिटी आपने पूरी नहीं की, आप मेरे साथ को-ऑपरेट नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा" ,

बिल्ड़र के मैनेजर ने नितांत सधे हुए और सर्वथा व्यावसायिक लहजे में जयेश को… Continue

Added by Arpana Sharma on April 26, 2017 at 5:39pm — 4 Comments

" अस्पृश्य" - लघुकथा :अर्पणा शर्मा

मालकिन ने रसोई के एक कोने में रखी थोड़ी पिचकी सी , घिसी थाली, कटोरी , ग्लास और चम्मच उठा,  उसमें खाना सजाया और खाना बनाने वाली को रसोई के बाहर एक कोने में जमीन पर बिठाकर उसके सामने थाली रख दी।



खाना बनाने वाली का आज उस घर में पहला ही दिन था। जल्दी से खाना खाकर जूठे बर्तन सिंक में रख दिये क्योंकि बर्तन मलने वाली भी आती थी।



मालकिन ने देखा तो उसे कड़क शब्दों में निर्देश मिले -

" खाना खाकर अपने बर्तन धोकर वहाँ उस कोने में रखना। दूसरे बर्तनों से छूना नहीं चाहिए… Continue

Added by Arpana Sharma on April 18, 2017 at 5:00pm — 14 Comments

"चिरनिद्रा- चिर-विश्रांति "/कविता - अर्पणा शर्मा

नदी के भँवर में घूमते पत्ते से,

जो खिंचता-जाता समाने उसमें,

जीवन है ड़ूबता- उतराता,

काल के नित गहराते भँवर में,

धवल आकाशगंगा के,

गहन काले गह्वर की मानिंद,

हमें आलिंगन में लेने को आतुर,

ओह ये मृत्यु ...!!

 

शनैः-शनैः सब समाता उसमें,

धीरे-धीरे खिंचते जारहे,

हम भी नित उसी ओर,

जन्म के साथ ही,

है शुरू होजाती,

यह गणना पलछिन,

यह माटी का पुतला ,

जीवित रहेगा ,

आखिर कितने दिन,



उलझते जीवन के व्यापार में… Continue

Added by Arpana Sharma on April 16, 2017 at 7:41pm — 11 Comments

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