For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ajay Agyat's Blog (13)

ग़ज़ल

ग़ज़ल के 4 अशआर 

सन्नाटों पर खूब सितम बरपाती है
मेरे भीतर तन्हाई चिल्लाती है
संकल्पों के मन्त्र मैं जब भी जपता हूँ
मंज़िल मेरे और निकट आ जाती है
पूरी क्षमता से जब काम नहीं करता
मेरी किस्मत भी मुझ पर झल्लाती है
हर पल तुझ को याद किया करता हूँ मैं
याद विरह के दंशों को सहलाती है

मौलिक व अप्रकाशित .... 

Added by Ajay Agyat on November 30, 2014 at 5:23pm — 9 Comments

ग़ज़ल

बचो इस से कि ये आफत बुरी है
नशा कैसा भी हो आदत बुरी है


पतन की ओर गर जाने लगे हो
यकीनन आपकी संगत बुरी है


कि सिगरेट मदिरा गुटका या कि खैनी
किसी भी चीज़ की चाहत बुरी है


हमें मालूम है मरना है इक दिन
मगर इस मौत की दहशत बुरी है


कमाया है जिसे इज्ज़त गँवा कर 
अजय अज्ञात वो दौलत बुरी है

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Ajay Agyat on October 15, 2014 at 5:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल

अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं

कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं

अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे

हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं 

हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर

सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं



महकती है फिजायें भी चहक़ते हैं परिंदे भी

कि अपने घर में छोटा सा बगीचा हम भी रखते…

Continue

Added by Ajay Agyat on August 5, 2014 at 7:00am — 11 Comments

ग़ज़ल

मालूम है कि सांप पिटारे में बंद है
फिर भी वॊ डर रहा है क्यूँ कि अक्लमंद है

.

ये रंग रूप, नखरे,अदा तौरे गुफ्तगू
तेरी हरेक बात ही मुझको पसंद है

.

ये दिल भी एक लय में धड़कता है दोस्तो
सांसो का आना जाना भी क्या खूब छंद है

.

सोचा था चंद पल में ही छू लूँगा बाम को
पर हश्र ये है हाथ में टूटी कमंद है

.

दुश्वारियों से जूझते गुजरी है ज़िन्दगी
अज्ञात फिर भी हौसला अपना बुलंद है

.

मौलिक एवं अप्रकाशित.

Added by Ajay Agyat on August 1, 2014 at 8:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल

221  2121, 1221, 212 , 

इक ग़म में जब से मुब्तला रहने लगा हूँ मैं 

अपने वुजूद से खफा रहने लगा हूँ मैं...

देखा था बेनकाब किसी रोज़ चाँद को 

खिड़की के सामने खड़ा रहने लगा हूँ मैं ...

कागज़ पे इक रिसाले के छप कर मैं क्या करूँ 

अब तेरे दिल में दिलरुबा रहने लगा हूँ मैं .....

दिल को नहीं सुहाता है शोरे तरब ज़रा 

बज़्मे तरब में सहमा सा रहने लगा हूँ मैं....…

Continue

Added by Ajay Agyat on April 9, 2014 at 7:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल

फकत वोटों की खातिर झूठे वादे करने वालों को

सबक सिखलाएंगे अब के छलावे करने वालों को ...



नहीं गुमराह होंगे हम किसी की बातों में आ कर 

न गद्दी पर बिठाएंगे तमाशे करने वालों को...

गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी से लड़ेंगे वो

चलो हम हौसला देवें इरादे करने वालों को ...

चुनावी वायदे अपने कभी पूरे नहीं करते

बहाना चाहिए कोई बहाने करने वालों…

Continue

Added by Ajay Agyat on March 23, 2014 at 3:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल

वो होगा जो कभी न हुआ, देखते रहो 

इक दिन खुलेगा बाबे वफा, देखते रहो ...

जो शख्स मुझ से रूठ गया है वो दोस्तो

आएगा मुसकुराता हुआ, देखते रहो....

ज़िंदाने ग़म में जिसने मुझे कैद कर दिया 

वो ही करेगा मुझ को रिहा , देखते रहो...

अशकों से कैसे बनते हैं मेरी ग़ज़ल के शेर 

लिक्खेगी मेरी नोके मिज़ा देखते रहो ...

