For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog – February 2017 Archive (5)

ग़ज़ल -है बोलने का मुझे इख़्तियार, कह दूँ क्या - ( गिरिराज )

1212   1122   1212    22 /122

सुनें वो गर नहीं,तो बार बार कह दूँ क्या

है बोलने का मुझे इख़्तियार, कह दूँ क्या

 

शज़र उदास है , पत्ते हैं ज़र्द रू , सूखे

निजाम ए बाग़ है पूछे , बहार कह दूँ क्या

 

कहाँ तलाश करूँ रूह के मरासिम मैं

लिपट रहे हैं महज़ जिस्म, प्यार कह दूँ क्या

 

यूँ तो मैं जीत गया मामला अदालत में

शिकश्ता घर मुझे पूछे है, हार कह दूँ क्या

 

यूँ मुश्तहर तो हुआ पैरहन ज़माने में

हुआ है ज़िस्म का…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 27, 2017 at 7:30am — 25 Comments

ग़ज़ल -सुखवनर से वो पहले आदमी है - ( गिरिराज )

1222    1222     122 

सुखनवर से वो पहले आदमी है

गलत क्या है अगर नीयत बुरी है

 

किताबों से कमाई कम हुई तो   

सुना है, रूह उसने बेच दी है  

 

अचानक आइने के बर हुये हैं

इसी कारण बदन में झुरझुरी है

 

लगावट खून से, होती है अंधी

वो काला भी, हरा ही देखती है

 

चली तो है पहाड़ों से नदी पर

सियासी बांध रस्ता रोकती है

 

दिवारें लाख मज़हब की उठा लें

अगर बैठी, तो कोयल , कूकती है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 7:30am — 6 Comments

ग़ज़ल -इक अधूरी नज़्म मेरी ज़िन्दगी थी - ( गिरिराज )

2122   2122    2122 

हर हथेली, क़ातिलों की जान ए जाँ  है

ज़ह्र उस पे, मुंसिफों सा हर बयाँ है     

 

बाइस ए हाल  ए तबाही हैं, उन्हें भी    --

बाइस ए तामीर होने का गुमाँ है  

 

एक अंधा एक लंगड़ा हैं सफर में

प्रश्न ये है, कौन किसपे मेह्रबाँ है

 

किस तरह कोई मुख़ालिफ़ तब रहेगा

जब कि हर इक, दूसरे का राज दाँ है

 

जिन चराग़ों ने पिया ख़ुर्शीद सारा  

उन चराग़ों में भला अब क्यूँ धुआँ है

 

जब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 19, 2017 at 9:30am — 20 Comments

ग़ज़ल -मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद - ( गिरिराज )

( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )

221  2121   1221    212

मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद

क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद



तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम

ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?



वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर

दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद



वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर

बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 5, 2017 at 7:46am — 24 Comments

गज़ल - किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है - ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   2 ( बहरे मीर )

किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है

***********************************

सबके अंदर एक सिकंदर ज़िन्दा है

इसीलिये हर ओर बवंडर ज़िन्दा है  

 

सब शर्मिन्दा होंगे, जब ये जानेंगे

अभी जानवर सबके अंदर ज़िन्दा है

 

मरा मरा सा बगुला है बे होशी में

लेकिन अभी दिमाग़ी बन्दर ज़िन्दा है

 

फूलों वाला हाथ दिखा असमंजस में

किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है

 

परख नली की बातों…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 2, 2017 at 8:30am — 15 Comments

Monthly Archives

2025

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
31 seconds ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
4 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
4 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
6 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
23 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
28 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
39 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service