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SANDEEP KUMAR PATEL's Blog (238)

"ग़ज़ल" शाम अब ढलने लगी है या सबेरा हो गया

इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों 



उड़ गयी चिड़िया सुनहरी क्या बसेरा हो गया

देखते ही देखते बाजों का डेरा हो गया



कुर्बतों में मिट गयी तहजीब की दीवार यूँ

आपका कहते थे जो अब तू औ तेरा हो गया



कागजी टुकड़े खुदा हैं और उनके नूर से

बंद…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 22, 2012 at 4:00pm — 11 Comments

क्यूँ सड़क पर बीनते हो पन्नियाँ



हास्य कहाँ कहाँ से निकलता है मुझे स्वयं यकीन नहीं होता



अब देखिये



सेठ जी ने सड़क पे पन्नी बीनते बच्चे से संवेदना भरे स्वर में पूछा



क्यूँ सड़क पर बीनते हो पन्नियाँ

मिल नहीं पाती है जब चवन्नियाँ

काम कर लो घर पे मेरे तुम अगर

रोज मिल जाएँगी कुछ अठन्नियां



लड़का बोला



जेब से सबकी चुरा चवन्नियां

हमको दोगे आप कुछ अठन्नियां

चोर के घर काम करना पाप है

उससे बेहतर है उठाना पन्नियाँ



आप भी मेहनत करो अब सेठ…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 17, 2012 at 3:59pm — 7 Comments

"ग़ज़ल"गर खराबी है तो ये सिस्टम बदलना चाहिए

==========ग़ज़ल============



आ गया है वक़्त सबको साथ चलना चाहिए

दोस्तों दिल में अमन का दीप जलना चाहिए



खून की होली, धमाके, रेप, हत्या देख कर

जम चुका बर्फ़ाब सा ये दिल पिघलना चाहिए



मात देने मुल्क में पसरे हुए आतंक को 

बाँध कर सर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 16, 2012 at 11:00am — 13 Comments

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो



ठिठुरती शीत में सिमटी हुई सी रात है

अकेलेपन का गम ये इश्क की सौगात है

विरह ये लग रहा जैसे हृदय आघात है

वक़्त के सामने मेरी भी क्या औकात है



प्रिये तडपाओ न अब और जरा प्यार दो

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो



सुबह है शबनमी प्यारी गुलाबी शाम है

हवा के हाथ में कोई तिलिस्मी जाम है

युगल स्वक्छंद फिरते दे रहे पयाम हैं

इश्क करते रहो ये आशिकों का काम है



प्रिये मेरे गले को बाहों का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2012 at 4:17pm — 12 Comments

या फिर सागर मंथन होगा ???

या फिर सागर मंथन होगा ???

बात सत्य लगती खारी जब 
गरल उगलते नर नारी तब 
छुप कर बैठे विष धारी सब 

इस पर शिव से चिंतन होगा
या फिर सागर मंथन होगा ???

कितना किसको तुमने बांटा
सुख की माला दुःख का काँटा
नमक दाल और चावल आटा

पास किसी के अंकन होगा
या फिर सागर मंथन होगा ???..................

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 6:02pm — 4 Comments

शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश चीखें

शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश चीखें  



मैंने माना कोई नहीं अपना 

तोड़ डाला है आज हर सपना

रखे गैरत मिला है क्या मुझको

सोच में इसकी भला क्यूँ खपना 



सुन लूँ बिसरी हुई सी ऊँघती बेहोश चीखें

शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 3:45pm — 4 Comments

ईमानदारी

दिन रात सरकारी सिस्टम और तथाकथित भ्रष्टाचारियों को कोसते कोसते एक दिन कोसू राम भगवान् के घर को विदा हुए जी हाँ जिन्दगी भर ईमानदारी से जिए कोसू राम जी जैसे ही ऊपर पहुंचे, भीड़ लगी हुई थी चौंककर पूछा ये क्या हो रहा है !! आवाज आई पंक्ति में खड़े हो जाओ फिर बताते हैं, कोसू राम जी पंक्ति में खड़े हो गए आगे वाले सज्जन ने बताया वो दरवाजे देख रहे हो उनसे हमें पंक्तिबद्ध अन्दर जाना है शुक्रिया अदा कर कोसूराम जी सोचने लगे, चलिए आज कुछ तो अच्छा हुआ यहाँ कुछ तो ईमानदारी है अपना नंबर आ ही जायेगा । थोड़ी देर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 12, 2012 at 6:00pm — 1 Comment

