For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sanjiv verma 'salil''s Blog – September 2011 Archive (10)

एक गीत: शेष है... --संजीव 'सलिल'

एक गीत:

शेष है...

संजीव 'सलिल'

*

किरण आशा की

अभी भी शेष है...

*

देखकर छाया न सोचें

उजाला ही खो गया है.

टूटता सपना नयी आशाएँ

मन में बो गया है.

हताशा कहती है इतना

सदाशा भी लेश है...

*

भ्रष्ट है आचार तो क्या?

सोच है-विचार है.

माटी का तन निर्बल

दैव का आगार है.

कालिमा अमावसी में

लालिमा अशेष है...

*

कुछ न कहीं खोया…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 30, 2011 at 1:41am — No Comments

एक हुए दोहा यमक: संजीव 'सलिल'

एक हुए दोहा यमक:

संजीव 'सलिल'

*

लिए विरासत गंग की, चलो नहायें गंग.

भंग न हो सपना 'सलिल', घोंटें-खायें भंग..

*

सुबह शुबह में फर्क है, सकल शकल में फर्क.

उच्चारण में फर्क से, होता तर्क कु-तर्क..

*

बुला कहा आ धार पर, तजा नहीं आधार.

निरा धार होकर हुआ, निराधार साधार..

*

ग्रहण किया आ भार तो, विहँस कहा आभार.

देय - अ-देय ग्रहण किया, तत्क्षण ही साभार..

*

नाप सके भू-चाल जो बना लिये हैं यंत्र.

नाप सके भूचाल जो, बना न पाये…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 27, 2011 at 7:30am — 1 Comment

एक गीत: गरल पिया है... -- संजीव 'सलिल'

एक गीत:

गरल पिया है...

संजीव 'सलिल'

*

तुमने तो बस गरल पिया है...



तुम संतोष करे बैठे हो.

असंतोष को हमने पाला.

तुमने ज्यों का त्यों स्वीकारा.

हमने तम में दीपक बाला.

जैसा भी जब भी जो पाया

हमने जी भर उसे जिया है

तुमने तो बस गरल पिया है...



हम जो ठानें वही करेंगे.

जग का क्या है? हँसी उड़ाये.

चाहे हमको पत्थर मारे

या प्रशस्ति के स्वर गुंजाये.

कलियों की रक्षा करने को

हमने पत्थर किया हिया है…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 26, 2011 at 9:30pm — 1 Comment

एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

एक हुए दोहा यमक:

-- संजीव 'सलिल'

*

हरि से हरि-मुख पा हुए, हरि अतिशय नाराज.

बनना था हरि, हरि बने, बना-बिगाड़ा काज?

हरि = विष्णु, वानर, मनुष्य (नारद), देवरूप, वानर

*

नर, सिंह, पुर पाये नहीं, पर नरसिंहपुर नाम.

अब हर नर कर रहा है, नित सियार सा काम..

*

बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.

मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..

*

करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.

करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..

*

खान-पान कर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 25, 2011 at 9:00am — 1 Comment

बोध कथा: शब्द और अर्थ -- संजीव 'सलिल'



बोध कथा:

शब्द और अर्थ 

संजीव 'सलिल'

*

शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त होने पर चैन की साँस ली और कमर सीधी करने के लिये लेटा ही था कि काम करने की मेज पर कुछ हलचल सुनाई दी. वह मन मारकर उठा, देखा मेज पर शब्द समूहों में से कुछ शब्द बाहर आ गये थे. उसने पढ़ा - वे शब्द थे प्रजातंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 20, 2011 at 2:30am — 3 Comments

दोहा सलिला: एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

एक हुए दोहा यमक:

-- संजीव 'सलिल'

*

पानी-पानी हो रहे, पानी रहा न शेष.

जिन नयनों में- हो रही, उनकी लाज अशेष..

*

खैर रामकी जानकी, मना जानकी मौन.

जगजननी की व्यथा को, अनुमानेगा कौन?

*

तुलसी तुलसी-पत्र का, लगा रहे हैं भोग.

राम सिया मुस्का रहे, लख सुन्दर संयोग..

*

सूर सूर थे या नहीं, बात सकेगा कौन?

देख अदेखा लेख हैं, नैना भौंचक-मौन..

*

तिलक तिलक हैं हिंद के, उनसे शोभित भाल.

कह रहस्य हमसे गये,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 19, 2011 at 7:08am — No Comments

मुक्तिका: अब हिंदी के देश में --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

अब हिंदी के देश में

संजीव 'सलिल'

*

करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.

गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..



ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...

शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में



बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.

मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..



'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.

नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..…



Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:30am — 8 Comments

अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख: तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में (संजीव वर्मा 'सलिल')

अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख:

तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में

संजीव वर्मा 'सलिल'


*

राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:

              किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:00am — No Comments

काव्य सलिला: अनेकता हो एकता में -- संजीव 'सलिल'



*

विविधता ही सृष्टि के, निर्माण का आधार है.

'एक हों सब' धारणा यह, क्यों हमें स्वीकार है?



तुम रहो तुम, मैं रहूँ मैं, और हम सब साथ हों.

क्यों जरूरी हो कि गुड़-गोबर हमेशा साथ हों?



द्वैत रच अद्वैत से, उस ईश्वर ने यह कहा.

दूर माया से सकारण, सदा मायापति रहा..



मिले मोदक अलग ही, दो सिवइयां मुझको अलग.

अर्थ इसका यह नहीं कि, मन हमारे हों विलग..



अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.

तन नहीं मन…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 4, 2011 at 4:17pm — 2 Comments

सावन गीत: -- संजीव 'सलिल'

सावन गीत:

संजीव 'सलिल'

*

मन भावन सावन घर आया

रोके रुका न छली बली....

*

कोशिश के दादुर टर्राये.

मेहनत मोर झूम नाचे..

कथा सफलता-नारायण की-

बादल पंडित नित बाँचे.



ढोल मँजीरा मादल टिमकी

आल्हा-कजरी गली-गली....

*

सपनाते सावन में मिलते

अकुलाते यायावर गीत.

मिलकर गले सुनाती-सुनतीं

टप-टप बूँदें नव संगीत.



आशा के पौधे में फिर से

कुसुम खिले नव गंध मिली....

*

हलधर हल धर शहर न जाये

सूना…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2011 at 8:04am — 3 Comments

Monthly Archives

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
21 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service