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तीन पद: संजीव 'सलिल'

तीन पद:

संजीव 'सलिल'

*

धर्म की, कर्म की भूमि है भारत,

नेह निबाहिबो हिरदै को भात है.

रंगी तिरंगी पताका मनोहर-

फर-फर अम्बर में फहरात है.

चाँदी सी चमचम रेवा है करधन,

शीश मुकुट नगराज सुहात है.

पाँव पखारे 'सलिल' रत्नाकर,

रवि, ससि, तारे, शोभा बढ़ात है..

*

नीम बिराजी हैं माता भवानी,

बंसी लै कान्हा कदम्ब की छैयां.

संकर बेल के पत्र बिराजे,

तुलसी में सालिगराम रमैया.

सदा सुहागन अँगना की सोभा-

चम्पा, चमेली, जुही में… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 13, 2010 at 11:33pm — 3 Comments

तुम्हें नरसिंह बनना होगा

तुम मुझे जो भी कह लो

सुन लूंगा चुपचाप

चाहे मुझे तुम

पाखंडी /देशद्रोही /बलात्कारी

व्यवस्थाओ को तोड़ने वाला

या फिर उग्रवादी विचारों वाला कह लो

तुम जानते हो /इन बातों से

मैं तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ॥





भला , सिर्फ विचारों के प्रहार से

क्या बिगड़ेगा तुम्हारा

जरा ,..एक चोर को चोर कह कर देखो

कुरूरता के भयानक पंजे

चीथड़े -चीथड़े कर देगी तुम्हें

अरे ..छोड़ो ....

सच का सामना कितने लोग करते है ॥



जानता हूँ… Continue

Added by baban pandey on September 13, 2010 at 10:45pm — 5 Comments

देखो ना यार मेरा दिल खो गया ,

देखो ना यार मेरा दिल खो गया ,

प्यार प्यार प्यार प्यार प्यारहो गया ,

आखो में मेरे ओ आके बसे हैं ,

ना जाने क्यू ये मन यु झूमे हैं ,

लगता हैं ये दिल उनका हो गया ,

प्यार प्यार प्यार प्यार प्यारहो गया ,



उनके ही संग ये दिल चलना चाहे ,

उनकी ही राह देखे ये मेरी बाहे ,

ओ आये तो मौसम सुहाना ,

खुसबू से दिल हो जाये दीवाना ,

जानू ना यार मुझे क्या हो गया ,

प्यार प्यार प्यार प्यार प्यारहो गया ,



उनके ही चाहत में जियेंगे मरेंगे ,

उनके… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 13, 2010 at 8:30pm — 3 Comments

इंसानियत का फ़र्ज़

इंसानियत का फ़र्ज़



डेंगू का कहर देखकर

बेचारे मच्छर भी शरमा गए

अपनें तो पीछे हट गए

बेचारे मच्छर मदद को आ गए

कहनें लगे ना घबराना

हम इंसानियत का फ़र्ज़ निभाएँगे

आपके अपनें तो धोखा दे गए

हम ब्लड डोनेशन को ज़रूर आएँगे

अपना खून देकर भी

हम आपको ज़रूर बचाएँगे

जितना आपसे चूसा था

उससे दुगुना देकर जाएंगे

अपनी तो मज़बूरी थी

ना पीते तो कैसे जीते

लेकिन आपकी खातिर हम

बिन पिए मर जाएंगे

लेकिन आपके अपनों की तरह

पीठ… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 13, 2010 at 2:56pm — 1 Comment

पैरोडी :भाई मीडिया तो सच ही दिखात है !

पैरोडी



सखी सैयां तो खूब ही कमात है,महंगाई डायन खाए जात है की धुन पर आधारित



भाई मीडिया तो सच ही दिखात है

शीला जलत भुनत जात है

हत्थनी कुण्ड करे बँटाधार है

बरसात कहर ढाए जात है

भाई मीडिया तो सच -----

सारी दिल्ली है बेहाल

आई फ्लू ,डेंगू की है मार

डाक्टर हो रहे मालामाल

कॉमनवेल्थ सुसरी सर पे सवार है

बरसात कहर ढाए जा-------

भाई मीडिया तो सच ही-----

जहाँ भी देखो जाम ही जाम

सड़कों पर भी चल रही नाव

दिल्ली का जीवन… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 13, 2010 at 2:30pm — 3 Comments

एक शायर की अभिलाषा !!

