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"हे भगवान, मुझे सारी उम्र हो गई आपकी पूजा-पाठ करते हुए और कितनी परीक्षा लोगे? अब तो मुझे दर्शन दीजिए और अपनी सेवा का एक मौका देकर मेरे जीवन को धन्य कीजिए मेरे प्रभु।"
भगवान अपने भक्त की अटूट भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए एक भिखारी का रूप धारण करके उसके द्वार पर पहुँच गए।
"बेटा, कल से भूखा हूँ कुछ जलपान करवा दो।"
"सुबह-सुबह तुमको मेरा ही घर मिला था जलपान के लिए! चल भाग यहाँ से वरना तुझ पर कुत्ता छोड़ दूँगा।"
भगवान मुस्कुराते हुए अपने धाम की ओर चल दिए।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:45pm

सुंदर लघुकथा 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 14, 2014 at 8:32pm

बहुत ही सुन्दर! घर आए का स्वागत करना चाहिए ... हम भूल जाते हैं

Comment by विनोद खनगवाल on December 14, 2014 at 1:24pm
आदरणीय मिथिलेश जी धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 14, 2014 at 12:17pm
बहुत अच्छी लघुकथा।बधाई स्वीकार करें।

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