For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sanjiv verma 'salil''s Blog – October 2011 Archive (11)

एक कविता: कौन हूँ मैं?... --संजीव 'सलिल'

एक कविता:
कौन हूँ मैं?...
संजीव 'सलिल'
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 30, 2011 at 10:29am — 6 Comments

दोहा सलिला: दोहों की दीपावली, अलंकार के संग..... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                       



दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.....



संजीव 'सलिल'

*

दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.

बिम्ब भाव रस कथ्य के, पंचतत्व नवरंग..

*

दिया दिया लेकिन नहीं, दी बाती औ' तेल.

तोड़ न उजियारा सका, अंधकार की जेल..   -यमक

*

गृहलक्ष्मी का रूप तज, हुई पटाखा नार.     -अपन्हुति

लोग पटाखा खरीदें, तो क्यों हो  बेजार?.    -यमक,

*

मुस्कानों की फुलझड़ी, मदिर नयन के बाण. …

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 27, 2011 at 9:07am — 5 Comments

व्यंग्य रचना: दीवाली : कुछ शब्द चित्र: संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:                                                                                  

दीवाली : कुछ शब्द चित्र:

संजीव 'सलिल'

*

माँ-बाप को

ठेंगा दिखायें.

सास-ससुर पर

बलि-बलि जायें.

अधिकारी को

तेल लगायें.

गृह-लक्ष्मी के

चरण दबायें.

दिवाली मनाएँ..

*

लक्ष्मी पूजन के

महापर्व को

सार्थक बनायें.

ससुरे से मांगें

नगद-नारायण.

न मिले लक्ष्मी

तो गृह-लक्ष्मी को

होलिका बनायें.

दूसरी को…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 26, 2011 at 8:00am — 4 Comments

दोहा सलिला : दोहों की दीपावली: --संजीव 'सलिल'





दोहा सलिला :

दोहों की दीपावली:

--संजीव 'सलिल'



दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.

श्री गणेश के बिम्ब को, अलंकार अनुमान..



दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.

सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..



अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.

माटी का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..



मन का दीपक लो जला, तन की बाती डाल.

इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..



दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.

राह अलग हर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2011 at 5:00pm — 4 Comments

मुक्तिका : भजे लछमी मनचली को.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

भजे लछमी मनचली को..

संजीव 'सलिल'

*

चाहते हैं सब लला, कोई न चाहे क्यों लली को?

नमक खाते भूलते, रख याद मिसरी की डली को..



गम न कर गर दोस्त कोई नहीं तेरा बन सका तो.

चाह में नेकी नहीं, तू बाँह में पाये छली को..



कौन चाहे शाक-भाजी-फल  खिलाना दावतों में


चाहते मदिरा पिलाना, खिलाना मछली तली को..



ज़माने में अब नहीं है कद्र फनकारों की बाकी.

बुलाता बिग बोंस घर में चोर डाकू औ' खली को.. …

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2011 at 1:23am — No Comments

एक कविता: बाजे श्वासों का संतूर..... संजीव 'सलिल

बृहस्पतिवार, ६ अक्तूबर २०११

एक कविता:

बाजे श्वासों का संतूर.....

संजीव 'सलिल'

*

मन से मन हिलमिल खिल पायें, बाजे श्वासों का संतूर..

सारस्वत आराधन करते, जुडें अपरिचित जो हैं दूर.

*

कहते, सुनते, पढ़ते, गुनते, लिखते पाते हम संतोष.

इससे ही होता समृद्ध है, मानव मूल्यों का चिर कोष...

*

मूल्यांकन…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 6, 2011 at 10:36am — No Comments

एक गीत: आईने अब भी वही हैं -- संजीव 'सलिल'

एक गीत:

आईने अब भी वही हैं

-- संजीव 'सलिल'

*



आईने अब भी वही हैं

अक्स लेकिन वे नहीं...

*

शिकायत हमको ज़माने से है-

'आँखें फेर लीं.

काम था तो याद की पर

काम बिन ना टेर कीं..'

भूलते हैं हम कि मकसद

जिंदगी का हम नहीं.

मंजिलों के काफिलों में

सम्मिलित हम थे नहीं...

*

तोड़ दें गर आईने

तो भी मिलेगा क्या हमें.

खोजने की चाह में

जो हाथ में है, ना गुमें..

जो जहाँ जैसा सहेजें

व्यर्थ कुछ फेकें…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 5, 2011 at 2:12am — 1 Comment

लघुकथा : निपूती भली थी -- संजीव 'सलिल'

 लघुकथा 

निपूती भली थी  …

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 2, 2011 at 6:30pm — 3 Comments

एक रचना: कम हैं... --संजीव 'सलिल'

एक रचना:

कम हैं...

--संजीव 'सलिल'

*

जितने रिश्ते बनते  कम हैं...



अनगिनती रिश्ते दुनिया में

बनते और बिगड़ते रहते.

कुछ मिल एकाकार हुए तो

कुछ अनजान अकड़ते रहते.

लेकिन सारे के सारे ही

लगे मित्रता के हामी हैं.

कुछ गुमनामी के मारे हैं,

कई प्रतिष्ठित हैं, नामी हैं.

कोई दूर से आँख तरेरे

निकट किसी की ऑंखें नम हैं

जितने रिश्ते बनते  कम हैं...



हमराही हमसाथी बनते

मैत्री का पथ अजब-अनोखा

कोई न…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 2, 2011 at 8:00am — 5 Comments

Monthly Archives

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
18 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
19 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
22 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
23 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
26 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. . समुन्दर ने नदी को ख़त लिखा है मुझे इन…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. जयहिन्द रायपुरी जी,पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ.तहज़ीब हाफ़ी की इस ग़ज़ल को बाँधने में दो मुख्य…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"सादर अभिवादन तुम्हारी ख़्वाहिशों से याद आया हमें कुछ तितलियों से याद आया मैं वो सब भूल जाना चाहता…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service