फूलों में कौन भरता है ये रंगो बू अजय …

Continue

Added by Ajay Agyat on March 2, 2014 at 2:00pm — 6 Comments

ऐ खुदा मुझ को भी तेरी मेहरबानी चाहिए

ऐ खुदा मुझ को भी तेरी मेहरबानी चाहिए 

इक महकते गुल की जैसी ज़िंदगानी चाहिए 



मुझ को लंबी उम्र की हरगिज नहीं है आरज़ू 

जब तलक है जिंदगी ,मुझको जवानी चाहिए 



मैं समंदर तो नहीं जो उम्र भर ठहरा रहूँ 

एक दरया की तरह मुझ को रवानी चाहिए ...

परवरिश बच्चों की करना , फर्ज़ है माँ बाप का  

सच की हरदम राह भी उन को दिखानी चाहिए 

आज के अखबार का यह कह रहा है राशि…

Continue

Added by Ajay Agyat on January 12, 2014 at 5:00pm — 15 Comments

ग़ज़ल (ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा)

ज़िंदगी के यज्ञ में खुद को हवन करना पड़ा 

आंसुओं से ज़िंदगीभर आचमन करना पड़ा....



मंज़िलों से दूरियाँ जब ,कम नहीं होती दिखीं 

क्या कमी थी कोशिशों में,आंकलन करना पड़ा .....



ऐसे ही पायी नहीं थी देश ने स्वतन्त्रता 

इस को पाने के लिए क्या क्या जतन करना पड़ा ...



जाने मुंसिफ़ की भला थी कौन सी मजबूरियां 

फैसला हक़ में मेरे जो दफ़अतन करना…

Continue

Added by Ajay Agyat on January 11, 2014 at 7:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल (अजय अज्ञात)

करें हम हमेशा ही उनकी इबादत 

ये जीवन हमारा है जिनकी बदौलत... 



नहीं कोई सानी है माता पिता का

यकीनन ये करते हैं दिल से मुहब्बत... 



चरण छू लो इनके, मिलेंगी दुआएं 

इन्हें देखने भर से होती जियारत ... 



सही मायने में यही देवता हैं 

यही पूरी करते हमारी ज़रूरत ...…

Continue

Added by Ajay Agyat on January 9, 2014 at 9:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल

मैं वाकिफ हूँ ,हकीकत से, ज़माने की 

इसे आदत, है चिढ़ने की,चिढ़ाने की ...

.

बहुत मुश्किल हुनर है ये , भला सब को 

कहाँ आती कला रिश्ते निभाने की ...

.

सज़ा क्या दूँ तुम्हें आखिर बताओ तो 

मेरी आँखों से नींदों को चुराने की ...

.

बयां इक शेर में, हो सकता है जब सब 

ज़रूरत क्या तुम्हें किस्सा सुनाने की ..

.

इसे महसूस करिएगा…

Continue

Added by Ajay Agyat on August 1, 2013 at 6:00am — 7 Comments

अशआर

मुखतलिफ़ शेर .... 

.

लाख कोशिश कर ले इंसा कुछ नहीं कर पाएगा

मौत की जद में किसी दिन जिंदगी आ जाएगी

इबादत करना चाहो गर खुदा की तुम हकीकत में

मुहब्बत के चिरागों को कभी बुझने नहीं देना ...

आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए 

इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को .....

 

रायगां बहने नहीं देता इन्हें 

अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....

 

दिया मुझ को मेरी किस्मत ने सब कुछ

मगर तेरी कमी अब भी है…

Continue

Added by Ajay Agyat on June 26, 2013 at 8:00pm — 8 Comments

दो ग़ज़लें

आपने चाहा ही नहीं दर्द का दरमां होना 

कितना आसान था दुश्वार का आसां होना 

.

आपका हुस्न तो खुद होश उड़ा देता 

आपको ज़ेब नहीं देता है हैरां होना 

.

नाम ए मर्ग है फूलों के लिए काली घटा 

दोशे गुलनार पे ज़ुल्फों का परेशां होना

.

वक़्त वो दोस्त है जो पल में बदल जाता है 

भूल से भी न कभी वक़्त पे नाजां होना 

.

दिल पे अज्ञात के जो गुजरा है वो ज़ाहिर है 

इस तरह आप का लहरा के पेरीजां होना 

.

ज़ेब = शोभा , नाजाँ =…

Continue

Added by Ajay Agyat on June 13, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
8 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service