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Kanta roy's Blog (87)

भूख और पेट / लघुकथा / कान्ता राॅय

आज फिर सुबह - सुबह वह सलाम बजाने पहुँच गया उनके घर । साथ में ब्रेड - अंडे का पैकेट भी ले आया था । खाली हाथ कैसे आता भला ! वे अफसर जो ठहरे ! सुना था कि उनको भूख बहुत लगती है ।

लेकिन भूखा तो वह भी था । उसके पेट में भी दिनों दिन भूख की आग बढ़ रही थी ।

लेकिन क्या करें ! नित नये पैंतरे बदलता ,जाने कब किस बात पर वे खुश हो जाये और उसका काम बन जायें !

सरकारी अफसरों का मिजाज़ और उनकी भूख , तो वह जानता था , पर मिटाने का तरीका अभी सीख रहा था ।



शुरू - शुरू में तो काजू की बरफी भी… Continue

Added by kanta roy on February 23, 2016 at 7:00am — 8 Comments

मोह के धागे / कहानी / कान्ता राॅय

घर से बहुत दूर निकल आई थी । जाने क्या उद्वेग था कि छोड़ आई पल भर में सब कुछ । पिछले कई सालों से मन बडा उद्विग्न था । जतन करके संभाल रखा  था  लेकिन बाढ़ का पानी ,  सुनता है क्या कभी किसी घाट या  तटबंध को ! सो वेग ना सम्भल सकी , टूट गई । आते वक्त , घर से चार कदम दूर ही निकली थी कि आॅटो मिल गया ।

ऐसा लगा जैसे वह मेरा इंतज़ार ही कर रहा था ।



" स्टेशन चलोगे ? "



" बैठिये "



" कितना लोगे ? "



" १६० रूपये "



" क्या ,मीटर से नहीं चलोगे ?… Continue

Added by kanta roy on February 18, 2016 at 12:55pm — 17 Comments

वापसी जीवन के उस पार से /कहानी / कान्ता रॉय , भोपाल।

अचानक से कुछ होने लगा था । हल्का सा चक्कर और  पेपर हाथ से सरककर नीचे गिर पडा़ । उठाने को हाथ बढाया तो एहसास हुआ कि  शिथिल पड़ चुका  था मै । देह भी निष्प्राण से हो चले थे । आँखों में ही अब   होश बाकी था शायद ।सब देख और सुन पा रहा था  ।  बगल वाले कमरे में नये साल की पार्टी  अब भी जारी  थी । घर के सब सदस्य ,  बेटे- बहू, नाती- पोते , आज इकट्ठे हो गये थे  जश्न मनाने के लिए ।

मुझे पार्टी में ही तबियत नासाज   लग  रही थी । मै चुपके से  अपने कमरे में आकर  इस आराम चेयर पर एकदम…

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Added by kanta roy on February 16, 2016 at 11:45pm — 7 Comments

तुम परी हो / कविता

तुम घर मत आना कभी

तुम्हें कसम है मेरी



तुम्हारा संसार है सपनों सा

और तुम परी जैसी

तुम्हारा मन है कोमल

और तुम निर्मल सी

तुम्हारी कोमलता

तुम्हारी निर्मलता

सहन ना कर पायेंगी

यहाँ की विसंगति



यहाँ जल रहे है बाग

टूट रहे है आशियाने

सब है धुआँ धुआँ

घुट रही है जिंदगी





गये सब शानो असबाब

जल गये राजमहल

रह गई है बस सित्कार

जमीन पर यहीं



काँटे ही काँटे

ना सह पाओगी इन शूलों को

ना रह… Continue

Added by kanta roy on February 4, 2016 at 5:30pm — 6 Comments

ये शबे -गम किसने दी दिल को / गजल

ये शबे-गम किसने  दिया  दिल को

किसने अपना बना लिया दिल को



मेरी नजरों में तेरे ख्वाब सनम

कह रहे हैं ये शुकरिया दिल को



इश्क तुमसे किया है शिद्दत से

और बे चैन कर लिया दिल को



पीला-पीला बसंती सा आंचल

मिस्ल-ए-गुलशन बना गया दिल को



चाँदनी दूर जा के चमके कहीं

हमने अब तो जला लिया दिल को



रूठी तकदीर आज जागी है

कौई तकदीर दे गया दिल को



छुप गया चाँद रात होने पर

उसने जब प्यार से छुआ दिल को



तंग…

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Added by kanta roy on February 2, 2016 at 1:00pm — 5 Comments

