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Sushil Sarna's Blog – December 2021 Archive (4)

दोहा मुक्तक ......

दिल से दिल की हो गई, दिल ही दिल में बात ।
दिल तड़पा दिल के लिए, मचल गए जज़्बात ।
दिल में दिल की जीत है, दिल में दिल की हार -
दिल को दिल ही दिल मिली, धड़कन की सौगात ।

2.

काल गर्भ में है निहित, कर्म फलों का राज़।
अंतस में गूँजे सदा,  कर्मों की आवाज़ ।
कर्म प्राण है जीव का, कर्म जीव की आस -
अच्छे कर्मो से करो, जीने का आगाज़ ।


सुशील सरना / 27-12-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 27, 2021 at 7:30pm — 4 Comments

ममता पर दोहे .....

ममता पर दोहे .....

जाते हैं जो चूमकर, मात-पिता के पाँव ।

राहों में उनके नहीं, आते दुख के गाँव ।1।

जीवन में आते नहीं, उनके दुख के गाँव ।

जिनके सिर रहती सदा, आशीषों की छाँव ।2।

धन वैभव संसार में, मिल जाते सौ बार ।

मिलें नहीं जाकर कभी, मात-पिता साकार  ।3।

दृष्टि धुंधली हो गई, काया हुई निढाल ।

आई बेला साँझ की,  ढूँढे नैना लाल ।4।

ममता ढूँढे पालने, में अपना वो लाल ।

जिसको देखे हो गए,…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 13, 2021 at 1:00pm — 8 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .

दोहा त्रयी. . . . . . 

ह्रदय सरोवर में भरा, इच्छाओं का नीर ।
जितना इसमें डूबते, उतनी बढ़ती पीर ।।

मन्दिर -मन्दिर घूमिये , मिले न मन को चैन ।
मन के मन्दिर को लगें, अच्छे मन के बैन ।।

झूठे भी सच्चे लगें, स्वार्थ नीर में चित्र ।
मतलब के संसार में, थोड़े सच्चे मित्र ।।

सुशील सरना / 6-12-21
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 6, 2021 at 3:08pm — 10 Comments

दोहा मुक्तक

मन से मन की हो गई, मन ही मन में बात ।
मन ने मन को वस्ल की, दी मन में सौगात ।
मन मधुकर मन पद्म में, ढूँढे मन का छोर -
साथ निशा के हो गया , मन में उदित  प्रभात ।

तन में चलते श्वास का, मत करना विश्वास ।
इस तन के अस्तित्व का, श्वास -श्वास आभास ।
ये जीवन है मरीचिका , इसकी साँझ न भोर -
झूठा पतझड़ है यहाँ, झूठा है मधुमास ।

सुशील सरना / 4-12-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 4, 2021 at 12:00pm — 4 Comments

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