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गिरिराज भंडारी's Blog – October 2016 Archive (3)

ग़ज़ल - हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं ( गिरिराज भंडारी )

1212   1122   1212   22

जो हिकमतों से मुक़द्दर तराश लेते हैं

पड़े जो वक़्त वो मंज़र तराश लेते हैं

 

वो मुझसे पूछने आये हैं मानी हँसने का

सुकूँ के पल से जो महशर तराश लेते हैं 

 

उन्हे यक़ीन है वो आँधियाँ बना लेंगे

हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं 

 

अगर मिले उन्हे रस्ते में भी पड़ा पत्थर

तो उसके वास्ते वो सर तराश लेते हैं

 

उन्हे है जीत का ऐसा नशा कि लड़ने को

हमेशा ख़ुद से वो कमतर तराश लेते…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:21am — 4 Comments

ग़ज़ल - ये नई नस्ल है, तेरी भी दिवानी होगी ( गिरिराज भंडारी )

2122    1122    1122    22

बात सरहद पे अगर अब भी पुरानी होगी

तब दिलों मे हमें दीवार उठानी होगी

 

हर कहानी में हक़ीकत भी ज़रा होती है

ये हक़ीकत भी किसी रोज़ कहानी होगी

 

हाथ जिनके भी बग़ावत पे उतर आये हों

पैर में उनके भला कैसे रवानी होगी

 

सभ्य लोगों में असभ्यों की तरह बात तो कर

ये नई नस्ल है, तेरी भी दिवानी होगी

 

अपने अजदाद कभी राम-किसन-गौतम थे 

देखना घर मे बची कुछ तो निशानी होगी

 

रंग…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 20, 2016 at 8:10am — 19 Comments

ग़ज़ल -तब अलग थी, अब जवानी और है ( गिरिराज भंडारी )

ग़ालिब साहब की ज़मीन पर एक प्रयास

तब अलग थी, अब जवानी और है

2122   2122    212  --

शक्ल में जिनकी कहानी और है

क्या उन्होनें मन मे ठानी और है

 

लफ़्ज़ तो वो ही पुराना है मगर

आज फिर क्यों निकला मअनी और है

 

हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये

तब अलग थी, अब जवानी और है

 

है समंदर की सतह पर यूँ सुकूत

पर दबी अब सरगिरानी और है

 

साजिशें सारी पस ए परदा हुईं

पर अयाँ जो है ज़बानी,.. और है…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 8:00am — 31 Comments

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"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
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सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
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"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
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Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
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