शाखें गुल ख्वाब में खिली है अभी / गजल

शाखें गुल ख्वाब में खिली है अभी

इश्क में चोट ये नई है अभी

दिल है नादान कोई समझाये

आबरू -ए-वफ़ा बची है अभी

इस लुटे घर में कैसी आबादी

गैरों के सदके में बसी है अभी

बंध गए हैं हवा के पर सारे

क्यों दुआ बे असर हुई है अभी

राज नजरों नें आज जान लिया

गिरह ये कौन सी कसी है…

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Added by kanta roy on January 27, 2016 at 12:00am — 6 Comments

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है / गजल

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है

इक आस शगुन बन के मेरे दिल से उठी है



ये रात जुदाई की है लम्बी मेरे महबूब

हर एक घड़ी इसकी मेरी जाँ पे बनी है



इक जुर्म-ए- मोहब्बत में जमाना है मुख़ालिफ़

ये कैसी सज़ा है कि जो क़िस्मत में लिखी है



आँखें मेरी खुशीयों के कई जाम उंडले साहिब

बस फिक्र है इतनी ये गली तेरी गली है



शबनम ने भिगोया है समाँ चारो तरफ से

बाँहों में जो महबूब के इक रात मिली है



बातों में वफ़ादारी की छलका दे… Continue

Added by kanta roy on January 23, 2016 at 10:34am — 7 Comments

रूक जा ओ कामिनी

रूक जा ओ कामिनी , मृदुला सयानी

हम है पियासे राधे , पिला दे पानी ।



चाँदनी गमकत प्रिय , तोहर नव देह

निवेदन मोरा मानू , जोरू सिनेह ।



सुनु हे माधव प्रिय , आजु एक बात

मोन में राखह सखा ,मोन केर बात ।



हम धनि सुबधि , चेतन परनारी

प्रेम भरल बतिया , लागे मोरा गारी ।



तोहे सद्पुरूष , वचन दीजे मोरे

मान मोरा राखह , शपथ सिनेहे ।



हे गुणवंती राधे , चलू यमुना किनारे

तोहर नाम बंसी , लय लय पूकारे ।



गजमोती माँग तोहर , यही… Continue

Added by kanta roy on January 22, 2016 at 9:51pm — 5 Comments

साक्षात्कार ( लघुकथा )

भव्य आॅफिस। उसका पहला साक्षात्कार ...... , घबराहट लाजमी था । इसके बाद दो साक्षात्कार और । पिता नहीं रहे। घर की तंगहाली ,बडी़ होने का फ़र्ज़ ,नौकरी पाना उसकी जरूरत , आगे की पढाई को तिरोहित कर आज निकल आई थी ।

" पहले कभी कोई काम किया है ? "

"जी नहीं , यह मेरी पहली नौकरी होगी । " गरीबी ढीठ बना देती है उसने स्वंय में महसूस किया ।

" हम्म्म ! इस नौकरी को आप क्यों पाना चाहती है ?"

" कुछ करके दिखाना चाहती हूँ , यहाँ मेरे लिए पर्याप्त अवसर है…

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Added by kanta roy on January 4, 2016 at 10:02am — 6 Comments

परख / लघुकथा

" आइये ,अपनी कुर्सी पर विराज लीजिए   ।" इतना तंज ! ऐसे कह गये वे जैसे उसके सिर पर ही बैठने वाली हो ।



"जी , अब काम समझा दिजीए कि मेरा काम क्या होगा यहाँ ?" उनके लहजे से अपमानित सा महसूस कर रही थी । क्या इनके साथ ही काम करना होगा उसे ? कैसे झेलेगी ? हृदय रूआँसा हो रहा था ।



" अरे ,आप क्या काम करेंगी ? आप तो बस पगार उठा कर ऐश करेंगी , काम तो हमें करना होगा ।" वह चिढ़ कर बोला ।



