For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजेश 'मृदु''s Blog – December 2012 Archive (5)

मेरा रस्‍ता रोक रही हैं/तेरी ही बातें अक्‍सर

कटु-मधु
कुछ भींगी यादें
लेकर आई
हर दुपहर
ढूंढा जब भी
नया ठिकाना
पहुंच गई
लेकर नश्‍तर

कमतर जिनको आंक रहे थे
कर गए आज मुझे बेघर

घुटने भर की
आशा लेकर
उड़ा विहग
जब भी खुलकर
काली स्‍याही
लेकर दौड़े
लिए पंख
धूसर-धूसर

हमने जिनको गले लगाया
कर गए वे जीना दूभर

Added by राजेश 'मृदु' on December 21, 2012 at 2:00pm — 6 Comments

हे देह लता

हे देह लता बन शरद घटा

पर देख जरा यह ध्‍यान रहे

पथ है अपार भीषण तुषार

हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे

मन भेद भरे नित चरण गहे

तन मूल धूल यह भान रहे

यौवन सम्‍हार छलना विचार

निर्लिप्‍त दीप्‍त बस प्राण रहे

 

यह नृत्‍य गान भींगा विहान

छाया प्रमाण खम ठोंक कहे

'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह

जो लेश मात्र अंजान रहे'

 

तज दर्प दंभ हैं ये भुजंग

आभा अनूप नित तूम रहे

दस द्वार ज्‍वार करता…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 2:54pm — 5 Comments

तुमको लिखते हाथ कांपते

तुमको लिखते हाथ कांपते

अक्‍सर शब्‍द सिहरते हैं

तुम क्‍‍या जानो तुमसे मिलकर

कितने गीत निखरते हैं

कर लेना सौ बार बगावत

पल भर आज ठहर जाओ

तेरा-मेरा आज भूलकर

चंदन-पानी कर जाओ

 

तुम बिन मेरा सावन सूखा

बादल खूब गरजते हैं

देख रहे जो झिलमिल लडि़यां

बहते अश्‍क लरजते हैं

 

कैसे लिख दूं बदन तुम्‍हारा

बड़ी कश्‍मकश है यारा

बदनाम चमन अंजाम सनम

कलम बिगड़ती है…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on December 11, 2012 at 12:34pm — 12 Comments

मैं यमुना ही बोल रही हूं

तेरे वादे कूट-पीस कर

अपने रग में घोल रही हूं

खबर सही है ठीक सुना है

मैं यमुना ही बोल रही हूं



पथ खोया पहचान भुलाई

बार-बार आवाज लगाई

महल गगन से ऊंचे चढ़कर

तुमने हरपल गाज गिराई



मेरे दर्द से तेरे ठहाके

जाने कब से तोल रही हूं

लिखना जनपथ रोज कहानी

मैं जख्‍मों को खोल रही हूं



ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे

और फिरा दो मेरा पानी

या फिर बैठ मजे से लिखना

एक थी यमुना खूब था पानी



बड़े यत्‍न से तेरी…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on December 6, 2012 at 2:00pm — 17 Comments

मृत्‍यु के बाद

आज नहीं स्‍पंदन तन में

क्षुधा-उदर भी रीते है

स्निग्‍ध शुभ्र वह प्रभा विमल

मुझको खूब सुभीते हैं



देह झरी अवसाद झरे

व्‍यथा-कथा के स्‍वाद झरे

किरण-किरण से घुली मिली

सकल नुकीले नाद झरे



नया जगत आभास नया

लहर-लहर उल्‍लास नया

मदिर मधुर है मुक्‍त पवन

आज गगन में रास नया



वसनहीन अब हूं…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on December 5, 2012 at 4:43pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service