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December 2010 Blog Posts (168)

कविता _ ठूंठ

कविता :- अखिल विश्व और हम



ठूंठ वृक्ष

सूखे सब पत्ते

कोटर भी पक्षी विहीन

हम कितने एकल |



छोड़ गए सब साथ

हाथ और राह भी छूटी

मील के पत्थर भी उदास

और बेकल बेकल |



संधि काल या महाकाल

क्यों स्याह घनेरा

तुम नित प्यासे

आस भरे आते जाते पल |



दूब पांव की

कोमलता की याद दिलाती

पीछे छूटे गांव छांव सब झुरमुट वाले

हम फिर चलते जैसे चलते आज और कल… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:05pm — 2 Comments

रिश्ता-ए-ग़म

रिश्ता-ए-गम

ग़म तो ग़म हैं ग़म का क्या ग़म आते जाते हैं

किसी को देते तन्हाई किसी को रुलाते हैं

'दीपक कुल्लुवी' पत्थर दिल है लोग यह कहते हैं

उसको तो यह ग़म भी अक्सर रास आ जाते हैं

किसने देखा उसको रोते किसने झाँका दिल में

किसने पूछा क्यों कर यह ग़म तुझको भाते हैं

कुछ तो बात होगी इस ग़म में कुछ तो होगा ज़रूर

बेवफा न होते यह साथ साथ ही आते हैं

गम से रिश्ता रखो यारो ताउम्र देंगे साथ

यह आखरी लम्हात तक रिश्ता… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 4, 2010 at 10:00am — No Comments

यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर



यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर ,

अब कोई खरखराहट भी नही है इनमे,

शायद ओस की बूंदों ने उनकी आँखों को

कुछ नम कर दिया हो जैसे ...

बस खामोश से यूँ चुपचाप परे है ,

यादों के ये पत्ते ...



जहन मे जरुर तैरती होगी बीती वो हरयाली,

हवायें जब छु जाती होगी सिहरन भरी ..

पर आज भी है वो इर्द गिर्द उन पेड़ों के ही ,

जिनसे कभी जुरा था यादों का बंधन ..



सन्नाटे मे उनकी ख़ामोशी कह रही हो जैसे,

अब लगाव नही , बस बिखराव है हर पल… Continue

Added by Sujit Kumar Lucky on December 4, 2010 at 1:54am — No Comments

ज़िन्दगी बंदगी वरन क्या ज़िन्दगी - ग़ज़ल

ग़ज़ल

अज़ीज़ बेलगामी



नै फ़क़त खुशनुमा मश्घला ज़िन्दगी

ज़िन्दगी अज्म है हौसला ज़िन्दगी



हालत - ए -ज़हन का आईना ज़िन्दगी

निय्यत - ए -क़ल्ब का तजज़िया ज़िन्दगी



ज़िन्दगी , बंदगी .. वरन क्या ज़िन्दगी

बंदगी ही का एक सिलसिला ज़िन्दगी



ये कभी जोक - ए -सजदा की तकमील है

और कभी यूरिश - ए -कर्बला ज़िन्दगी



खौफ ने जोहर - ए -ज़िन्दगी ले लिया

अज्म ने तो मुझे की अता ज़िन्दगी



तेरी मज्बूरियौं का मुझे इल्म… Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 3, 2010 at 12:30pm — No Comments

यह प्यार का समंदर

यह प्यार का समंदर क्यों आंखो मे समाया है
एक ठंडी सी तपिस में क्यों दिल को डुबाया है
मत देखो इस तरह...कि एक तूफ़ान सा उठता है
मन पल में सहमता है क्षण भर में मचलता है
तुम आओ तो सही हम दीवानों की महफ़िल में
इस अंजुमन की रौ में कोई पतंगा जलता है

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 3, 2010 at 10:19am — 4 Comments

पहली बार एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर हो रहा हूँ : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल

("मोहब्बत" की नज्र)



अज़ीज़ बेलगामी, बैंगलोर





ज़मीं बंजर है, फिर भी बीज बोलो, क्या तमाशा है

तराजू पर, खिरद की, दिल को तोलो, क्या तमाशा है



ज़माने से छुपा रख्खा है हम ने सारे ज़खमौं को

सितम के दाग़-ए-दामां तुम भी धोलो, क्या तमाशा है



अभी चश्मे करम की आरज़ू है सैर-चश्मों को

हो मुमकिन तो हवस के दाग़ धो लो, क्या तमाशा है



नहीं कशकोल बरदारी तुम्हारी, वजह–ए-रुसवाई

मोहब्बत मांगनी है मुह तो खोलो, क्या तमाशा… Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 2, 2010 at 11:30am — 8 Comments

ग़ज़ल:-घर से बाहर निकल

ग़ज़ल

घर से बाहर निकल

चाँदनी में टहल |



खौफ गिरने का है

थोडा रुक रुक कर चल |



याद बचपन को कर

और फिर तू मचल |



मौत सा सच नहीं

ज़िंदगी पल दो पल |



फूल था बीज बन

पंखुरी मत बदल |



थोड़ी मोहलत मिले

फैसला जाये टल |



मैं गुनहगार हूँ

सोच मत मुझको छल |



ये घड़ा विष भरा

पी ले शिव बन गरल |



कोई झंडा उठा

कोई कर दे पहल… Continue

Added by Abhinav Arun on December 2, 2010 at 10:14am — 1 Comment

ग़ज़ल : -तुम न मेरे हुए

ग़ज़ल



तुम न मेरे हुए

घुप अँधेरे हुए |



सोन मछली हो तुम

हम मछेरे हुए |



शाम बेमन सी थी

लो सबेरे हुए |



तितली नादान थी

फिर भी फेरे हुए |



निकली बंजर ज़मी

क्यों बसेरे हुए |



याद सावन हुई

हम घनेरे हुए |



दर्द है या धुंआ

मुझको घेरे हुए |



बीन तुमने सूनी

हम सपेरे हुए |



इक बदन चाँदनी

सौ चितेरे हुए… Continue

Added by Abhinav Arun on December 2, 2010 at 9:56am — 3 Comments

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