"मतलब ?" सुनकर अनमना उठी । सतीश आप कैसे झेलते रहे होंगे ऐसे लोगों को , पति की याद में…

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Added by kanta roy on December 22, 2015 at 11:30am — 4 Comments

भारत स्वच्छ बनाना है / एक कोशिश

स्वच्छता की शपथ लेकर,घर- घर अलख जगाना है

भारत स्वच्छ बनाना है, आदर्श देश बनाना है-----------

नागरिक की भागीदारी, जन-सेवा की अब तैयारी

स्वच्छता की जिम्मेदारी , जन-जन की हो भागीदारी

जन-आँदोलन स्वच्छता के , नाम पर चलाना है

भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश बनाना है ------------------

स्वच्छता ही सम्पदा है ,बात यह तुम जान लो

सड़कों ,गलियों की सफाई ,अभियान यह ठान लो

सुव्यवस्थित शौचालय ,कचरा ठिकाने लगाना है

भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश…

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Added by kanta roy on December 16, 2015 at 1:45pm — 1 Comment

अधजली (लघुकथा)

क्या कसूर था उसका ? मन बेबस हो ,बार - बार डायरी के पन्ने पर लिखे उसके नाम पर जाकर ठहर जाती थी। एकटक देखती जाती ,मानो नाम में उसके अक्स दिखते हों , इबारत कर रही थी वह ....! अंगुलियों को फिराते हुए सहला रही थी उन जख्मों को भी , जो वह दे गया था ।

"उमाsss ! कहाँ भावमग्न हो रही है तु ?"

"कहीं नहीं रे ? "- उसने चौंक कर डायरी बंद कर ली , शायद फिर से चोरी पकड़ी गई थी । जिगरी थी और बरसों से रूम पार्टनर भी।

"तुमने सीधी माँग काढ़ ली ? फिर से…

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Added by kanta roy on December 15, 2015 at 1:00pm — 7 Comments

कागज़ का गाँव ( लघुकथा )

 जीप में बैठते ही मन प्रसन्नता से भर रहा था। देश में वर्षों बाद वापसी , बार -बार हाथों में पकडे पेपर को पढ़ रही थी , पढ़ क्या रही थी , बार -बार निहार रही थी। सरकार ने पिछले दस साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करके रामपुरा जैसी बंज़र भूमि को हरा -भरा बना दिया है।गाँव की फोटो कितनी सुन्दर है , मन आल्हादित हो रहा था। उसका गाँव मॉडल गाँव के तौर पर विदेशों में कौतुहल का विषय जो है ! बस अब कुछ देर में गाँव पहुँचने ही वाली थी। दशकों पहले सुखा और अकाल ने उसके पिता समेत गाँव वालो को विवश कर दिया था गावं…

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Added by kanta roy on December 4, 2015 at 3:00pm — 17 Comments

तुम्हारा हक़ (लघुकथा )

बेहाल होकर वह मोहित को एकटक देखे जा रही थी। चादर से ढका शव, शान्त चेहरा , सब्र आँखों से टूट कर बह रहा था , लेकिन रुदन हलक में जैसे अटक गया हो ,--" क्या हुआ तुम्हें ? आँखे न खोलोगे मोहित , देखो , मैं बेसब्र हो रही हूँ। क्या तुम यूँ अकेला मुझे छोड़ जाओगे ? तुमने तो कहा था, कि तमाम उम्र मेरा साथ दोगे, फिर ऐसे बीच राह में मुझे छोड़ , कहाँ , क्यों ? "-- होठों पर ताले जडे हुए थे , लेकिन आँखों ने सारी मर्यादा तोड़ दी थी. उसे एहसास हुआ दो नज़रों का घूरना , वह ग्लानि से भर उठी। अपराधी थी उन दो नज़रों की।…

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Added by kanta roy on November 30, 2015 at 12:30pm — 13 Comments

संकल्प - एक व्यंग

" ओ बाबू , सुन ना ! मुझे नेता बनना है , " --पैर पटक - पटक कर भोलूआ आज जिद पर आन पड़ा । कम अक्ल होने के बावजूद भोलूआ अपने भोलेपन के कारण गाँव भर का दुलारा था ।

