For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nilesh Shevgaonkar's Blog – April 2018 Archive (10)

ग़ज़ल नूर की - आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को

आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को

खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.

.

जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे

हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.

.

मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम

शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.

.

आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर

मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.

.

ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में

हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.

.

मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments

ग़ज़ल नूर की- बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 

.

बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,

बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.

.

नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,

मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.

.

बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,

ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.

.

मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ   

पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.

.

मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:09pm — 14 Comments

ग़ज़ल नूर की-2-ऐ ख़ुदा! रूतबा इबादत-गाहों का अपनी जगह

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

.

ज़ाहिदो! रूतबा इबादत-गाहों का अपनी जगह

पर सुकूँ की राह में है मैकदा अपनी जगह.

.  

इश्क़ में मजबूरियों को बेवफ़ाई क्यूँ कहें   

चाहना अपनी जगह था भूलना अपनी जगह.

.

सादा-दिल होने के दुनिया में कई नुक्सान हैं

पर किसी के काम आने का मज़ा अपनी जगह.

.

आपने जब दिल लगाया ही नहीं, समझेंगे क्या?  

जीतना हो शौक़ कोई, हारना अपनी जगह.

.

इम्तिहाँ कब “नूर” का है इम्तिहाँ आँधी का है

रात भर जलता रहेगा यह दीया…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2018 at 12:30pm — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की -जो किताबों ने दिया वो फ़लसफ़ा अपनी जगह.

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

.

जो किताबों ने दिया वो फ़लसफ़ा अपनी जगह.

लोग जिस पर चल पड़े वो रास्ता अपनी जगह.

.

फिर लिपटकर रो सकूँ मैं ये दुआ अपनी जगह

लौट कर आए न तुम मैं भी रहा अपनी जगह.

.

हक़ बयानी का सभी को हौसला होता नहीं  

संग हैं बेताब फिर भी आईना अपनी जगह.   

.

छोड़ कर मुझ को तेरा क्या हाल है यह तो बता

तेरे पीछे हश्र मेरा जो हुआ अपनी जगह.

.

ये वो मंजिल तो नहीं है आज पहुँचे हैं जहाँ

गो तुम्हारे साथ चलने का मज़ा अपनी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2018 at 8:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल नूर की-जिस्म है मिट्टी इसे पतवार कैसे मैं करूँ

२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२

.

जिस्म है मिट्टी इसे पतवार कैसे मैं करूँ

कागज़ी कश्ती से दरिया पार कैसे मैं करूँ.

.

ऐ अदू तेरी तरह गुफ़्तार कैसे मैं करूँ,

फूल बरसाती ज़बां को ख़ार कैसे मैं करूँ.



चाबियाँ मैंने ही दिल की सौंप दी थीं यादों को

आ धमकती हैं जो अब, इन्कार कैसे मैं करूँ.

.

रेत का घर है ये दुनिया तिफ़्ल सी उलझन मेरी  

ख़ुद बना कर ख़ुद इसे मिस्मार कैसे मैं करूँ.

.

रूह बुलबुल है जिसे ये क़ैद रास आती नहीं  

है क़फ़स…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2018 at 7:15pm — 19 Comments

लघुकथा-बेटी बचाओ

उस दिन जन सामान्य का उत्साह देखते ही बनता था. टीवी, रेडियो, अखबार ..सब जगह नेता जी की पहल का चर्चा था. आख़िर किसी ने तो बेटी के महत्व को समझ कर बेटी बचाओ जैसा महान नारा दिया था समाज को ...

आज जब दो बेटियों के बलात्कार की और एक आठ साल की बेटी की नृशंस हत्या की ख़बर पढ़ी तो पहले पहल यह रोज़मर्रा की ख़बर ही लगी ... फिर ख़बर की डिटेल्स में पढने को मिला कि नेताजी के दल के लोग बलात्कारियों के समर्थन में सड़क पर तिरंगा लेकर वन्दे मातरम का घोष कर रहे हैं तो अचानक मन…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 14, 2018 at 11:30am — 14 Comments

एक ग़ज़ल -कठुआ की आसिफ़ा में नाम

२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२

.

तेरी ख़ातिर कुछ न हम कर पाए प्यारी आसिफ़ा

क्या ये तेरी मौत है या फिर हमारी आसिफ़ा?   

.

एक हम हैं जो लड़ाई देख कर घबरा गए

एक तू जो सब से लड़ कर भी न हारी आसिफ़ा.

.

ऐ मेरी बच्ची, ज़मीं तेरे लिए थी ही नहीं

सो ख़ुदा भी कह पड़ा वापस तू आ री आसिफ़ा.

.

हुक्मराँ इन्साफ़ देगा ये तवक़्क़ो है किसे

क़ातिलों की भी मगर आएगी बारी आसिफ़ा.

.

इतनी लाशों से घिरा मैं लाश क्यूँ होता नहीं  

सोच कर क्यूँ तुझ को मेरा दिल है भारी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2018 at 5:28pm — 16 Comments

ग़ज़ल नूर की- ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में

२२/२२/२२/२२/२२/२२/२२/२

.

ख़ुद को क़िस्सा-गो समझे है हर क़िरदार कहानी में

क़तरा ख़ुद को माने समुन्दर  जाने किस नादानी में.  

.

कैसा हिटलर कौन हलाकू, साहिब गर्मी काहे की

इक दिन सब को जाना है इतिहास की कूड़े दानी में.

.

तैर नहीं सकते थे माना लेकिन चल तो सकते थे

डूब मरे हैं कुछ बेचारे टखनों से कम पानी में.  

.

जादू का इक झूठा कपड़ा पहने फिरते हैं साहिब

और ठगों की पौ-बारह है उनकी इस उर्यानी में.

.

पहले जिस के लफ्ज़ लबों के पार न…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 9, 2018 at 12:30pm — 35 Comments

ग़ज़ल नूर की -पार करने हैं समुन्दर ये दिलो-जाँ वाले

२१२२ /११२२ /११२२ /२२

.

पार करने हैं समुन्दर ये दिलो-जाँ वाले

और आसार नज़र आते हैं तूफाँ वाले.

.   

फ़ितरतन मुश्किलें; मुश्किल मुझे लगती हीं नहीं     

पर डराते हैं सवाल आप के आसाँ वाले.

.

तितलियाँ फूल चमन सारे कशाकश में हैं

एक ही रँग के गुल चाहें गुलिस्ताँ वाले.

.

ये न कहते कि रखो एक ही रब पर ईमाँ

इश्क़ करते जो अगर गीता-ओ-कुरआँ वाले.  

.

जानवर हैं कई, इंसान की सूरत में यहाँ

शह्र में रह के भी हैं तौर बयाबाँ वाले.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 7, 2018 at 1:02pm — 20 Comments

ग़ज़ल नूर की- हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,

२१२/ १२२२// २१२/ १२२२ 

.

हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,

ग़लतियों पे पछतावा आख़िरी में होता है.

.

तितलियों के पंखों पर चढ़ते हैं गुलों के रँग

ज़िक्र जब मुहब्बत का शाइरी में होता है.

.

शम्स ख़ुद भी छुपता है देख कर अँधेरे को,

इम्तिहान जुगनू का तीरगी में होता है.

.

बीज यादों के बो कर सींचता है अश्कों से

दिल ख़याल उगाता है जब नमी में होता है.

.

जिस ख़ुदा की ख़ातिर तुम लड़ रहे हो सदियों से

काश ये समझ पाते वो सभी में…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 3, 2018 at 9:00pm — 12 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
57 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service