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पीड़ा तू आ (कविता) : कांता रॉय

पीड़ा तू आ
आ तेरा श्रृंगार करूँ
शब्दों के फूलों से
टूटे अंतरंगों को सजा लूँ
पीड़ा तू आ
तुझे हृदय में बसा लूँ

बौने मन की कद- काठी पर
प्रीत की लम्बी बेल चढ़ाई
लतर - चतर कर उलझ गई
ये कैसी मैने खेल रचाई
पीड़ा तू आ
तुझे पलकों पर बिठा लूँ

गर्द -गर्द धूमिल- सी चाँदनी
चाँद का रूप कितना मैला
रौंद कर सपनों को
टिड्डों का देखो दल निकला
पीड़ा तू आ
तुझे अधरों का सुख दूँ

सागर की उन्मुक्त लहरें
बदली का यूँ ही घिरना
पत्थर जो गल कर बर्फ बने
गर्म उँसासों का जम जमकर जमना
पीड़ा तू आ
तुझे मन महुए का नशा करा दूँ

वह कदंब का फूल शस्त्र-सा
शूल सा चुभता भ्रष्ट बसंत
गर्मी है अब सर्द-सर्द-सी
धुप झुलस कर हो गई पस्त
पीड़ा तू आ
तुझे इच्छाओं का माँस खिला दूँ

हड्डियों के ढाँचे में
कर्ज़ कर्ज़ डूबा स्वार्थ
अंधेरों का बढ़ता आकार
घट कर पलछिन हुआ उजास
पीड़ा तू आ
तुझे वाणी की आँख दूँ ॥

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:47pm
//कास प्रभु कीजै तोरी सेव
21 11 22 21 21 =15 मात्रा

क्या यह मात्रा गणना सही है?//---- जी हाँ, यह मात्रा की गिनती सही हुआ है आपके द्वारा।( प्र =१ ) की मात्रा एक ही गिनी जाती है।सादर।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:44pm
आभार आपका आदरणीय सुरेश जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:44pm
आभार आपका हृदय से आदरणीय शिज्जु "शकूर"जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:43pm
आभार आपका आदरणीय ब्रजेश जी रचना पर उपस्थिती के लिये।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:42pm
आदरणीय रामबली जी,यहाँ अतुकांत का ही प्रयास किया है मैने। रचना का भाव को पसंद करने के लिये हृदय से आभार व्यक्त करती हूूँ।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:40pm
आदरणीया राजेश जी,आपके द्वारा सराहना और उचित मार्गदर्शन पाना ,दिल को सुख दे जाता है।आपने बहुत बढ़िया मार्गदर्शन दिया है, मै संशोधन करती हूूँ।ऐसे ही सदा साथ बनाये रखियेगा। आभारी रहूँगी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:36pm
पीड़ा जीवन का श्रृंगार है बिना पीड़ा किसका संसार है? आपने पीड़ा के मर्म को ग्रहण कर प्रतिक्रिया दिये है जो मेरे मनोबल को बढ़ा गया है। आभार आपका हृदय से आदरणीय विजय जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:34pm
आपको तहेदिल आभार आदरणीय केवल जी। आपको रचना अच्छी लगी,रचनाकर्म सार्थक हुआ।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:32pm
रचना के मर्म को संदर्भित करने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीया प्रतिभा जी।
Comment by kanta roy on August 4, 2016 at 12:16pm
मेरा उद्वेलित मन रचनाकर्म के लिये सदा से कारण बना है और आपने इस पीड़ा के मर्म को जाना है। मेरी रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर जीवित हुई है। आभार आपका आदरणीय सुशील जी।

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