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dohe rajasthani mati ke

 

आंधी थी जो कर गयी,आँगन आँगन रेत

आई थी तो जायेगी,कहाँ रेत को हेत 

 

रात चांदनी दूर तक टीलों का संसार 

अळगोजे*की तान में बिखरा केवल प्यार 

 

हडकम्पी जाड़ा पड़े,चाहे बरसे आग 

सहज सहेजे मानखा माने सब को भाग 

 

सतरंगी है ओढ़नी,पचरंगी है पाग

जीवन चाहे रेत हो मनवा खेले फाग 

 

सुबह हुई कुछ और था,सांझ हुई कुछ और

आदम  की नीयत हुआ,इन टीलों का तौर   

 …

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 12:49am — No Comments

महान देश के मजबूर प्रधानमंत्री

दो बरस पहले जब यूपीए-2 गठबंधन की सरकार बनी तो यही कयास लगाया जाने लगा था कि पहली बार की तरह सरकार के लिए यह साल ठीक रहेगा और चुनाव के पहले, जो दावे कांग्रेस ने किए थे, उस पर अमल किया जाएगा। यहां दिलचस्प पहलू यही रहा कि महंगाई जैसी गंभीर समस्या से आम लोगों को निजात देने की बात कहने वाली सरकार, लगातार बयानबाजी में ही उलझी हुई नजर आई। महंगाई से निपटने अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के मंत्री तक असहाय नजर आए। कभी किसी ने यह कहकर अपने दायित्वों से मुंह मोड़ लिया कि महंगाई तो ग्लोबल वार्मिंग… Continue

Added by rajkumar sahu on February 17, 2011 at 12:23am — No Comments

और कितने भूखे हैं ये

कहा जाता है की पुरे भारत की बागडोर दिल्ली में बैठने वालों के हाथ में होती है और शायद यही सत्य भी है.साल २०१० "महंगाई" और "भ्रष्टाचार" से बदनाम रहा.ये दो शब्द ऐसे शब्द है जो की २०१० में कितने महापुरुषों को स्टार बना दिया तो कितनो की मुहं की निवाले छीन गयी .एक तरफ ए.राजा(पूर्व दूरसंचार मंत्री),सुरेश कलमाड़ी(राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यछ),ललित मोदी(इंडियन प्रिमिअर… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on February 16, 2011 at 6:42pm — No Comments

‘शराब दुकान हटाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ’

‘शीशी-बोतल तोड़ दो, दारू पीना छोड़ दो’, ‘शराब दुकान हटाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ’, ‘सरकार को जगाना है, नशामुक्त समाज बनाना है’ जैसे कई नारे लगाते हुए नवागढ़ की सैकड़ों महिलाएं शराब दुकान बंद कराने सड़क पर उतर आईं। महिलाआंे ने कचहरी चौक जांजगीर से रैली की शुरूआत की, जो विवेकानंद मार्ग होते हुए बीटीआई चौक पहुंची और फिर कलेक्टोरेट पहुंची। यहां कलेक्टर को महिलाओं ने एक ज्ञापन सौंपा और शराब दुकान को अगले वित्तीय वर्ष से बंद कराने की मांग की। यहां कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने मामले में राज्य षासन को अवगत कराने…

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Added by rajkumar sahu on February 16, 2011 at 12:47pm — No Comments

तब और अब



तब और अब

कुशल छेम पूछत रहे , दिल में राखी सनेह I


चले गए वे लोग सब, तजि मानुष के देह II

समय समय का खेल यह, भला बुरा न होय I

कारन सदा अदृश्य है, जानि  सके न कोय II

चला गया सो चला गया , वर्तमान को जान I

आगे क्या फिर आएगा , उसको भी पहचान…

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Added by R N Tiwari on February 16, 2011 at 12:17pm — No Comments

उलझन

दीदार ए अजीमत से हम शर्माए बहुत हैं

बढ़ने से कदम मेरे घबराये बहुत हैं



गर भटक गया आदम तो चोंकना कैसा

जिंदगी रस्ते में तेरे दोराहे बहुत हैं



वो तो आसमां ही था जो नसीब ना हुआ

पिंजड़े में परिंदे फडफडाए बहुत हैं… Continue

Added by Bhasker Agrawal on February 15, 2011 at 9:30pm — No Comments

प्यार

हाँ प्यार मेने भी किया बचपन से ले कर आज तक ...हाँ मुझे पता है प्यार अँधा होता ,,एक मा अपने बेटे से प्यार करती है और फिर वही बेटा उसकी पत्नी से..फिर वही पत्नी उसके बेटे से...बड़ा अजीब लगता ह सुनने मे... चलो मे अब बात करता हूँ की प्यार क्या होता है:-प्यार मे एक दूसरे का सम्मान होता है, जिसे प्यार करो उसकी फ़िक्र  होती है, उसकी चिंता होती है , उसकी बहुत याद आती हाई ,प्यार को तो महसूस किया  जाता है , प्यार कभी भी एक तरफ प्यार नही होता ,सामने वाला भी आपसे उमीद करता की आप भी बदले मे उसे तोड़ा बहुत… Continue

Added by Rohit Singh Rajput on February 15, 2011 at 4:30pm — 3 Comments

एक मिश्रण

इक और गुज़रा दिन समेटा याद में इसको;

...दफ़न हो जाएँगी अब ये मेरे मन कि दराजों में;

जो आये वक़्त परिचित तब मिलेगी रूह फिर इनको;

नहीं तो सिलवटें पड़ती रहेंगी इन मजारों में.

