में तो रुक रुक कर सुना रहा था हाल ए दिल 
उनको मेरी हर बात ग़ज़ल सी लगी 
में तो दीवानगी में चल पड़ा था उस रस्ते पर 
उनको ये कोशिश पहल सी लगी 
कोई कमी तो नहीं थी जश्न तब भी था 
तुम आये तो महफ़िल मुकम्मल सी लगी 
मुफलिसी में गया था…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 5:00pm                            —
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                      अपनी हालत क्या बताएं तुझे ऐ जिंदगी 
सुकून भी है और दर्द भी 
पर वो नहीं है..
नज़रों की तो गर्मी है 
दिलदारों की भी नरमी है 
अपनी आँखों में छुपाये जो 
अपने आगोश में डुबाये जो 
वो नहीं है..
चाँद सी तन्हाई है 
वीरानों सा सन्नाटा 
जिगर की गहराई है 
पर इनको शबाबों से भर जाये जो
वो नहीं है..
सितारों की भीड़ है 
जिंदगी जन्नत बन के आई है 
सफ़र में हूँ हवाओं सा 
इस सफ़र में साकी साथ निभाये जो 
वो नहीं…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 11:25am                            —
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                      ख्वाबों में हमने देखी एक दुनिया थी
हमराही थे वहां पे सारी खुशियाँ थीं
उम्मीद भरी इस आँखों से उनके लिए मचलते गए
हम चलते गए
अनजाने उस हमसफ़र की तलाश थी
होगा जहाँ से प्यारा दिल में आस थी
ढूँढने को उसे छोड़ा सब राहों में
गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए
सफ़र में इन राहों से पहचान हो गयी
अनजान जिंदगी आखरी अरमान हो गयी
तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए
हम चलते गए                                          
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm                            —
                                                            6 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी
तो अनंत संसार में तुम्हारा क्या
जब मेंडक हो तुम कूंए के
तो दरिया क्या और किनारा क्या
जब भूल चुके हो अपनों को
तो संसार में तुमको प्यारा क्या
जब कूंद चुके हो दंगल में
तो दुश्मन क्या और यारा क्या
जब बाँट रहे खुले हाथों से
तो थोड़ा क्या और सारा क्या
जब धुल लिखी है किस्मत में
तो ज़मीन से ज्यादा न्यारा क्या
जब दुनिया का है इश्वर वो
तो मेरा क्या और तुम्हारा…                      
Continue
                                          
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 12:44pm                            —
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                      बहुत कुछ सुना पर सीख न पाया
बहुत कुछ सूझा पर लिख न पाया
बहुत कुछ हुआ मेरे पीठ पीछे
मुडके देखा तो कुछ और ही पाया 
नमक के जैसी थी प्रकृति मेरी
पानी में घुला पर मिट न पाया
बन बोछार जब छलका में
चिकने घड़ों पे टिक न पाया
घूमता हूँ छुपाये कितने मोती में
खारा समुन्दर हूँ छुप न पाया
तंग होकर जब खुद को बेचने चला बाज़ार में
निष्फल था…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 27, 2010 at 8:30am                            —
                                                            9 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      कुछ उम्मीदें थीं खुद से तुझे 
जुटाई थी हिम्मत उसके लिए 
कुछ ऐसे तेरे लडखडाये कदम
जैसे लगी ठोकर कोई 
वादे थे जो घबरा गए 
होंगे वो पूरे अब नहीं 
यादें थी जो संजोई तूने
काँटों सी वो चुभने लगीं 
बढ़ने थे जो जमकर कदम 
राहों में वो दुखने लगे
उभरी थी जो कश्ती बड़ी
भवर में कहीं खो गयी
कोन सी है मंजिल तेरी 
वो ही है या वो नहीं 
कोन सी है मुश्किल तेरी 
कुछ है नहीं कुछ है नहीं 
शायद वो कुछ बताता तुझे 
आगे वो…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 26, 2010 at 6:58pm                            —
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                      नैनीताल,
कड़ाके की ठण्ड थी..हम परिवार के साथ होटल से नेना देवी मंदिर, पैदल पैदल जा रहे थे..
पिताजी ने कडकडाती आवाज में माँ से कहा   : " अरे जरा हैण्ड बैग मफलर तो निकाल दो "
चलते चलते अचानक वो रुक गए और कुछ देखने लगे..
सामने चबूतरे पे एक पागल सा दिखने वाला आदमी अधनंगी हालत में सुकड़ के बैठा कुछ खा रहा था..
माँ हैण्ड बैग से मफलर निकालते हुए बोली : " क्या हुआ.. रुक क्यों गए?..ये लो मफलर "
पिताजी ने झुके से स्वर में कहा : " अब रहने दो  "                                          
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 25, 2010 at 10:54am                            —
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                      लोग इतने बदल गए ज़माना इतना बदल गया
बदले जुबां के रंग उनके, तराना इतना बदल गया
निकलते हैं जब अल्फाज उनके, कुछ अजीब से लगते हैं
ऊपरी शोहरत पाकर भी वो गरीब से लगते हैं
वो भोलापन नहीं अब बातों में उनकी
दिल से निकले भाव भी तहजीब से लगते हैं
होकर सामने भी छुरा पीठ पर मारा मेरे
फिर भी दिल निकाल ना पाए
मेरे कातिल मुझे बड़े बदनसीब से लगते हैं
गले में पड़ा हार जब साँसों की तकलीफ बन गया
तब दिखावे की सजा मालूम हुई
कल बेआबरू होते देखा उन्हें बाज़ार…                      
Continue
                                          