आग हूँ कुछ पल दहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ,



दर्द को पीकर बहक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,



फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,





पहले कीलें ठोकिये पहनाईए काँटों का ताज ,



फिर मैं सूली पर लटक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,



इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.





कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 12, 2010 at 10:38pm — 14 Comments

मेरी चाहत

इस तरह से तेरी मुहब्बत दिल में समाई है

यूं जिन्दगी मेरी है पर तेरी लगे परछाई है



चाहे शमा की रोशनी चाहे नूर आफताब की

बगैर तेरे हरसू ता़रीकी हर जगह सियाही है



दौलत शोहरत आगोश में रहे सियासत दुनिया का

जब तुं नहीं दिल में हर मोड़ पर तन्हाई है



तुझे यकीं हो न शायद है दिल को एहसास मगर

बदले करवट मेरे जज़्बात जब लेती तुं अंगराई है



धड़कन तेरे दम से है बरकरार सांस सीने में

वजूद मेरी निशां तेरी उल्फत की खुदनुमाई है



और क्या कहे शरद… Continue

Added by Subodh kumar on September 12, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

bewafai

उनकी यादो से हमने दोस्ती कर ली,
उसकी परछाई से मोहब्बत कर ली,
उन्होंने बेवफा समजा तो क्या गम है,
बेवफाई से भी हमने वफ़ा कर ली.

Added by rohit kumar sahu on September 12, 2010 at 6:16pm — 2 Comments

ये जानता हूँ मैं

ये जानता हूँ मैं कि जिंदगी में जिंदगी मिलती नहीं है कभी,

पर फिर भी जिंदगी भर जिंदगी को तलाश रहा हूँ मैं ,



ये जनता हूँ मैं कि वो आसंमा से उतरी परी है,

फिर भी आदमी हो कर उसे छु लेना चाहता हूँ मैं,



ये जानता हूँ मैं कि इजहारे मुहब्बत एक तूफ़ान है ,

पर फिर भी इस तूफ़ान से गुजर जाना चाहता हूँ मैं,





ये जनता हूँ मैं इस जहां से तनहा ही जाऊंगा मैं,

पर फिर भी हर लम्हा उसे याद करता हूँ मैं,



ये जानता हूँ मैं कि उस से लब्ज दो लब्ज भी कह नहीं… Continue

Added by vinay sharma on September 11, 2010 at 2:30pm — 3 Comments

भजन : एकदन्त गजवदन विनायक ..... संजीव 'सलिल'

भजन :



एकदन्त गजवदन विनायक .....



संजीव 'सलिल'

*

*

एकदन्त गजवदन विनायक, वन्दन बारम्बार.

तिमिर हरो प्रभु!, दो उजास शुभ, विनय करो स्वीकार..

*

प्रभु गणेश की करो आरती, भक्ति सहित गुण गाओ रे!

रिद्धि-सिद्धि का पूजनकर, जन-जीवन सफल बनाओ रे!...

*

प्रभु गणपति हैं विघ्न-विनाशक,

बुद्धिप्रदाता शुभ फलदायक.

कंकर को शंकर कर देते-

वर देते जो जिसके लायक.

भक्ति-शक्ति वर, मुक्ति-युक्ति-पथ-पर पग धर तर जाओ रे!...

प्रभु गणेश की… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 11, 2010 at 9:09am — 2 Comments

“महँगाई महारानी”

यह ब्लॉग लिखकर मैने इन महाकवियो के महा कुंभ मे सिर्फ़ एक डुबकी लगाने की कोशिस की है.





