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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – May 2015 Archive (1)

है तमस भरी कि हवस भरी- ( एक तरही ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

11212     11212     11212      11212

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नई ताब दे  नई सोच दे  जो पुरानी है   वो निकाल दे

रहे रौशनी  बड़ी देर तक  वो दिया तू अब यहाँ बाल दे

***

है तमस भरी  कि हवस भरी नहीं कट रही ये जो रात है

तू ही चाँद है तू ही सूर्य भी  मेरी रात अब तो उजाल दे

***

जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं

मेरे  पाँव भी  हुए  नग्न हैं  मेरी  राह अब  तू बुहार दे

***

न तो पीर दे  न चुभन ही दे मेरे पाँव में  ये…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments

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