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 10:57pm                            —
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                      आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ 
अतीत के बीते पन्नों को,उलट उलट के पढता हूँ 
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ 
जब सर पे तेरा साया था 
तब ये ख्याल न आया था 
अब ओढ़ के काले अम्बर को 
आँचल तेरा समझता हूँ 
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ 
कहता था याद करूंगा नहीं 
कभी भी बात करूंगा नहीं 
पर आज तुम्हारी यादों को 
आँखों में सजा के रखता हूँ 
आज इस खामोश रात में, तुम को याद में करता हूँ…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 12:04pm                            —
                                                            8 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      एक लड़का लड़की रेस्तरां में बैठे थे ..
लड़का : अब मान भी जाओ, इतना गुस्सा ठीक नहीं .
लड़की : देखो तुम्हे झूठ नहीं बोलना चाहिए था,प्यार में झूठ नहीं बोलते 
तभी लड़की का फोन बजा ..
हेलो! ..हाँ मम्मी में रस्ते में ही हूँ ..
                                          
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 23, 2010 at 11:14am                            —
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                      उसने पूछा ये क्या है 
मैंने कहा सवाल है 
उसने पूछा सवाल क्या है
मैंने कहा ख्याल है 
उसने पूछा ख्याल क्या है
मैंने कहा बवाल है 
उसने पूछा बवाल क्या है 
मैंने कहा मेरा हाल है                                          
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 22, 2010 at 11:48pm                            —
                                                            1 Comment
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      सच्चाई सूरत लेगी एक दिन
माटी मूरत होगी एक दिन 
क्यों भागता है यों रूठकर तू मुझसे 
मुझे तेरी जरूरत होगी एक दिन
कभी राज अपने भी बतलाऊंगा तुझे 
जो सुनने कि फुरसत होगी तुझे एक दिन
क्यों लगाया है मन तूने में चोखट पे 
खुद तेरे दर पे आऊंगा बनके जोगी एक दिन
बहुत ठोकरें खाई हैं तूने इन राहों में 
कभी मंजिल भी दिखलाऊंगा तुझे एक दिन 
बहता पानी है तू चलाती है ये ज़मीं तुझे 
बहते बहते समुन्दर बन जायेगा तू एक दिन 
गम ना…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 21, 2010 at 3:51pm                            —
                                                            1 Comment
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      जब शब्द पड़ गए कम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
जब आँखें न हुई नम तो मैंने लिखना छोड़ दिया 
पूछा गया के तुमने महफिल में दिखना छोड़ दिया 
हम बोले की हमने बिकना छोड़ दिया 
न लडखडाये उस वक्त जब राहों में रुकना छोड़ दिया 
उड़ने लगे जो आसमां में हम तो कदमों ने दुखना छोड़ दिया 
पीते थे जिस जाम में उस जाम को मैंने तोड़ दिया 
लिखते लिखते लिख पड़ी कलम के मैंने लिखना छोड़ दिया 
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 12, 2010 at 4:31pm                            —
                                                            2 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती 
याद है वो पल जब सब साथ रहते थे 
पर अब मुलाकात नहीं होती ..
दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती 
ये शिकायत नहीं सिर्फ हाल है..
कुछ जिंदगी भर साथ रहने का इरादा बनाते थे
हम सब ये करेंगे, हम सब वो करेंगे..जाने क्या क्या बताते थे..
कुछ ऐसे हैं जी लिखचीत को समझते हैं यारी
कभी लगती ये आदत उनकी कभी लगती बीमारी
कोई कभी मिल जाते हैं रस्ते में
मुस्कुराकर छूट जाते हैं सस्ते में 
मिलते हैं कुछ जब जमती हैं महफ़िल…                      
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                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 5:37pm                            —
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                      फूलों से थी चाहत मुझे
गुलदानों का सपना था
तूने बागों में छोड़ दिया
मेरा सपना तोड़ दिया
यादों से मैंने चुन चुन के
रिश्ते अपने सोचे थे
पल भर में तूने मेरा
दुनिया से नाता जोड़ दिया
खतरों से टकराकर में
आगे बढना चाहता था
देख के मेरे ज़ख्मों को
खतरों का रुख ही मोड़ दिया
प्रीत को अपनी लिख लिख के
में गीत बनाना चाहता था
बीच में मीत मिला कर के
मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया
चारों ओर अँधियारा…                      
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                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm                            —
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                      कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
 कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं
 
 हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
 मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं
 
 ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
 मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं
 
 सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
 कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं
                                           
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm                            —
                                                            No Comments                                                
                                     
                            
                    
                    
                      अनकहा बयाँ हैं अश्क तुम्हारे
अनसुनी दास्ताँ हैं अश्क तुम्हारे
आँखों से दिखती है दुनिया बाहर की
अन्दर का जहाँ हैं अश्क तुम्हारे
दर्द हो दिल में तो ही होता दीदार इनका
ऐसा कुछ कहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
मोका है आज तो जान लो तुम इन्हें
वरना हमेशा रहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
शायद खुशनुमा हैं मिजाज़ इनका
साथ रहकर दर्द सहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
ये ठहरी जमीं नहीं जो जीत लोगे तुम इन्हें
बहता आसमां हैं अश्क…                      
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                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 4:06pm                            —
                                                            No Comments                                                
                                     
                            
                    
                    
                      मेरी कलम,विचार और भाव साथ काम नहीं करते।
कभी कुछ कलम साथ देती है तो विचारों की परछाईं भर ही ज़ाहिर हो पाती है ।
कभी देखने में आया के हमने बात को इतना कम लिखा, के बात का मतलब ही बदल गया ।
कभी भावनाओं को शब्दों में पुरोया तो भावनाएं नाजायज़ लगने लगीं ।
फिर भी हम लिखते गए उस उम्मीद की खातिर के कभी किसी और को नहीं तो खुद को ही कुछ बता सकें, कुछ समझा सकें ।                                          
                    
                                                        Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:06am                            —
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