For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Veerendra Jain's Blog (35)

याद है...

 

सजदे में चेहरे के तेरे,सर को झुकाना याद है ,
इश्क़ में मेरे तेरा,खुद को भूल जाना याद है |
 
लाने को रूठे हुए, चेहरे पे मेरे इक हंसी,
वो तेरा अजीब-सी शक्लें बनाना याद है |
 
चलते हुए उस राह…
Continue

Added by Veerendra Jain on January 19, 2011 at 12:29pm — 8 Comments

ग़र साथ नहीं तेरी किस्मतें...

 

यूँ तो उड़ सकता है कोई कागज़ का पुर्ज़ा भी
पैर ज़मीन पर पसारे,
कभी कभी भाग्य के सहारे,
लेकिन उड़ नहीं पाता वही…
Continue

Added by Veerendra Jain on January 13, 2011 at 11:30am — 13 Comments

नववर्ष की नव कामना...

 

नए वर्ष के नए पटल पर

खुशियों के नए गीत सजाएँ,

नयी धरा पर सपनों के कुछ

 नए नवेले बीज बिछाएं I

 

नव दिवस की उर्जाओं संग

न केवल नए लक्ष्य बनायें,

पुराने प्रणों…

Continue

Added by Veerendra Jain on January 1, 2011 at 12:24pm — 3 Comments

काश !!!

 

कैसी हो तुम?

वैसी ही शांत, संयमित और अपने को सहेजते हुए  I

 

भाग्यशाली है वह,

जो तुम्हारे साथ है

और सुन सकता है

तुम्हारे मौन द्वारा पुकारे उसके नाम को I 

 

भाग्यशाली है वो हवा,

जो अभी बहुत हल्के से

किरणों के बावजूद तुम्हे छूकर गई है I

 

भाग्यशाली है वो जल,

जो छोड़े जाने से पूर्व

तुम्हारी अंजलि में कुछ देर रुककर

तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाता है I

 

भाग्यशाली हैं वो कभी कभी कहे गये…

Continue

Added by Veerendra Jain on December 29, 2010 at 5:30pm — 10 Comments

एकाकी...

एकाकी, एकाकी

जीवन है एकाकी...

मैं भी हूँ एकाकी,

तू भी है एकाकी,

जीवन पथ पर चलना है

हम सबको एकाकी I

 

ना कोई तेरा है,

ना है किसी का तू,…

Continue

Added by Veerendra Jain on December 26, 2010 at 12:00am — 13 Comments

तू है यहीं...



यूँ तो तू चला गया,

किंतु, जाकर भी है यहाँ !

ख्वाबों में,

फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,

है तेरी पायल की छमछम अब भी I

तेरी कोयल सी आवाज़,

आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी I

तू नहीं है अब,

किंतु,

तेरी परछाई

चादर की सलवटों में है वहीं I

तू चला गया,

क्यूँ ?

ये राज़ बस तुझे ही पता I

फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,

जो छूट गईं

यहीं घर पर… Continue

Added by Veerendra Jain on December 6, 2010 at 11:26am — 15 Comments

अस्तित्व...





देखे हैं कभी तुमने,

पेड़ की शाखों पर वो पत्ते,



हरे-हरे, स्वच्छ, सुंदर, मुस्कुराते,

उस पेड़ से जुड़े होने का एहसास पाते,



उस एहसास के लिए,

खोने में अपना अस्तित्व

ना ज़रा सकुचाते,



पड़ें दरारें चाहे चेहरों पर उनके,

रिश्तों मे दरारें कभी वो ना लाते,



किंतु,



वही पत्ते जब सुख जाते,

किसी काम पेड़ों के जब आ ना पाते,



वही पत्ते उसी पेड़ द्वारा

ज़मीन पर… Continue

Added by Veerendra Jain on November 29, 2010 at 11:39am — 5 Comments

मुंबई : 26 / 11...

वो शाम,

जिस पर था 26/11 का नाम

शांत, सुंदर, रोज़मर्रा की शाम

कर रही थी रात का स्वागत शाम,

तभी समंदर के रास्ते

आए दबे पांव

कुछ दहशतगर्द

लिए हाथों में

आतंक का फरमान,

मक़सद था जिनका केवल एक,

फैलाना आतंक

और लेना

बकसूरों की जानें तमाम I



किसी माँ ने बेटा खोया,

पिता ने अपना सहारा गँवाया,

किसी बहन का भाई ना आया,

कुछ महीनों के एक बच्चे ने

खोई दुलार की छाया,

हुई शहीद सैंकड़ों काया

जिनने अपना खून… Continue

Added by Veerendra Jain on November 26, 2010 at 6:18pm — 1 Comment

समंदर और सीप...