बापू तो सुनते ही चक्कर खा गया । बिस्कुट ,चाकलेट और मेले घुमाने तक के सारे जिद तो आसानी से पूरा करता आया था , लेकिन बुरबक , अबकी कहाँ से नेता बनने का जिद पाल लिया । सोचे कि चलो गुड्डे- गुडि़या वाला नेता बना देंगे । रामलीला वाले सुगना से नेता जी का ड्रेस माँग के भी पहिराय देंगे , लेकिन भोलूआ का जिद तो असली नेता बनने से है । अब का…

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Added by kanta roy on November 28, 2015 at 12:00pm — 10 Comments

अंधेरों का वजूद/ लघुकथा

सहसा अंतरव्यथा से जूझती हुई सिसकियों ने दम तोड़ ,घुटने टेक दिये । फैसला कायम हो चुका था । काले कोट वाले वजीर ने गुनाहों के कीचड़ में सने हुए बादशाह को , सूर्य  सा दैदीप्यमान बना दिया था। गुनाह बेदाग़ बरी हो अट्टाहास करता हुआ बाहर की तरफ एक और  बाजी खेलने को विदा हुआ । इधर काले कोट वाला वजीर अपने जेब की गहराई नाप रहा था। 

और उधर अंधी के आँखों पर चढी काली पट्टी ने अंधेरों का वजूद अंततः कायम रखा. तराजू फिर जरा सा डोल कर रह गया ।



मौलिक व…

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Added by kanta roy on November 3, 2015 at 11:00pm — 10 Comments

कैश बाॅक्स के नजारे

साफ़ नीला आसमान

सफेद रूई सा हल्का

बिलकुल हल्का ,

हल्का वाला सफेद बादल

कभी बहुत भारी सा हो जाता है

वक्त रेशम सी ,

रेशम सी मुलायम वक्त

फिसलती हुई ,सरकती हुई

रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है

वक्त के वजूद में

जाने क्यों पहिए होते है

जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है

शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन

आजकल वक्त  नहीं रूकता

यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है

यह भीड़ कभी खत्म नहीं…

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Added by kanta roy on October 31, 2015 at 10:09am — 6 Comments

बेरोजगारी / लघुकथा

कमरे में घुसते हुए वह अपनी चाल को संतुलित कर रहा था ,पर बैठते हुए थोडा़ लड़खड़ा गया ।



" आज इतनी देर कैसे कर दी आपने , कहाँ रह गये थे , खाना लगा दूँ ? " बाहर आॅफिस , घर में बेरोजगार पति , दोनों को ही काँच के बर्तन के समान संभालने की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभा रही थी कि आज ऐसे ....!



नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । अचानक वह सोफे पर ही लुढ़क गया । एक पल के लिए उसकी धड़कन जैसे रूक गई ।



" क्या आपने ड्रग लिया है ...? "



" हाँ " अधनींदे… Continue

Added by kanta roy on October 28, 2015 at 8:36pm — 18 Comments

वे दिन भी भले थे...

फूल से दिन खिले थे
साँझ गुलशन सी रही
खुशियों का चलन था
अब विरानी भली

वे दिन भी भले थे

ये साँझ भी है भली

  .......…
Continue

Added by kanta roy on October 21, 2015 at 10:00pm — 14 Comments

खास रिश्ते का स्वप्न / लघुकथा

" ये क्या सुना मैने , तुम शादी तोड़ रही हो ? "

" सही सुना तुमने । मैने सोचा था कि ये शादी मुझे खुशी देगी । "

" हाँ ,देनी ही चाहिए थी ,तुमने घरवालों के मर्ज़ी के खिलाफ़ , अपने पसंद से जो की थी ! "

" उन दिनों हम एक दुसरे के लिए खास थे , लेकिन आज ....! "

" उन दिनों से ... ! , क्या मतलब है तुम्हारा , और आज क्या है ? "

" उनका सॉफ्स्टिकेटिड न होना ,  अर्थिनेस और सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत खलता है।  आज हम दोनों एक दुसरे के लिये बेहद आम है । "

" ऐसा क्यों ? "…

Continue

Added by kanta roy on October 21, 2015 at 4:00pm — 9 Comments

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