-----------------------------------------------------------------------------------------

वेदना कुछ भी नहीं, तब ह्रदय इतना मौन क्यों है;

क्यों हम अब भी स्वप्नते हैं, स्मृतियाँ भूली भुलाई ;

आस भी है, प्यास भी है, रौशनी कुछ ख़ास भी है;

मन हैं इतने पास अपने, हाथ लेकिन दूर क्यों… Continue

Added by neeraj tripathi on February 15, 2011 at 4:07pm — No Comments

कुछ अहसास

कुछ अहसास हर अहसास से परे

 कुछ अरमान उम्मीदो से भरे

 गम है लिखे मुक्कदर में सभी

केमहबूब का साथ हर गम हरे



किताब की लिखावट तो नीरस

हैशब्दों की बनावट भी नीरस है

गुलाबों सा महकता महबूब का प्रेम पत्र

लिये जिंदगी का हर रस है  



दुनिया में अस्तित्व हीन हूँ

सनम ही मेरी दुनिया है

 उसी में डुबा रहूँ ताउम्र 

सनम ही मेरा अस्तित्व हैं

 

मिलन यामिनी में साथ बैंठे

खुला आसमा ताकते है

चाँद को…

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Added by Mayank Sharma on February 15, 2011 at 3:30pm — No Comments

हर चेहरा लगता है पत्रकार !

यह बात सही है कि आज मीडिया का हर क्षेत्र में दखल है और शहर से लेकर गांवों तक मीडिया ने पहुंच बना ली है। इस तरह कहा जा सकता है कि मीडिया का भी समय के साथ विकेन्द्रीकरण हुआ है। पहले पिं्रट व इलेक्ट्रानिक मीडिया का संपर्क महानगरों के पाठकों व दर्शकों तक होता था, मगर आज हालात काफी बदल गए हैं। मीडिया का चाहे वह पिं्रट माध्यम हो या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया, किसी न किसी तरह से प्रत्येक घरों तक अपनी पैठ जमा ली है। जाहिर सी बात है कि जब मीडिया का प्रसार होगा तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे, ऐसा हुआ भी है और… Continue

Added by rajkumar sahu on February 15, 2011 at 1:19am — No Comments

पिताजी की डायरी से..

पिताजी की डायरी से..…















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Added by R N Tiwari on February 14, 2011 at 5:57pm — No Comments

एक और वैलेंटाइन डे ..



कहते  तो हैं की इश्क है हमसे..
इश्क है क्या ये जानते ही नहीं..
यूं तो लेते हैं न जाने कितनी कसमें..
कसमों की कीमत है क्या जानते ही नहीं..
चाह…
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Added by Lata R.Ojha on February 14, 2011 at 5:27pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल 
 
बात मुझ से ये  कर  गया  पानी 
ये ना सोचो कि डर गया पानी
 
वो   हुनरमंद   है    ज़माने    में 
जिन की आँखों का मर गया पानी
 
हुई जो हक की बात महफ़िल में
जाने किस का उतर गया पानी
 
कल जो सैलाब था ज़माने पर 
अब समंदर के घर गया पानी
 
दौर  के  तौर  को  बदल  देगा 
जब भी सर से गुजर गया…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 2:30pm — 10 Comments

चुभती साँसें मत देखा कर

ख्वाब पुराने मत देखा कर,
धुंधली यादें मत देखा कर,

और भी दर्द उभर आयेंगे,
दिल के छाले मत देखा कर,

जीवन में पैबंद बहुत हैं,
मूँद ले आँखें मत देखा कर,

अपने घर कि बात अलग है,
घर औरों के मत देखा कर,

कहने वाले बस कहते हैं,
दिन में सपने मत देखा कर,

जीवन का जब जोग लिया है,
चुभती साँसें मत देखा कर,

- आकर्षण

Added by Aakarshan Kumar Giri on February 13, 2011 at 10:00am — 3 Comments

" चुनावी मौसम "

दिल में फिर 
एक आस जगी है ,
चुनावी मौसम है
और प्यास बड़ी है |
नेता आयेंगे ,
नोट लायेंगे ,
हम तो हैं नालायक ;
फिर से नोट खायेंगे |
वोट करने भी जायेंगे
पर वापस आकर ,
बार बार चिल्लायेंगे
इसने तो कुछ किया नहीं |
अगली बार ,
दूसरे नेता को…
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Added by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 13, 2011 at 9:01am — 8 Comments

दो आंख

 

 

 …

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Added by R N Tiwari on February 13, 2011 at 7:41am — No Comments

चिड़िया से

चिड़िया तुम चहचहाइ

पौ फटने पर 

तुम्हारे चहचहाने पर ही है 

दारोमदार पौ फटने का.

अँधेरे को फाड़ कर निकलता

सिन्दूरी सूरज का गोला 

चमत्कार है तुम्हारी ही आस्था का

तुम्हारी ही आस्था ने बिखेरे है

जीवन में रंग 

पेड़ों को पराग 

गेंहूँ को बाली

आदमी को भरा धान का कटोरा 

मिला है तुम्हारे ही गीतों से 

जानता हूँ आदमी आजकल 

धान का कटोरा नहीं 

बन्दूक की गोली लिये

ढूँढता है तुम्हे 

पर…

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 12, 2011 at 10:30pm — No Comments

दुनियादारी (लघुकथा)



एक बार में ट्रेन में पुणे से मथुरा आ रहा था

जैसा की ज्यादातर यात्री करते हैं हम कुछ लोग भी एक मुद्दे पे बातचीत करके अपना समय काटने की कोशिश कर रहे थे

बात चल रही थी कश्मीर के हालातों पर .सब कश्मीर मुद्दे पे अपनी राय एक दूसरे को बता रहे थे

जैसा की हमेशा होता है मेरी राय ओरों से कुछ अलग ही थी और लोग उसपे सहमती नहीं दिखा रहे थे…

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Added by Bhasker Agrawal on February 12, 2011 at 7:47pm — No Comments

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