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Kanta roy's Blog – June 2016 Archive (6)

पीड़ा तू आ (कविता) : कांता रॉय

पीड़ा तू आ

आ तेरा श्रृंगार करूँ

शब्दों के फूलों से

टूटे अंतरंगों को सजा लूँ

पीड़ा तू आ

तुझे हृदय में बसा लूँ



बौने मन की कद- काठी पर

प्रीत की लम्बी बेल चढ़ाई

लतर - चतर कर उलझ गई

ये कैसी मैने खेल रचाई

पीड़ा तू आ

तुझे पलकों पर बिठा लूँ



गर्द -गर्द धूमिल- सी चाँदनी

चाँद का रूप कितना मैला

रौंद कर सपनों को

टिड्डों का देखो दल निकला

पीड़ा तू आ

तुझे अधरों का सुख दूँ



सागर की उन्मुक्त लहरें…

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Added by kanta roy on June 27, 2016 at 3:30pm — 20 Comments

परिवार / लघुकथा

 " अरे साहब , क्या हो गया है तुमको , ऐसे जमीन पर ..... ! "

" कौन विमला ? इतने दिन कैसे छुट्टी कर ली तुमने .....आह ! मुझ बुढ़े का तो ख्याल करती "

" उठो ,चलो बिस्तर पर , ज्यादा बोलने का नही रे ! .... मेरा घर-संसार है । यहाँ काम करने से ज्यादा जरूरी है वो । "

" हाँ ,सही कहा , तुम्हारा अपना घर !"

" साहब ,एक बात कहूँ , अब तुम अकेले नहीं रह सकते हो , तुम्हारी बेटी को बुला लो "

" क्या कहा तुमने…

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Added by kanta roy on June 27, 2016 at 8:07am — 11 Comments

कौन आया ?/ कविता

मध्य निशा में मन अकुलाया

विरहन की पीड़ा विहलाया

छल यातना ओढ़ना बिछौना

अंतर वियोग में कौन आया ?



कच्चे धागे सा सुख सपना

निष्ठुरता से कैसी कामना

मेरा दिल मेरा खिलौना

झरते पत्ते -सा कौन आया ?



मृदु बादल की चाह नहीं

वृक्ष अशोक मेरी छाँह नहीं

तृष्णित सिंचित एकाकीपन

में चिता जलाने कौन आया ?



आज अकेला हर मानव है

जलता एकांत दानव है

नीम की मंजरित डाली में

प्रीत बाँधने कौन आया ?







मौलिक और… Continue

Added by kanta roy on June 24, 2016 at 2:38pm — 4 Comments

विकास-यात्रा /लघुकथा

"ओ रे बुधिया , अब ये फूस हटाना ही पड़ेगा अपनी टपरी से "

" ई का कह रहे हो बुड्ढा , अब हम सब बिना छत के रहें का ? "

" नाहीं रे , कुछ टीन टपरा जोड़  लेंगे  "

"  काहे जोड़ लेंगे  टीन-टप्पर , क्यु कहे तुम  फूस हटाने को ?"

" खेत से आवत रहें तो गाँव के जोरगरहा दुई जन  को कुछ कहते सुनत रहे , ओही से कहे है "

" का सुन लिये रहे हो ?"

" कहत रहे कि फुसहा घर गाँव के विकास में…

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Added by kanta roy on June 15, 2016 at 8:00pm — 5 Comments

गरीब होने का सुख /लघुकथा

 ईंट का आखिरी खेप सिर से उतार कर पास रखे ड्रम से पानी ले हाथ-मुँह धो सीधे उसके पास आकर खड़ा हो गया ।

" सेठ , अब जल्दी से आज का हिसाब कर दो "

" कल ले लेना इकट्ठे दोनों दिन की मजूरी ।"

" नहीं सेठ , आज का हिसाब आज करो , कल को मै काम आता या नहीं , भरोसा नहीं "

" मतलब "

" इस हफ्ते पाँच दिन काम किया ना , बहुत कमा लिया ,इतना ही काफी है । अब अगले हफ्ते ही काम पर आऊँगा ।"

" बहुत कमा लिया , हूँ ह ! इतनी-सी कमाई में क्या - क्या करोगे ?"

" क्या-क्या नहीं…

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Added by kanta roy on June 14, 2016 at 12:30pm — 22 Comments

काँपते पत्ते / लघुकथा

"सुनो , कुछ कहना है " बड़ी हिम्मत करके पति की तरफ देखा उसने ।

" क्या हुआ अब , आज फिर माँ से कहा-सुनी हो गई है क्या ?" उन्होंने पूछा ।

" अरे नहीं , माँ से कुछ नहीं हुआ । बात दीपू की है " उसने तीखे स्वर में कहा ।

" अब उसने क्या कर दिया "

" वो ..."

" वो क्या , अरे बताओ भी , किसी से सिर फुट्व्वल करके तो नहीं आया है " उन्होंने तमतमाये चेहरे से पूछा ।

" कैसी बात करते है आप , अपना दीपू वैसा नहीं है " वह एकदम से कह उठी ।

" तो कैसा है , अब तुम्हीं बता दो ? "

"…

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Added by kanta roy on June 13, 2016 at 10:00am — 14 Comments

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