आज सवेरे

था मौसम का मिजाज़

भी कुछ खुशनुमा-सा,

थी हल्की सी धूप

और ज़रा सा एहसास भी ठंड का,

थी दफ़्तर की छुट्टी

तो आज मन ने लगाई अपनी अर्ज़ी

इस मौसम का लुत्फ़ उठाएँ

समंदर किनारे सैर कर आएँ I



कंधे पर एक दरी उठाए

हाथ में लिए एक किताब

पहुँचा किनारे पर समंदर के,

तो देखा मैंने,

था आज समंदर

कुछ उदास,

खुद में खोया

चुपचाप

हो जैसे खुद से नाराज़ I



क़तरा क़तरा जुटाकर हिम्मत

थामे लहरों का हाथ

रखा… Continue

Added by Veerendra Jain on November 20, 2010 at 12:32pm — 2 Comments

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

हर एक लम्हा, तुम्हारी बातें,

हैं साथ मेरे, हर एक पल में

तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें I



मेरी निगाहों में तेरा चेहरा,

ये दिल और धड़कन हैं संग जैसे,

तू संग चलता है ऐसे मेरे,

है चलता ये आसमाँ संग जैसे I



हूँ भीगा मैं ऐसे तेरी खुश्बुओं से,

हो बादल कोई डूबा बूँदों में जैसे,

यूँ छाया तेरा इश्क़ है मेरे दिल पे,

हो सिमटी कोई झील धुन्धों में जैसे I



तुझ ही में पाया मैंने ख़ुदा को,

ख़ुदा…

Added by Veerendra Jain on November 12, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..

कहते हैं इंसान स्वयं को

पर इंसानियत को समझ ना पाएँ I



जिस माँ ने पाल-पोसकर

इनको इतना बड़ा बनाया

बाँधकर उनको जंज़ीरों में

जाने कितने बरस बिताएँ I

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..



तेईस बेंचों की कक्षा इनको

भीड़ भरा इक कमरा लगती

पर डिस्को जाकर

हज़ारों की भीड़ में

अपना जश्न खूब मनाएँ I

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..



कॉलेज में नेता के आगे

बाल मज़दूरी पर

वाद विवाद कराएँ

और… Continue

Added by Veerendra Jain on October 30, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

दस्तक....

आज सुबह

जब घड़ी की सुइयाँ

हो तैयार

निकल पड़ीं विपरीत दिशाओं को

तभी

हुई दरवाज़े पर दस्तक

बंद आँखों से ही

नींद ने हिलाया मुझे

और ना चाहते हुए भी

आधी सोई आधी जागी आँखों से

दरवाज़ा खोला मैने

फटे होंठों से मुस्कुराते हुए

खड़ी थी ठिठुरती ठंडI



चाय की प्याली की गरमाहट

महसूस करते हुए

दोनों हथेलियों पर

खिड़की से बाहर झाँका मैने

तो आज सूरज ने भी

नहीं लगाई थी

दफ़्तर में हाज़िरी

बादलों की रज़ाई… Continue

Added by Veerendra Jain on October 24, 2010 at 1:09am — 6 Comments

सफ़र....

ढलती हुई शाम ने

अपना सिंदूरी रंग

सारे आकाश में फैला दिया है,

और सूरज आहिस्ता -आहिस्ता

एक-एक सीढ़ी उतरता हुआ

झील के दर्पण में

खुद को निहारता

हो रहा हो जैसे तैयार

जाने को किसी दूर देश

एक लंबे सफ़र पर I



काली नागिन सी,

बल खाती सड़कों पर

अधलेते पेड़ों के सायों के बीच

मैं,

अकेला,

तन्हा,

चला जा रहा हूँ

करता एक सफ़र,

इस उम्मीद पर

कि अगले किसी मोड़ पर

राहों पर अपनी धड़कनें बिछाए

तुम करती होगी… Continue

Added by Veerendra Jain on October 20, 2010 at 1:08am — 9 Comments

मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया....

यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,

मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II



ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,

जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II



तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,

पिए बिन ही मेरी साँसों को तेरा सुरूर हो गया II



ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,

कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II



चला गया जो तू जल्दी जल्द उठने की ख्वाहिश मे,

तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो… Continue

Added by Veerendra Jain on October 14, 2010 at 11:43pm — 2 Comments

इंतज़ार ...

मैं करता हूँ तेरा इंतज़ार प्यार में ,
प्यार करता है तेरा इंतज़ार मुझमे ..

शाम से ही रोशन ये चाँद ,
पलकें झपकते ये सितारे तमाम ,
ख्वाबों की बार बार आती जाती मुस्कान ,
हैं सभी बेचैन तेरे इंतज़ार में..

हवाएं ,
लहरें
और मैं
इंतज़ार का ही हैं नाम , प्यार में..

ख़ामोशी करती है प्यार
और प्यार करता है ख़ामोशी,
मैं करता हूँ दोनों
प्यार और खामोश इंतज़ार ...

Added by Veerendra Jain on October 11, 2010 at 1:20pm — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service