यह एक ऐसी महारानी है जिनका नाम शायद ही किसी के मधुर वाणी का मोहताज हो.मतलब सॉफ है की द्देश् के हर मध्यम और निम्न वर्ग के लोग के मुह से अक्सर ही इनका नाम निकल ही जाती है, आख़िर महारानी जो है, भाई पूरे देश पर राज करती है यह महारानी.

पहले तो इनकी चर्चाए या नाम चुनाव के समय ही सुनने को मिलते थे, पर आजकल तो… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on September 10, 2010 at 6:30pm — 3 Comments

क़दम

क़दम


उन्ही के कदमों में जा गिरा ज़माना है
इश्क़-ओ-मुहब्बत का जिनके पास ख़ज़ाना है
वफ़ा की सूली पे जो हँसता हुआ चढ़ जाए
नाम-ए-बेवफ़ाई से बिल्कुल जो अंजाना है
ईद और दीवाली में जो फ़र्क़ नहीं करता
अल्ला और राम को एक जिसने माना है
आसां नहीं है जीना ऐसे जनू वालों का
शॅमा की मुहब्बत में हँसकर जल जाते परवाने हैं
'दीपक कुल्लवीउन सबको करता है सलाम
इंसानियत का बोझ जो हंसकर उठाते हैं


दीपक शर्मा कुल्लवी
09136211486

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2010 at 4:25pm — 2 Comments

गरीब के आंसू

कहते हैं
बड़ा दम होता है
गरीब की आंखों से
निकलने वाले आंसुओ में ॥
भष्म कर देते है
पत्थरो से बने महलों को ॥

ठीक उसी तरह
जैसे नदी का बहता
शीतल -कोमल जल
बालू कर देती है
तोड़ -तोड़ कर
पत्थरो को॥

Added by baban pandey on September 10, 2010 at 10:00am — 3 Comments

"कुछ पन्ने पुराने"





पुरानी डायरी देख...

खुल गये कुछ पन्ने पुराने...

कुछ सपने... कुछ अरमाँ... कुछ यादें...

जिन्हें कभी जीया था मैनें, यूँ ही...

यँहीं इन पन्नों में...

जिनकी भीनी-भीनी महक...

आज भी गुमा रही थी मुझे...



वही ताज़गी... वही एहसास... वही मासूमियत...

पर कुछ है...

जो अब वैसा नही...

क्या है...???

शायद... ’मैं’...???



हाँ... ’मैं’...!!

नही रही अब ’मासूम’...

नही रहे अब वो…
Continue

Added by Julie on September 9, 2010 at 7:28pm — 8 Comments

बंदरों को तो फंसना ही है

मित्रों ,यह कविता बिहार में अक्टूबर -नवम्बर २०१० में होने वाले चुनाव के परिपेक्ष्य में लिखा गया है ॥लालटेन

तीर ,हाथ और कमल ...विभिन्न राजनितिक दलों के चुनाव चिन्ह है //



आ गया मदारी

बजा रहा है डुगडुगी

बंदरों में होने लगी है सुगबुगी

अनेकों हैं नुस्खे

बंदरों को रिझाने के

नज़र डालिएगा इन पर जरा हंस के ॥



पिछली गल्तियाँ अब नहीं करूगाँ

सवर्णों को भी टिकट दूगाँ॥

अपने शाले ने भोंका था भाला

लगाने चला था मेरे ही घर में ताला

इसीलिए घर… Continue

Added by baban pandey on September 8, 2010 at 8:52am — 3 Comments

बन्द कमरे में जो मिली होगी

बन्द कमरे में जो मिली होगी
वो परेशान जिन्दगी होगी


यूं भी कतरा के गुजरने की वजह
हममें तुममें कहीं कमी होगी


हम सितम को वहम समझ बैठे
कौन सी चीज आदमी होगी


और भी कई निशान उभरे है
तेरी मंजिल यहीं कहीं होगी


ये है दस्तूरे आशनाई तपिश
उनकी आँखों में भी नमी होगी --

मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से -

Added by jagdishtapish on September 8, 2010 at 8:20am — 2 Comments

Unki yaad mein...

Added by Subodh kumar on September 7, 2010 at 3:09pm — 2 Comments

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