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Sushil Sarna's Blog – May 2024 Archive (3)

दोहा सप्तक ..रिश्ते

दोहा सप्तक. . . . रिश्ते

आपस के माधुर्य को, हरते कड़वे बोल ।

मिटें जरा सी चूक से, रिश्ते सब  अनमोल ।।

शंका से रिश्ते सभी, हो जाते बीमार ।

संबंधों में बेवजह,  आती विकट दरार ।।

रिश्ता रेशम सूत सा, चटक चोट से जाय ।

कालान्तर में वेदना,  इसकी भुला न पाय ।।

बंधन रिश्तों के सभी,  आज हुए कमजोर ।

ओझल मिलने के हुए, आँखों से अब छोर ।।

रिश्तों में अब स्वार्थ का, जलता रहता दीप ।

दुर्गंधित से नीर में, खाली मुक्ता से सीप ।।

संबंधों को…

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Added by Sushil Sarna on May 8, 2024 at 1:42pm — 4 Comments

कुंडलिया. . .

कुंडलिया. . . 

झोला  लेकर  हाथ  में, चले  अनोखे  लाल ।
भाव  देख  बाजार  के, बिगड़े  उनके  हाल ।
बिगड़े  उनके हाल ,करें क्या  आखिर  भाई ।
महंगाई  का    काल , खा   गया   पाई- पाई ।
कठिन दौर से  त्रस्त , अनोखे दर- दर डोला ।
लौटा   लेकर  साथ , अंत  में  खाली  झोला ।

सुशील सरना /7-5-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on May 7, 2024 at 8:28pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूर

वक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ ।

गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।।

सभी दिवस मजदूर के, जाते एक समान ।

दिन बीते निर्माण में, शाम क्षुधा का गान ।।

याद किया मजदूर के, स्वेद बिंदु को आज ।

उसकी ही पहचान है, , विश्व धरोहर ताज ।।

स्वेद बूँद मजदूर की, श्रम का है अभिलेख ।

हाथों में उसके नहीं , सुख की कोई रेख ।।

रोज भोर मजदूर की, होती एक समान ।

उदर क्षुधा से नित्य ही, लड़ती उसकी जान…

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Added by Sushil Sarna on May 1, 2024 at 4:30pm — 4 Comments

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