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राज़ नवादवी's Blog – September 2013 Archive (4)

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-६९ (तरुणावस्था-१६)

(आज से करीब ३१ साल पहले: साहित्य और आध्यात्म)

 

मैट्रिक की परीक्षा शेष होने के बाद के खालीपन में मैं अक्सरहा या तो हिंदी साहित्य की किताबे पढ़ने लगा हूँ या अध्यात्म की. दोनों ही तरह की किताबों की कोई कमी नहीं है हमारे घर में. ये मुझे मेरे नाना, मेरे पिता, मेरे मंझले चाचा, एवं मेरे बड़े भाई जो मुझसे उम्र में करीब १३-१४ साल बड़े हैं, से विरासत में मिली हैं. साहित्य में जहां टैगोर, शरतचंद्र, प्रेमचंद्र, टॉमस हार्डी जैसे कथाकारों की किताबें भरी पडी हैं वहीं अध्यात्म एवं दर्शन में…

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Added by राज़ नवादवी on September 15, 2013 at 10:00pm — 8 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-६८ (तरुणावस्था-१५): रेल से आंध्रा का सफ़र

(आज से करीब ३१ साल पहले)

किसी उदास दिन, किसी खामोश शाम, और किसी नीरव रात सा ये सफ़र मुझे बेचैन कर गया. रेल सरपट भागी जा रही थी और नज़ारे, खेत और खलिहान पीछे. दोपहर की वीरानगी में स्त्री-पुरुषों के साथ बच्चों को खेतों पे काम करते देख मन अजीब पीड़ा से भरता जा रहा था. गाड़ी भागती जा रही थी मगर बंजर दिखते खेत और पठारी एवं असमतल भूमि का कहीं अंत नहीं दिख रहा था. बैल हल का जुआ कंधे पे थामे, किसान अरउआ हाथ में पकड़े, औरतें और बालाएं हाथ में हंसिया लिए झुकी कमर, खामोशी, और निस्तब्धता…

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Added by राज़ नवादवी on September 11, 2013 at 4:51pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-६७ (तरुणावस्था-१४): किताबों के संग

(आज से करीब ३१ साल पहले)

आज का दिन किताबों के साथ बीत गया. इतनी जल्दी मानो मेरी गति घड़ी के काँटों से भी तीव्रतर थी. शरतचंद्र की उपन्यासिका ‘बिराज बहु’ को आद्योपांत पढ़ने के दौरान मैं समय की हिमावर्त सडकों पे असहाय फिसलता गया. इस कृति ने मेरे मर्म को छू लिया था.

 

बिराजबहू उपन्यास की मुख्य पात्रा है जिसे लेखक ने अपनी जीवंत लेखनी के माध्यम से अत्यंत सशक्त और स्वाभाविक ढांचे में ढाला है. पात्रों के अंतर्संघर्ष में मुझे अपने ही समाज की असंगतियों, मानवीय भावनाओं,…

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Added by राज़ नवादवी on September 7, 2013 at 7:00am — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ६३-६६ (तरुणावस्था-१० से १३)

(आज से करीब ३१ साल पहले)

 

शनिवार, २७/०३/१९८२, नवादा, बिहार: एक मोड़

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आज हम सभी साथियों की खुशी किसी सीमा में बांधे नहीं बाँध रही है. आज हम सभी सुबह से ही उस घड़ी की प्रतीक्षा में हैं जब हम मैट्रिक की संस्कृत के द्वीतीय पत्र की परीक्षा दे परीक्षा-भवन से आख़िरी बार निकालेंगे.

 

हमारे मैट्रिक इम्तेहान का सेंटर नवादा मुख्यालय से २९ किमी दूर रजौली कसबे के एक सरकारी स्कूल में रखा गया था. मैं और मुझसे…

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Added by राज़ नवादवी on September 2, 2013 at 11:07am — 7 Comments

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