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Rash Bihari Ravi's Blog – June 2011 Archive (3)

अब मेरे ख्वाबो को जीने दो ,

अब मेरे ख्वाबो को जीने दो ,

बचपन खेलने को तरस गया ,
हाथो में किताब पड़ने से ,
जवानी कर्मो में गुजर गया ,
और आगे बढ़ने में ,
पूरा चला ढाई कोस , 
वही कहावत हो गई , …
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Added by Rash Bihari Ravi on June 29, 2011 at 7:00pm — No Comments

कैसे कहू मैं दिल की .....

कैसे कहू मैं दिल की ......

दिल में ही रह गई .
ख्वाब अधुरा रह गया ,
ख्वाबो पे छुरी चल गई  ,
कैसे कहू मैं दिल की ......
दिल में ही रह गई .
बालपन की मन में ब्यथा ,
तन सयानी हो गई ,
लोगो की नजरो में आना ,
जवानी दुश्मन हो गई 
कैसे कहू मैं दिल की ......
दिल में ही रह गई .
अपने होते ख्वाबें होती ,
मन की मुरादें मिल जाती ,
अपनों ने जो दगा किया…
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Added by Rash Bihari Ravi on June 29, 2011 at 4:30pm — 15 Comments

एक बार पीकर देखो ये जीवन का जाम हैं ,

एक बार पीकर देखो ये जीवन का जाम हैं ,

आपके ही लिए है ये आप ही का नाम हैं ,
पहले आपको मिला माँ बाप भाई का साया ,
बचपन में मस्त रहना ये आपका काम हैं ,
दोस्त मनाएँ खुशिया मनाये यौवन में जब पाँव धरे ,
गलती कर गए मस्ती में ये भूल की शाम हैं ,
जो सुधरा वही बन गया अब चेहरा आदर्श का ,
उम्र की ढलती बेला में दीखता तमाम है ,
पावन कोमल निर्मल सुबह के जैसा बचपन हैं…
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Added by Rash Bihari Ravi on June 1, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

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