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राजेश 'मृदु''s Blog – July 2013 Archive (4)

जिद अपनी छोड़े ना

देहरी लांघ चली

आशाएं

मुंह बाएं प्रीत

भगोना

अँखुवाती भर देह

विवशता

जिद अपनी छोड़े ना

आदिम सब

चट्टान…

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Added by राजेश 'मृदु' on July 18, 2013 at 4:30pm — 5 Comments

बंजर बादल चूम रहे हैं/फिर से प्रेत शिलाएं

बंजर बादल चूम रहे हैं

फिर से प्रेत शिलाएं

लोकतंत्र की

लाश फूलती

गंध भरे

गलियारों में

यहां-वहां बस

काग मचलते

तुष्‍ट-पुष्‍ट

ज्‍योनारों में

नित्‍य बिकाउ नारे लेकर

चलती तल्‍ख हवाएं

गंगा का भी

संयम टूटा

वक्र बही

शत धारों में

क्षुब्‍ध, कुपित

पर्वत, हिमनद भी

कह गए बहुत

ईशारों में

पछताते चरणों से लौटी

कितनी विकल…

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Added by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 4:52pm — 16 Comments

नवगीत (राजेश कुमार झा)

इक औरत सी तन्‍हाई को

जब यादें कंधा देती हैं

दीर्घ श्‍वांस की

चंड मथानी

मथ जाती

देह-दलानों को

टूटे प्‍याले

रोज पूछते

कम-ज्‍यादा

मयखानों को

गलते हैं हिमखण्‍ड कई पर

धारा कहां निकलती है

नि:शब्‍द सुलगती

रात पसरती

उष्‍ण रोध दे

प्राणों को

कौन रिफूगर

टांक सकेगा

इन चिथड़े

अरमानों को

कैसे पाउं मंजिल ही जब

पल-पल जगह बदलती…

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Added by राजेश 'मृदु' on July 10, 2013 at 1:24pm — 23 Comments

तुलसी की चौपाई में

तमस मंथरा

के निवास में

ईच्‍छा जब

पग धरती है

**दश रथों की

धीर धुरी भी

विकल हाथ

बस मलती है

ऐसे में

अक्‍सर ही संयम

दूर भरत सा

रहता है

हो अधीर कुछ

मनस लखन भी

चाप चढ़ाए

फिरता है

बस विवेक तब

राम रूप में

सबको पार

लगाते हैं

ज्ञान तापसी

वेश सिया धर

बढ़ते चल

कह जाते हैं

इतना ही तो

लिखा हुआ है

तुलसी…

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Added by राजेश 'मृदु' on July 5, 2013 at 12:01pm — 9 Comments

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