2212 1212 2212 12
दिल क्या लगे किसी का जब कोई न काम हो
इससे भला तो ग़ैब के घर में क़याम हो //1
कोशिश तो कर कि मुफ़लिसी मेरी न आम हो
मेरे दिवारो दर पे भी कोई तो बाम हो //2
इतना तो मेरी ख़्वाहिशों का एहतराम हो
गर हो न मय जो हल्क़ में, हाथों में जाम हो //3
कब तक हवाओं के फ़क़त बिखराव में जिऊँ
मेरे लिए भी ऐ ख़ुदा कोई निज़ाम हो…
Added by राज़ नवादवी on October 30, 2018 at 8:30pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
(मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल)
जिन्हें भी टूट के चाहा वो पत्थर के सनम निकले
चलो अच्छा हुआ दिल से मुहब्बत के भरम निकले //1
उड़ें छीटें स्याही के, उठे पर्दा गुनाहों से
कभी तो तेग़ के बदले म्यानों से कलम निकले //2
हवा में ढूँढते थे पाँव अपने घर के रस्ते को
तेरी महफ़िल से आधी रात को पीकर जो हम निकले //3…
Added by राज़ नवादवी on October 26, 2018 at 4:30pm — 15 Comments
2122 1122 1122 22/ 112
याद की तह से कई भूले फ़साने निकले
आज हम तेरे लिखे ख़त जो जलाने निकले //1
चाहता हूँ मैं तुझे अपनी अना से बढ़कर
इस यकीं तक तुझे लाने में ज़माने निकले //२
ये भी अहसान जताने की नई कोशिश है
ख़त्म जब हो चुका रिश्ता तो मनाने निकले //3
अब कोई इनको बताए कि क़ज़ा क्या शय है
जा चुके छोड़ के दुनिया तो बुलाने निकले //4
जिनने खाई थी क़सम मुझको नहीं देखेंगे
आज काँधे पे मेरी लाश…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 13 Comments
2122 1122 1122 112/22
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जिसको भी चाहा मुहब्बत में हमारा न हुआ
दिल हमारा किसी सूरत भी गवारा न हुआ //1
मेरे क़िरदार में पाने की लियाक़त नहीं थी
मुझपे जो फैज इनायत का दुबारा न हुआ //2
आज फिर बाम पे छाई थी अमावस काली
आज फिर बिन्ते अशीयत का नज़ारा न हुआ //3
है जईफी तो सताती है हमें तन्हाई
जब जवाँ थे तो मुहब्बत का इशारा न हुआ //4
मौजें उठतीं है मगर रोक लेता है…
Added by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 8 Comments
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