२१२२ २१२२ २१२
गुफ़्तगू चुप्पी इशारा सब ग़लत
बारहा तुमको पुकारा सब ग़लत
ये समंदर ठीक है, खारा सही
ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत
रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर
एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत
एक क्यारी को लबालब भर दिये
भोगता जो बाग़ सारा, सब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 30, 2025 at 11:00am — No Comments
एक धरती जो सदा से जल रही है
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२१२२ २१२२ २१२२
'मन के कोने में इक इच्छा पल रही है'
पर वो चुप है, आज तक निश्चल रही है
एक चुप्पी सालती है रोज़ मुझको
एक चुप्पी है जो अब तक खल रही है
बूँद जो बारिश में टपकी सर पे तेरे
सच यही है बूंद कल बादल रही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 19, 2025 at 5:46pm — 6 Comments
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