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विनोद खनगवाल's Blog – December 2014 Archive (4)

पछतावा (लघुकथा)

"सीमा, अपनी बारहवीं से आगे की पढ़ाई पूरी कर लो। कुछ बन जाओगी तो कामयाब हो जाओगी।"

"मुझे कामयाब होकर क्या करना है भगवान का दिया सबकुछ तो है हमारे पास।"- सीमा ने सौरभ को यही जवाब दिया था।

काल का ऐसा चक्र चला सौरभ इस दुनिया को अलविदा कह गया। पार्टनर भाई ने सारे बिजनेस पर धीरे-धीरे कब्जा कर लिया।

"निशा, अब हमारा क्या होगा? मेरे तो बच्चे भी छोटे-छोटे हैं उनका पालन-पोषण कैसे करूँगी? जेठ जी से कहकर थोड़ा काम दिलवा दो ना।"

"देख सीमा, तुमको तो पता ही है अब मुझसे घर का काम बनता नहीं… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 19, 2014 at 8:10am — 7 Comments

पापा (लघुकथा)

"ये दुनिया तब सच्ची थी जब आप जिंदा थे या अब सच्ची है पापा? हर रिश्ता-नाता झूठा ही लग रहा है अंकल की हिम्मत तो देखिए आज मुझे दिलासा देने के बहाने कई जगह से छुआ। आप हमें छोड़कर क्यों चले गए पापा ये दुनिया बहुत गंदी है।"

"सीमा, मेरी प्यारी बेटी रो मत। भेड़ों के लबादे में भेड़िए हैं सारे के सारे। अपने पापा की एक बात याद रखना ये भेड़िए उन्हीं को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं जो कमजोर होते हैं इसलिए हमेशा खुद को मजबूत रखना मजबूर नहीं।"- सीमा की जब आँखें खुली तो ऐसा लग रहा था जैसे हिम्मत के… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 17, 2014 at 11:50pm — 6 Comments

मानसिकता (लघुकथा)

"हे भगवान, मुझे सारी उम्र हो गई आपकी पूजा-पाठ करते हुए और कितनी परीक्षा लोगे? अब तो मुझे दर्शन दीजिए और अपनी सेवा का एक मौका देकर मेरे जीवन को धन्य कीजिए मेरे प्रभु।"

भगवान अपने भक्त की अटूट भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए एक भिखारी का रूप धारण करके उसके द्वार पर पहुँच गए।

"बेटा, कल से भूखा हूँ कुछ जलपान करवा दो।"

"सुबह-सुबह तुमको मेरा ही घर मिला था जलपान के लिए! चल भाग यहाँ से वरना तुझ पर कुत्ता छोड़ दूँगा।"

भगवान मुस्कुराते हुए अपने धाम की…

Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 7:56pm — 4 Comments

सपना (लघुकथा)

"सर, मैं मुंबई वाले प्राॅजेक्ट पर आपके साथ नहीं चल पाऊँगी।"- कहते हुए निशा ने फोन रख दिया।

"क्या हुआ निशा?"- अपनी बहन को परेशान देखकर नीरज ने पूछा।

"भैया हमारी कम्पनी एक नया प्राॅजेक्ट शुरू कर रही है। बाॅस मुझे मुंबई साथ में चलने की जिद्द कर रहे हैं और मैं वहाँ अकेले उनके साथ जाना नहीं चाहती। बाॅस कह रहे हैं अगर साथ नहीं चली तो समझो जाॅब गई। भैया फिर घर का खर्चा कैसे चलेगा?"

पढाई पूरी करने के बाद बेरोजगार घुम रहे नीरज का सपना बहुत बड़ा आदमी बनने का था लेकिन आज अपनी बहन को दुविधा… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 12, 2014 at 4:34pm — 11 Comments

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