For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजेश 'मृदु''s Blog – October 2012 Archive (5)

अनायास

अनायास

तरंगित कल्‍मषों

बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर

किसी निविड़ एकांत में

जब समस्‍त दिशाएं खो चुकी हों

अपनी पगध्‍वनि

सारे पदक्षेप

और तिरोहित हो चुके हों

निष्‍ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,

अपनी सारी भभक सारी तपिश

और साथ लेकर अपने

सारे चटकीले रंग 

आना तुम भी

बस एक बार…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments

मलाला को समर्पित एक रचना

कुहरीले जंगल में हंसती

हरी हवा सी चलती हूं

मुक्‍त  गगन से गिरी ओस हूं

तृण टुनगों पर पलती हूं

 

हू हू करता आंख दिखाता

रे तमस किसे भरमाता है

देख मेरा बस एक नाद ही

कैसे तुझे जलाता है

 

अभी जरा निष्‍पंद पड़ी हूं

कहां अभी तक हारी हूं

भूल न करना मरी पड़ी हूं

अबला,बाल,बेचारी हूं

 

अरे कुटिल यह चाप तुम्‍हारा

वृथा चढ़ा रह जाएगा

तेरा ही तम कहीं किसी दिन

तुझको भी डंस…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments

कैसे कह दूं

कैसे कह दूं हिंद हूं मैं

चीन हूं या अमरीका हूं

यूरोप शुष्क भावों की धरती

या अंध देश अफ्रीका हूं

प्रिय विछोह के विरह ताप से

सहस्‍त्र युगों तक तप्‍त रही मैं

निर्जनता के दु:सह शाप से

सदियों तक अभिशप्‍त रही मैं

लखकर तब मेरे विषाद को

दृग केशव के भर आए थे

असंख्‍य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर

अश्रु के अर्ध्‍य चढ थे

मुरली से फिर जीवन फूटा

उल्‍लासित दशों दिशाएं थी

ओढ ओस की झीनी…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 3:58pm — 9 Comments

आंखें करे शिकायत किनसे

आंखें करे शिकायत किनसे

वही व्‍यथा क्‍यों ढोते हैं

बीज वपन तो करता मन है

वे नाहक क्‍यों रोते हैं

 

पलकों की बंदिश में हरदम

क्‍यों वे रोके जाते हैं

और तड़पते देह यज्ञ…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 5, 2012 at 3:55pm — 7 Comments

तेरे भी

तेरे भी ख्‍वाबों में कोई

अलबेली आई तो होगी

कनक कलश भर सुधा लुटाते

क्षितिज नए लाई तो होगी



उसकी कोरी एक छुअन से

पोर-पोर जागी तो होगी

पलक बंद कर तुमने भी तो

कोई दुआ मांगी तो होगी



सच कहना उसकी यादों में

कितनी रात गंवाई तुमने

कितनी तीली कितने दीपक

कितनी आस जलाई तुमने



खिला-खिला वो तेरा चेहरा

कितना बेबस बेजान…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 4, 2012 at 7:31pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service