गीत



प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम

तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम



तेरे बिन दिल को चैन नहीं है

मन कहे मुझसे तू यहीं कहीं है

शब् भर आँखें जाग रहीं है

निन्दिया मुझसे मेरी भाग रही है



वो जो…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 11, 2012 at 4:52pm — 8 Comments

नहीं छुपता है आशिक से वो आँखों की जुबाँ समझे

अपनी कल की ग़ज़ल में कुछ सुधार किये हैं ग़ज़ल की तकनीकी गलतियाँ दूर करने की कोशिश की है आशा है आप सभी को प्रयास सुखद लगेगा 



हैं हम गैरत के मारे पर ये सौदागर कहाँ समझे

लगाई कीमते गैरत औ गैरत को गुमाँ समझे



छिड़क कर इत्र कमरे में वो मौसम को रवाँ समझे

है बूढा पर छुपाकर झुर्रियां खुद को जवाँ समझे



गुलिस्ताँ से उठा लाया गुलों की चार किस्में जो

सजा गुलदान में उनको खुदी को बागवाँ समझे



बने जाबित जो ऑफिस में खुदी को कैद करता है

घिरा दीवार से…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2012 at 4:00pm — 14 Comments

बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे

तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे



रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया

रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे



घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी

चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 5, 2012 at 4:38pm — 13 Comments

आम आदमी

आसमाँ के देखता है ख्वाब आम आदमी

चाहता है माहो-आफताब आम आदमी



खुद चुभन सहे मगर करे नहीं वो उफ़ तलक

कायनाते खार में गुलाब आम आदमी



रात दिन गुजारता है धूप छाँव भूल कर

काम कर रहा है बेहिसाब आम आदमी…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2012 at 3:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल "बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ"

===========ग़ज़ल=============

बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

वज्न- २ २ १ - २ १ २ १ - १ २ २ १ - २ १ २



चेह्रा है आपका या हसीं माहताब है

ये नाजुकी बदन की बड़ी लाजबाब है



गोरा बदन है ऐसे के छू लें तो सुर्ख हो…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 4, 2012 at 4:50pm — 6 Comments

शून्य

रक्त से सनी

भूमि

सुर्ख नहीं

हरी भरी

फलती फूलती

कलकल निनाद से

बहती श्वेत धारा

धो डालती है

सारे पाप

गंगा…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 31, 2012 at 4:00pm — 4 Comments

दीदार के खातिर यूँ आवाम दिवानी है

कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे

आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं





हर काम निराला माँ लगता है कहानी है

दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है



दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2012 at 7:04pm — 4 Comments

गायत्री छंद 'सिर्फ एक प्रयोग' गायत्री मंत्र की तरह

================गायत्री छंद=====================



यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार

२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं

इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है

विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments

"गायत्री छंद" आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं



आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं

"गायत्री छंद"

विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\

२ १ १ -  २ १ २  - २ २ २  - २ २ १     ,     २ १ १  - १ २ २  - २ १ २   - १ २ १



माँ कमला सती दुर्गा दे दो भक्ति, हो तुम अनंता माँ महान शक्ति ||…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 10:30am — No Comments

ग़ज़ल "बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़"

==========ग़ज़ल===========

बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़

वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २



पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं

वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं



बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ

आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं



जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर

हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं



चाँद को पाने मचलता जब समंदर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 2:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल"बह्र ए खफीफ"

======ग़ज़ल=======

बह्र ए खफीफ

वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २



यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी 

इक मुलाक़ात की दुआ कैसी



जख्म दिल के हमारे भरने को

चश्म छलका रहे दवा कैसी



रात…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 3:38pm — 9 Comments

"ग़ज़ल" बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ

========ग़ज़ल=========



बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ

वजन- १ २ २ - १ २ २ -१ २ २ - १ २



मुहब्बत है तो फिर जताओ जरा

ये पर्दा हया का उठाओ जरा



अजी मुस्कुराते हो क्यूँ आह भर

है क्या राज दिल में बताओ जरा…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 1:55pm — 9 Comments

ग़ज़ल"कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे"

===========ग़ज़ल===========

बहरे- हजज

वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २

सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे

कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे



गरीबी ने मिटा डाला…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 2:30pm — 19 Comments

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